सुंदरकांड का वर्णन सुन भक्त हुए निहाल

सोनभद्र (मिथिलेश द्विवेदी)। अष्टसिद्ध संकट मोचन उत्तरामुखी बाल हनुमान जी के प्रांगण मे चल रहे श्रीराम चरित मानस महायज्ञ एवं श्रीराम कथा के आठवें दिन मानस कथा वाचिका मानस माधुरी सुनीता पांडेय ने सुंदरकांड की कथा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि यह कांड अपने नाम के अनुसार अत्यंत सुंदर मनोहर एवं जनकल्याणकारी है जिसमें गोस्वामी तुलसीदास द्वारा सुंदर शब्द का आठ बार प्रयोग किया गया है। भगवान श्रीराम माता सीता की खोज करते हुए किष्किंधा पर्वत के समीप जाते हैं तो उनकी भेंट उनके कार्य के लिए ही शिव के स्वरूप भगवान हनुमान से होती है और हनुमान जी उन्हें सुग्रीव के पास ले जाते हैं और

उनसे मित्रता करते हैं, तत्पश्चात सुग्रीव भगवान श्रीराम के सहयोग से बालिका वध करते हैं और सुग्रीव का राज्याभिषेक होता है। सुग्रीव अपने समस्त योद्धाओं एवं सेना को माता सीता की खोज का आदेश देते हैं तत्पश्चात समस्त योद्धाओं के असमर्थता के उपरांत सबसे अंत में प्रभु श्रीराम द्वारा बजरंगबली का चयन किया जाता है और भगवान

हनुमान को जमुना जी द्वारा उनके बल का बोध कराया जाता है हनुमान जी समुद्र पार करने के लिए जहां बीच समुद्र में उनकी भेंट सुरसा नामक राक्षसी से होता है और वह हनुमान जी का मार्ग अवरुद्ध करने का प्रयास करती है और हनुमान जी के भाषण के लिए अपना मुंह खोलते हैं इस पर हनुमान जी वह जितना मुख खोलती है उसके दुगने रूप में हो जाते हैं तथा अवसर जान तुरंत अत्यंत लघु धार सुरसा के मुख में प्रवेश करते हैं तथा बाहर चले आते हैं। “प्रभु मुद्रिका मेंलि मुख माही, जलधी लाघी गए अचरज नहीं। समुद्र को पार करने के उपरांत हनुमान जी एक ऊंचे टीले से समस्त लंका का अवलोकन करते हैं उन्हें लंका में कोई अच्छा व्यक्ति दिखाई नहीं देता केवल विभीषण का घर ही उन्हें भगवत भक्ति के रूप में दिखाई देता है तत्पश्चात लंकिनी का बघ कर वह विभीषण के घर पहुंचते हैं और माता सीता कहां है उसके बारे में पता करते हैं तथा उनसे भगवान से मिलने का वचन भी देते हैं इसके उपरांत हनुमान जी अशोक वाटिका में प्रवेश करते हैं और अति सूक्ष्म रूप धारण कर समय का इंतजार करते हैं माता सीता द्वारा आत्मज्ञान के रूप में स्वयं को समाप्त करने हेतु अग्नि की मांग किए जाने पर वह उचित अवसर जान माता सीता के सामने मुद्रीका गिरा देते हैं और माता सीता द्वारा मुद्रिका की पहचान किए जाने के उपरांत माता सीता को सारी घटना से अवगत कराते हैं तथा शीघ्र ही माता सीता को लंका से मुक्त करने को कहते हैं और माता सीता से भूख लगने की बात कहा तथा सुंदर फल खाने की इच्छा जाहिर की माता सीता का आदेश मिलने के बाद संपूर्ण अशोक वाटिका को तरस-नहस कर देते हैं जिसकी जानकारी होने पर लंका के राजा रावण द्वारा अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा जाता है जिसका हनुमान जी बंद कर देते हैं तत्पश्चात रावण द्वारा मेघनाथ को भेजा जाता है और वह ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है बजरंगबली द्वारा ब्रह्मास्त्र के सम्मान एवं उसकी महिमा को बनाए रखने के लिए स्वयं उसमें बच जाते हैं और लंका के राज दरबार में प्रस्तुत होते हैं जहां उनका दंड स्वरूप उनके पूंछ में आग लगाकर जलाने हेतु प्रयास किया जाता है और इस आज का प्रयोग कर हनुमान जी समस्त सोने की लंका को जलाकर भस्म कर देते हैं तत्पश्चात अपनी पूंछ को समुद्र में बुझाते हैं तथा अशोक वाटिका में माता सीता से विदा लेकर और सबूत के लिए चूड़ामणि लेकर पुनः श्रीराम के पास वापस चले आते हैं। इस अवसर पर संत समागम के साथ भारी संख्या मे माता बहने भक्तगण मौजूद रहे।

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