ईमलीपुर-सोनभद्र(रोहित त्रिपाठी)। विकासखंड कर्मा अंतर्गत जुड़वरिया गांव में चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत ज्ञान महायज्ञ के दूसरे दिन बाल व्यास मयंक दुबे ने एक तरफ हरि का भजन करो हरी है हमारा भजन सुना कर कथा श्रवण कर रहे भक्तों को मंत्र मुग्ध कर दिया। तो वहीं दूसरी तरफ कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन अर्थात जीव मात्र को स्वार्थ रहित होकर फल की इच्छा किए बिना निरंतर कर्म करना चाहिए और कर्म करते समय यह भी ध्यान रहे आत्मनह प्रतिकूलानि परेशाम न समाचारेति जो अपनी आत्मा के प्रतिकूल हो अर्थात अपने आप को अच्छा ना लगे ऐसी वाणी
दूसरों के सामने प्रकट न करें और भूल से भी ब्राह्मणों का कभी अपमान ना करें। क्योंकि राजा परीक्षित ने ऐसी गलती किया था जिसके कारण श्रृंगी ऋषि ने सोचा कि यदि राजा जीवित रहेगा तो इसी तरह ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा ऐसा विचार करके कमंडल से अपनी अंजुलि में जल लेकर उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया की जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा और ऐसा हुआ
भी जबकि राजा परीक्षित कुरु वंश के अंतिम राजा थे वह अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र और अर्जुन के पोते थे जबकि उन्होंने पांडवों से भी अधिक अश्वमेघ यज्ञ किया था फिर भी उनका बस नहीं चला इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब रामचरितमानस में देवताओं की वंदना शुरू किया तो सर्वप्रथम लिखा -बंदउ प्रथम मही सुर चरना। जासु नेम नित जाइ न वरना।। वही ज्ञानवृद्ध वयोवृद्ध व्यास सत्यवान दुबे ने मार्मिक प्रसंगों का वर्णन करते हुए श्रीमद् भागवत कथा को पितृ मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया। आयोजक बाल गोविंद त्रिपाठी व उनके पुत्र आचार्य धीरेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि इस तरह के आयोजन पितरों के पुण्य प्रभाव का ही फल है ।