भास्कर न्यूज नेटवर्क.अयोध्या में विवादित स्थल के आस-पास की 67.703 एकड़ जमीन अधिग्रहीत करने के 26 साल बाद केंद्र सरकार इसे असल मालिकों को लौटा देने की अर्जी लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। बीते मंगलवार सरकार की ओर से अर्जी दायर कर कोर्ट से कहा गया है कि जमीन का सिर्फ 0.313 एकड़ प्लाॅट विवादित है, बाकी नहीं। इसलिए बाकी जमीन उसके असली मालिकों को लौटाने की इजाजत दी जानी चाहिए। अपनी इस अर्जी में सरकार ने विश्व हिन्दू परिषद् के ट्रस्ट राम जन्मभूमि न्यास का जिक्र जमीन के 42 एकड़ हिस्से के मालिक के रूप में किया है। केंद्र के अनुसार 2003 में न्यास ने इस भूमि में से तकरीबन 42 एकड़ को फिर पाने के लिए कोर्ट में अर्जी भी दी थी।
हालांकि केंद्र द्वारा 42 एकड़ जमीन का मालिक न्यास को बताए जाने पर भी सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह जमीन उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यास को लीज पर दे रखी थी। इसलिए भूमि की मूल मालिक उत्तर प्रदेश सरकार हुई। दरअसल, 1980 के दशक के अंत में उत्तरप्रदेश के पर्यटन विभाग ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के आस-पास की 52.90 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की थी। इसके अलग-अलग हिस्सों के मालिक 20 से ज्यादा परिवार थे। इन्हें जमीन के बदले मुआवजा दे दिया गया(हालांकि मुआवजे की राशि को कम बताकर कई परिवार फैजाबाद जिला कोर्ट की शरण में हैं)। मार्च 1992 में यानी बाबरी मस्जिद ढहाए जाने से कुछ माह पहले इसमें से 42 एकड़ जमीन रामकथा पार्क विकसित करने के लिए राम जन्मभूमि न्यास को दे दी गई।
जमीन देते समय यूपी सरकार ने स्पष्ट किया था कि उनके पहले की सरकार ने ही राज्य में पर्यटन के विकास के लिए यहां रामकथा पार्क निर्माण की योजना बनाई थी। योजना साकार नहीं हो सकी। तब राम जन्मभूमि न्यास ने प्रस्ताव रखा किवह अपने संसाधनों से यह पार्क विकसित करेगा। इसी शर्त पर पर्यटन विभाग ने न्यास को यह जमीन 1 रुपए सालाना लीज पर दे दी। मगर इस करार के तकरीबन नौ माह बाद बाबरी मस्जिद ढहा दी गई। माहौल बिगड़ा तो केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। कुछ ही माह में केंद्र ने ‘सर्टन एरियाज अॉफ अयोध्या एक्ट-1993’ बनाकर इस 42 एकड़ सहित यहां की कुल 67.703 एकड़ जमीन अपने कब्जे में ले ली। इसमें मंदिर-मस्जिद विवाद वाली जमीन भी शामिल थी, जिसे हाल ही में केंद्र सरकार ने 0.313 एकड़ बताया है।
इसलिए है विवाद…
- 1993 : में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारूकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को खारिज कर दिया। हालांकि यह साफ कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मालिकाना हक का फैसला हो जाएगा, तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की ओर से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
- 1996 : में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गई। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे 1997 में कोर्ट ने भी खारिज कर दिया।
- 2002 : में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
- 2003 : में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूरी 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
- – हालांकि कोर्ट ने अधिग्रहीत जमीन वापसी पर पक्षकारों से अर्जी मांगी तो राम जन्मभूमि न्यास ने गैर-विवादित 42 एकड़ जमीन पर अपना मालिकाना हक हासिल करने की गुहार लगाई
- 2019 : में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर गैर-विवादित जमीन असल मालिकों को देने की बात कही है।
मंदिर-मस्जिद वाली जमीन पर विवाद भी जारी
