भगवान के चौबीसों औतारों में सर्वश्रेष्ठ हैं रामावतार व कृष्णावतार

संजय द्विवेदी/रामजियावन गुप्ता , अनपरा (सोनभद्र) श्रीमद्भागवत महापुराण के चौथे दिवस ग्वालियर से पधारे कथावाचक श्यामसुंदर पाठक जी शरण देवाचार्य महाराज ने गजग्रहा, रामावतार व कृष्णावतार की कथा का व्याख्यान करते हुए द्वितीय स्कन्ध से दशम स्कन्ध भगवान श्रीकृष्ण की जन्म लीला का वर्णन किया। श्रीमद्भागवत कथा ब्रह्मांड की उत्पत्ति एवं उसमें विराट पुरुषों की स्थिति का स्वरूप एवं ब्रह्मा जी के जन्म का रहस्य बताया। कहा कि ब्रह्माजी ने नारद जी से कहा कि हे पुत्र मैं अपने पिता श्री नारायण जी का ध्यान करता हूं, जो सर्वोपरि, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सृष्टि के रचयिता हैं।

ब्रह्माजी ने बताया कि जब मैने स्वयं को नाभि-कमल पर बैठे हुआ पाया तो मैंने अपने जन्म के बारे में जानना चाहा। इसलिए कमल-नाल के सहारे मैं कई योजन नीचे गया। मुझे उस कमल नाल का कोई ओर-छोर, अंत या किनारा नहीं मिला। तब मुझे दो अक्षर “त” और “प” ही सुनाई दिए और मैंने सौ वर्ष तक तप किया। ब्रह्मा जी की निष्कपट तपश्चर्या से “आदिनारायण” भगवान प्रकट हुए और उन्होंने मुझे सृष्टि की रचना करने की आज्ञा दी। तत्पश्चात मैंने आदिनारायण भगवान की बहुत प्रकार से स्तुति और प्रार्थना करते हुए कहा कि हे प्रभु मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिए जिससे कि सृष्टि-रचना करते हुए मुझे सृष्टि का रचयिता होने का कभी अहंकार या अभिमान न हो। “ब्रह्मा जी की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान ने ब्रह्मा जी को चार श्लोकों की भागवत सुनाई ब्रह्मा जी देवता, दानव तथा सभी जीवों के पितामह हैं, फिर भी वे विशेष रूप से धर्म के पक्षपाती हैं। देवासुरादि संग्रामों में पराजित होकर देव गण ब्रह्मा के पास जाते हैं तो ब्रह्मा जी धर्म की स्थापना के लिये भगवान विष्णु को अवतार लेने के लिए प्रेरित करते हैं। भगवान विष्णु के प्राय: चौबीस अवतारों में ये ही निमित्त बनते हैं। उक्त बातें ग्वालियर से आए कथावाचक श्यामसुंदर पाठक जी शरण देवाचार्य महाराज ने भक्तों से श्री कृष्ण का जन्मोत्सव के बारे में विस्तारपूर्वक बताया कहा कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’ कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा मैया को भी बच्चा होने वाला था। उन्होंने वासुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी तथा भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी मैया के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया । भागवत कथा के आयोजन होने से पूरे क्षेत्र में भक्ति और उत्साह का माहौल बना हुआ है। गोलोकवासी छोटेलाल गुप्ता व अनारी देवी के स्मृति में यजमान श्री शिव दयाल गुप्ता जी व श्रीमती सुधा गुप्ता जी के सानिध्य में आठ दिवसीय भागवत कथा को संचालन के लिए सहयोगी व मित्रगण मुख्य रूप से कन्हैया गुप्ता,अमन गुप्ता गोपाल दास गुप्ता, राजेश गुप्ता, विष्णु शंकर दुबे, गोपाल चौरसिया, विवेक जायसवाल,विनोद गर्ग,मंतोष तिवारी,विवेक कुशवाहा, ओमप्रकाश जायसवाल, राधामोहन राय,गौरव अग्रवाल, ललित सागर,भोला गुप्ता,राम जी गुप्ता, मंटू पाण्डेय, मुकेश कुशवाहा, विजय सिंह,श्रवण प्रजापति इत्यादि कथा कि ब्यवस्था में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

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