अनपरा सोनभद्र पुरानी सब्जी मंडी शिवमन्दिर अनपरा बाजार में चल रहे श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का शुभारंभ भब्य कलश यात्रा से प्रारंभ हुआ।जबकी कलश यात्रा के दौरान इंद्र देव महाराज ने आकाश मार्ग से अमृत वर्षा से कलश यात्रा को भक्ति मय कर दिया पुरी यात्रा के दौरान तेज वर्षा होती रही पर अमृत कलश लिए देवियों ने भी उसी बारिश में यात्रा को पुर्ण किया प्रथम दिवस में राष्ट्रीय कथावाचिका देवी सत्यार्चा जी (श्रीधाम बृंदावन)ने भागवत महात्म्य परीक्षित जन्म, सुखदेव आगमन की कथा सुनाई।
ये मानवाः पाप कृतस्तु सर्वदासदा दुराचाररता विमार्गगाः |
क्रोधाग्निदग्धाः कुटिलाश्च कामिनःसप्ताह यज्ञेन कलौ पुनन्ति ते ||
जो मनुष्य सदा सर्वदा पाप करते रहते हैं दुराचारी हैं कुमार्गगामी है क्रोध की अग्नि में सदा जलते रहते हैं कुटिल है कामी है ऐसे लोग भी कलयुग में भागवत के सुनने से पवित्र हो जाते हैं देवर्षि से इस विषय में मैं तुम्हें एक इतिहास सुनाता हूं जिसके सुनने मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं
सनत्कुमारजी ऐसा कह रहे थे कि भक्ति देवी प्रकट हो गयीं, ज्ञान और वैराग्य दोनों का बुढ़ापा दूर हो गया, सनत्कुमार बोले! भक्ति देवी आप आ गयी, तुम भक्तों के ह्रदय में वास करो, भक्ति प्रकट हो गयी भक्तों के ह्रदय में और जब कीर्तन होने लगा!
प्रहादस्तालधारी तरल गतितया चौद्धवः कांस्यधारी, वीणाधारी सुरषिं: स्वर कुशलता समकर्तार्जुनोऽभूत्।
इन्द्रोऽवादीन्मृदंगं जयजयसुकराः कार्तने ते कुमारा,यत्राग्रे भावक्ता सरसरचनया व्यास पुत्रो बभूव।।
प्रहलादजी ताली बजाने लगे, उद्धवजी कांसा बजाने लगे, देवराज इंद्र मृदंग बजाते है, सनत्कुमारजी जै-जैकार ध्वनि लगा रहे है और जितने भी संतजन वहाँ है, सब नृत्य कर रहे है, भोलेनाथ से नहीं रहा गया, पार्वती के साथ नृत्य करने मे तन्मय हो गये।
व्यास नन्दन आदरणीय शुकदेवजी महाराज बीच-बीच में व्याख्या करने लगे, इतनी सुन्दर स्वर लहरी, इतना सुंदर कीर्तन हुआ कि मेरे प्रभु से रहा नहीं गया और भगवान् कीर्तन में प्रकट हो गयेऔर कहां मैं आप लोगों की कथा एवम् कीर्तन से बड़ा प्रसन्न हूँ, इसलिए कोई उत्तम वरदान माँगे, क्या चाहिये?
भक्तों ने कहा प्रभु! यही वर दे दो, जब-जब आपका कीर्तन करें, तब-तब आपका दर्शन कर लिया करें, भगवान वर देकर चले गये, ज्ञान-वैराग्य का बुढापा मिट गया, भक्ति देवी के मन की कष्ट की निवृत्ति हुई, सूतजी ने ये प्रसंग शौनकादि ऋषियों को बता दिया, यही प्रसंग सनत्कुमारों ने नारदजी से कहा और यहीं प्रसंग श्री आदरणीय शुकदेवजी महाराज ने राजा परीक्षित से कहा।
भागवत अमृत है, इसका जो पान करे उसका जीवन धन्य हो जाता है,
उक्त श्रीमद्भागवतजी कथा के महात्म पश्चात ही प्रथम स्कन्ध का पाठ होता है!! युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र से लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ। कथा के दौरान मुख्य यजमान अकुल्या विनोद गुप्ता रहे।कथा की ब्यवस्था में सुमीत सोनी, राहुल गुप्ता,रविन्द्र गुप्ता, गोपाल गुप्ता, अशोक गुप्ता, संतोष गुप्ता,बाल गोपाल चौरसिया, कन्हैया गुप्ता,विपुल मोदनवाल, राजकुमार जायसवाल,सुनिल पटवा विष्णु शंकर दुबे, राजेश गुप्ता, संजय जायसवाल, अशोक केशरी, अखिलेश गुप्ता, पप्पू चौरसिया,नवीन पाण्डेय ,अमन गुप्ता ब्यवस्था में निष्ठापूर्वक लगे रहे।