सरकार की ओर से कोर्ट में अतिरिक्त जमीन वापसी की अर्जी 29 जनवरी को लगाई गई है। यानी उसी दिन, जो राम मंदिर मामले की सुनवाई के लिए तय था। हालांकि पांच में से एक जज के मौजूद न होने के कारण सुनवाई टल गई। इसके ठीक एक दिन पहले केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर ने राम मंदिर मामले की सुनवाई में देरी पर सवाल उठाए थे। कहा था कि जब सबरीमाला, व्याभिचार, समलैंगिकता के मुद्दे पर तेजी से सुनवाई हो सकती है तो राम मंदिर पर क्यों नहीं? जाहिर है कानून मंत्री का सवाल उस 2.77 एकड़ जमीन को लेकर था, जिस पर विवाद है।
इसी बीच प्रयाग कुंभ में बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने 21 फरवरी को अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करने का ऐलानकिया है। वहीं विश्व हिंदू परिषद ने गंगा पूजन कर मंदिर निर्माण का संकल्प लिया है। इस तरह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग एक बार फिर उठ खड़ी हुई है। इससे पहले अक्टूबर 2018 में मांग उठने लगी कि राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाया जाए या अध्यादेश लाया जाए। नवंबर में दीपावली के दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में भगवान राम की एक विशाल प्रतिमा स्थापित करने की बात कही थी।
2010 में कोर्ट ने तीन पक्षों में बराबर बांट दी थी जमीन
सितंबर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया। जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है, वह रामलला के पक्षकारों को दिया। एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया, जिसमें सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल था। बाकी एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को सौंपा। फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी। मामले को कोर्ट के बाहर निपटाने के भी कई प्रयास हुए, लेकिन असफल रहे।
आगे यह होगा
सरकार की अर्जी मान ली गई तो भी हल कठिन
मंदिर विवाद पर ‘अयोध्याज राम टैम्पल इन कोर्ट्स’ नामक पुस्तक का लेखन और सम्पादन कर चुके सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट विराग गुप्ता कहते हैं कि सरकार की अर्जी के बाद अब 1993 के इस्माइल फारूकी और 2003 के असलम भूरे मामले पर फिर से बहस होगी। इन पर अभी तक पूर्णविराम लगा हुआ है। दूसरी आशंका यह है कि अगर सरकार की अर्जी स्वीकार कर मूल मालिकों को जमीन वापस कर दी जाती है तो इसके अनेक पक्षकार हो जाएंगे। यदि उन सभी में राम मंदिर निर्माण के लिए सहमति नहीं बनी, तो भविष्य में एक नई कानूनी समस्या पैदा हो जाएगी।
फैसले से पहले ये 3सवाल बने रहेंगे उलझन
- कोर्ट में दाखिल सरकार की अर्जी के अनुसार विवादित क्षेत्र 0.313 एकड़ का है। बकाया जमीन गैर-विवादित है, जिसे मूल मालिकों को लौटाने के लिए स्थगन आदेश खत्म करने की मांग की गई है। मगर दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय में 16 अपीलें लम्बित हैं, जहां 2.77 एकड़ जमीन का विवाद है। तो सवाल यह है कि शेष गैर-विवादित जमीन 67 एकड़ की है या 65 एकड़ की?
- राम जन्मभूमि न्यास सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख मुकदमे में पक्षकार हैं, जिनकी इस बारे में याचिका 1997 में निरस्त हो गई थी, तो अब सरकार की अर्जी पर कैसे सुनवाई होगी?
- गैर-विवादित भूमि में काफी जमीन लीज की है, जो अधिग्रहण के बाद खत्म मानी जानी चाहिए। तो फिर ऐसी लीज वाली जमीनों का स्वामित्व तब के मालिकों के पास रहेगा या उत्तर प्रदेश सरकार जमीन की मालिक हो जाएगी?
सरकार चाहे जैसे कर सकती है जमीन का इस्तेमालः स्वामी
राज्यसभा सांसद और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि अनुच्छेद 300ए के तहत अब यह जमीन केंद्र सरकार की है। इसे राम मंदिर निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। स्वामी के अनुसार रोक इस बात की थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की सुनवाई पूरी होने तक इस जमीन पर यथास्थिति बनी रहेगी। कोर्ट का फैसला 9 साल पहले आ चुका है, ऐसेमें अब अतिरिक्त जमीन को लेकर विवाद नहीं है।
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