सोनभद्र(सर्वेश कुमार)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हृदय स्थल मालवीय भवन सभा मंडप मे आज रविवासरीय गीता प्रवचन में गुणत्रय विभाग नामक चतुर्दश अध्याय पर परमज्ञान से युक्त देहधारी जीव की सत्व, रज, तामस गुणों की प्रवृत्ति के गुण-दोष, इनमें स्थित मनुष्य की क्रमश: ज्ञान, लोभ, प्रमाद में वृत्ति तथा त्रिगुणातीत पुरूष को प्राप्त होने वाली अव्यभिचारिणी भक्ति के पाने वाले लक्षणों पर सारगर्भित
प्रवचन कर वाणी को पवित्र करने का सुखद संयोग मिला। कथाक्रम के गीता मे वर्णित श्लोकों को रामचरितमानस के चौपाइयों से संपृक्त कर विज्ञ प्रवचनकर्ता डाक्टर मार्कण्डेय राम पाठक ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। चारों युगों मे व्याप्त उक्त तीनों गुणों पर आपकी प्रस्तुति के निम्न भाव प्रस्तुत हैं:
सत्व सुद्ध समता विग्याना,
कृत प्रभाव प्रसन्न मन जाना|
सत्व बहुत रज कछु रति कर्मा,
सब बिधि सुख त्रेता कर धर्मा|
बहु रज स्वल्प सत्व कछु तामस,
द्वापर धर्म हरष भय मानस|
तामस बहुत रजोगुण थोरा,
कलि प्रभाव बिरोध चहुं ओरा|
सभागार में उपस्थित महनीय श्रोताओं मे बी एच यू के पूर्व
कुलसचिव डाक्टर के पी उपाध्याय, तिब्बती उच्च विद्या संस्थान के पूर्व कुलसचिव डाक्टर आर के उपाध्याय, गीता समिति के सचिव व वैदिक विज्ञान केन्द्र के समन्वयक आचार्य उपेन्द्र त्रिपाठी, आचार्य शरदिन्दु त्रिपाठी, आई आई टी के आचार्य देवेन्द्रमोहन, मालवीय भवन से जुटे सत्यनारायण पान्डेय व जोशी जी, सोनभद्र से कौशलेश पाठक समेत विश्वविद्यालय परिवार के छात्र – छात्राओं, कर्मचारियों व काशीवासी सुधी श्रोताओं ने अमृतमयी कथा का आनन्द लिया।