संजय सिंह
चुर्क-सोनभद्र। प्रसिद्ध कॉमेडियन एवं मिमिक्री स्टार अभय कुमार शर्मा जनपद सोनभद्र में दृष्टिबाधित दिव्यांगों हेतु एक विश्वस्तरीय दृष्टिबाधित महाविद्यालय (अंध महाविद्यालय) के निर्माण के संकल्प को गति एवं दिशा देते हुए देश-विदेश के तमाम मंचों पर उक्त महाविद्यालय के निर्माण के संबंध में लगातार लोगों से आशीर्वाद एवं सहयोग की अपील कर रहे हैं। इसी क्रम में अभय तुलसीपीठ के संस्थापक, 22 भाषाओं के जानकार एवं 80 ग्रंथों के रचयिता पद्मविभूषण, जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी से भी आशीर्वाद लेने पहुंचे। गुरुजी अभय के इस संकल्प और प्रयास से बहुत ही प्रभावित और प्रसन्न हुए एवं अभय को हृदय से लगाकर हर प्रकार से सहयोग हेतु आश्वस्त करते हुए कामेडियन अभय शर्मा को सोनभद्र में अंध
महाविद्यालय निर्माण के संकल्प को गति प्रदान करने हेतु अपना आशीर्वाद और शुभकामनाएं दीं। कॉमेडियन अभय का मानना है कि जनपद सोनभद्र आदिवासियों, वनवासीयों एवं सुख-सुविधाओं से वंचित गरीब एवं बेहद ही विषम परिस्थितियों वाला भौगोलिक क्षेत्र है। जनपद सोनभद्र से चार राज्यों छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार एवं मध्य प्रदेश की सीमाएं मिलती हैं और इन राज्यों के सीमावर्ती जिले भी बेहद ही गरीब हैं और उस पर दुश्वारियों का आलम यह है कि खनिज संपदा से भरपूर उक्त भौगोलिक क्षेत्रों में पीने योग्य पानी की भारी कमी है। खनिज लवण की मात्रा अधिक होने के कारण उक्त क्षेत्रों के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन जैसे तमाम तत्वों की मात्रा औसत से कई गुना ज्यादा है, जिसके कारण उक्त क्षेत्रों में दिव्यंगाता की दर देश के अन्य क्षेत्रों से काफी अधिक है और उस पर गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा एवं जागरूकता की कमी इस समस्या को बेहद गंभीर बना देती है। अभय बताते हैं कि जिस प्रकार उनके परिवार ने उन्हें जन्मजात दृष्टिबाधित दिव्यांग होने के बावजूद भी तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए उनकी शिक्षा-दीक्षा को सुचारू रूप से बनाए रखा जिसके कारण एक दृष्टिबाधित दिव्यांग बच्चे को भी अपनी पूरी संभावना के साथ जीवन जीने की शक्ति एवं अपने आप को समाज में बेहतर ढंग से स्थापित करने में सफलता मिली। इस प्रकार का अवसर अन्य सभी दिव्यांग जनों को भी अवश्य मिलना चाहिए। अभय के अनुसार कोई भी दिव्यांग तब दिव्यांग नहीं होता जब वह एक अधूरे शरीर के साथ जन्म लेता है बल्कि वह दिव्यांग तब होता है जब समाज उसे उस रूप में स्वीकार नहीं करता और उसके जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं करता। अभय अपने जीवन की यात्रा के संस्मरणों को याद करते हुए बताते हैं कि उनके जीवन की सफलता में उनके माता-पिता उनके आस-पास का समाज एवं वह स्कूल जिसमें वह पढ़े-लिखे उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, परंतु दुख का विषय है कि वाराणसी स्थित जिस स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की थी अब वह बंद होने के कगार पर है। अपने उस स्कूल को बचाने के लिए अभय ने लगातार एक महीने तक आंदोलन भी किया था। दृष्टि बाधित दिव्यांग महाविद्यालय के निर्माण का संकल्प भी उसी दौर की उपज है। अभय कहते हैं कि यदि इसी प्रकार दिव्यांग जनों हेतु बनाए गए सेवालय एवं विद्यालय बंद होते रहे तो अंततः दृष्टिबाधितों का जीवन बहुत ही कष्टप्रद एवं सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हो जाएगा और उन्हें जीवन की तमाम संभावनाओं के साथ जीने की संभावना ही समाप्त हो जाएगी। इस लिए अभय जनपद सोनभद्र में विश्वस्तरीय दृष्टिबाधित दिव्यांग महाविद्यालय के निर्माण के लिए कृत संकल्पित हैं और उसके लिए जरूरी संसाधनों जैसे आम जनमानस का सहयोग, जमीन एवं निर्माण के लिए धन आदि की व्यवस्था में जुट गए हैं। इसी क्रम में वह तमाम विशेषज्ञों, प्रसिद्ध एवं ख्यातिलब्ध लोगों से मुलाकात भी कर रहे हैं और उनसे आशीर्वाद और सहयोग हेतु प्रार्थना भी कर रहे हैं। आप सब से भी निवेदन है कि अभय कुमार शर्मा के इस पावन और पुनीत कार्य में सहभागी बने एवं जनपद सोनभद्र में एक विश्व स्तरीय दृष्टिबाधित दिव्यांग महाविद्यालय की संकल्पना को साकार करने में सहयोग करें।