अखंड सौभाग्य की कामना से महिलाओं ने किया वट वृक्ष की पूजा

शनि अमावस्या वट सावित्री व्रत पर्व विशेष

सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)। अखंड सौभाग्य के व्रत पर्व शनि अमावस्या के दिन वट सावित्री पूजन हेतु भारी संख्या में सौभाग्यवती महिलाएं विद्युत विहार शक्तेश्वर महादेव मंदिर परिसर स्थित वटवृक्ष पर पहुंच विधि विधान से वटवृक्ष की कच्चे धागे से 108 परिक्रमा कर पूजन सामग्री अर्पित करने के पश्चात सती सावित्री देवी की महिमा और यमराज से अपने मृत्यु पश्चात पति सत्यवान के प्राण वापस लाने की कथा सुनी। सती सावित्री की कथा सुमन त्रिपाठी द्वारा वहां मौजूद दर्जनों महिलाओं के साथ कही गई। उन्होंने कथा में बताया कि स्कंद पुराण के अनुसार देवी सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु हो जाने पर सावित्री द्वारा पति के प्राण वापस लाने की कथा का जिक्र बट सावित्री व्रत कथा में किया गया है । यह कथा सौभाग्य प्रदान करने वाला है इसलिए वट सावित्री व्रत के दिन

वटवृक्ष के नीचे इस कथा का विस्तार पूर्वक पाठ करना चाहिए और सुहागन महिलाओं को इस कथा को सुनना चाहिए । इस कथा को देवताओं के भी देवता जगतपति शंकर भगवान ने देवी पार्वती जी से कही थी। महादेव ने पार्वती देवी से कहा कि मध्य प्रदेश के धर्मात्मा राजा अश्वपति को कोई संतान नहीं थी तब उन्होंने रानी के साथ इस व्रत को किया था जो सावित्री व्रत नाम से प्रसिद्ध हुआ और ब्रह्मा जी की प्रिया सावित्री देवी ने प्रसन्न होकर अश्वपति के घर कन्या रूप में सावित्री के अंश से उत्पन्न हुई थी तो राजा अश्वपति ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा। बड़ी होने पर राजा ने अपनी पुत्री को स्वयं अपना वर चुनने को कहा तो सावित्री साल्व देश में धर्मात्मा द्युमत्सेन नाम से विख्यात क्षत्रिय राजा जो नेत्रहीन थे उनका राज पाठ सामंत ने छीन लिया था वह अपने पुत्र और पत्नी के साथ वन में रहते थे उनका पुत्र सत्यवान था जिसको उन्होंने अपने मन में पति रूप में वरण कर लिया । जिनकी आयु मात्र 1 वर्ष शेष थी और निश्चित समय आने पर यमराज उनका प्राण हरण करने आ गए और जब उनका प्राण लेकर यमराज यमलोक को चले तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दीं। अंततः उन्होंने अपने वंश परंपरा चलाने हेतु वर मांगा तो यमराज ने तथास्तु कह दिया जिसके बाद सावित्री ने उनसे कहा कि आप मेरे पति का प्राण ले जा रहे हैं तो आपका दिया वर कैसे पूर्ण होगा। इसके बाद यमराज ने सती सावित्री की वाकपटुता से अत्यधिक प्रसन्न हो सत्यवान के प्राण लौटा दिया। इस तरह तब से हर सौभाग्यवती सनातनी नारी बट सावित्री व्रत कर माता सती सावित्री से सौभाग्यवती और सुखमय जीवन की मंगल कामना करती है।

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