कंडाकोट धाम से जुड़ी है विंध्य पर्वत और अगस्त्य ऋषि की कथा

विजय शंकर चतुर्वेदी की बसंत पंचमी पर विशेष रिपोर्ट

कंडाकोट धाम से जुड़ी है विंध्य पर्वत और अगस्त्य ऋषि की कथा

  • पूरे देश से कंडाकोट धाम आते हैं श्रद्धालु
  • भगवान गिरिजा शंकर का स्थित है यहां मंदिर सोनभद्र, भगवान गिरिजा शंकर का धाम उत्तर भारत का प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र कंडाकोट धाम एक पौराणिक घटनाक्रम का साक्षी है। यही वह स्थान है जहां विंध्य पर्वत झुका था । विंध्य पर्वत की इतनी क्षमता थी कि ऊंचाई की सारी सीमा तोड़ सकता था, विनम्र इतना कि आज भी दंडवत पड़ा हुआ है।
    कंडाकोट धाम पर पुस्तक लिखने वाले लेखक विजय शंकर चतुर्वेदी के अनुसार पुराण और शास्त्रों की यह गाथा सिर्फ सोनभद्र की सांस्कृतिक पहचान नहीं गढ़ती बल्कि इस क्षेत्र को गौरवशाली भी बनाती है। सुमेरु पर्वत से चुनौती लेकर एक बार विंध्य पर्वत अपनी ऊंचाई बढाने लगा । विंध्य ने अपनी ऊंचाई इतनी बढाई कि वह पृथ्वी और सूर्य की परिक्रमा पथ में आ गया , सभी देवता घबरा गए, क्योंकि विंध्य की लगातार ऊंचाई के बढ़ने से सृष्टि विनाश का खतरा पैदा हो गया था, सभी देवता घबराए हुए भागकर भगवान विष्णुजी के पास गए और अनुरोध किया कि वे विंध्य को तत्काल रोकें की वह अपनी ऊंचाई को बढ़ने से तत्काल रोके, विष्णु भगवान ने असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते, सिर्फ विंध्य के गुरु अगस्त्य ऋषि ही विंध्य को रोक सकते हैं। देवताओं ने ऋषि अगस्त्य के पास जाकर अपना अनुरोध दुहराया ।
    अगस्त्य ऋषि दक्षिण भारत जाने के लिए द्वितीय काशी कहे जाने वाले स्थान ( वर्तमान का सोनभद्र ) से गुजर रहे थे, उन्हें दक्षिण भारत के तमिलनाडु जाना था , वे वहां के आदिगुरु भी कहे जाते थे ।यहीं कंडाकोट नामक स्थान पर विंध्य पर्वत अपने गुरु ऋषि अगस्त्य के अभिवादन के लिए दंडवत झुका , ऋषिवर अगस्त्य ने कहा कि प्रसन्न रहो लेकिन ऐसे ही पड़े रहो । गुरु के आदेश से हिमालय से भी महत्वपूर्ण पर्वत विंध्य आज भी वैसे ही पड़ा है।
    पुराण की यह गाथा द्वितीय काशी या गुप्त काशी क्षेत्र को और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
    श्री चतुर्वेदी ने बताया कि सम्पूर्ण उत्तर भारत में किसी एक स्थान का चयन करना हो जहां सृष्टि का सृजन, मानव सभ्यता का विकास, तंत्र पीठ,आध्यात्मिक और सकारात्मक ऊर्जा के केंद्र , शिव और शक्ति के केंद्र इत्यादि सभी विषय एक साथ जानना हो तो कंडाकोट पहाड़ी का भ्रमण पर्याप्त होगा । इस स्थान पर बसंत पंचमी व शिवरात्रि को विशाल मेला लगता है। कंडाकोट को तंत्र पीठ भी कहा जाता है, वर्तमान समय में गुप्त नवरात्र भी चल रहा है, ऐसे में इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है।
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