जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भारतीय वैदिक ज्योतिष मे रोहिणी नक्षत्र के जातक

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भारतीय वैदिक ज्योतिष मे रोहिणी नक्षत्र के जातक

भारतीय वैदिक ज्योतिष मे रोहिणी नक्षत्र के जातक

राशिफल में रोहिणी नक्षत्र 40.00 अंशों से 53.20 अंशों के मध्य स्थित हैं। रोहिणी के पर्यायवाची नाम हैं-विधि, विरंचि, शंकर अरबी में इसे अल्दे वारान कहते हैं।

रोहिणी नक्षत्र के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। कहीं उसे कृष्ण के अग्रज बलराम की मां कहा गया है तो कहीं लाल रंग की गाय । उसे कश्यप ऋषि की पुत्री, चंद्रमा की पत्नी भी माना गया है।

रोहिणी की आकृति स्थ की भांति आंकी गयी है। उसमें कितने तारे हैं, इस विषय में मतभेद हैं। सामान्यतः रोहिणी नक्षत्र में पांच तारों की स्थिति मानी गयी है। दक्षिण भारत के ज्योतिषी रोहिणी में बियालिस तारों की उपस्थिति मानते हैं। उनके लिए रोहिणी वट वृक्ष स्वरूप का है।

यह नक्षत्र वृष राशि (स्वामी शुक्र) के अंतर्गत आता है। रोहिणी के देवता ब्रह्मा हैं और अधिपति ग्रह-चंद्र।

गण: मनुष्य योनिः सर्प व नाड़ी: अंत्या चरणाक्षर हैं- ओ, वा, वी, वू रोहिणी नक्षत्र में जातक सामान्यतः छरहरे, आकर्षक नेत्र एवं चुम्बकीय व्यक्तित्व वाले होते हैं। वे भावुक हृदय होते हैं और अक्सर भावावेग में ही निर्णय करते हैं। उन्हें तुनुकमिजाज भी कहा जा सकता है और उनका हठ लोगों को परेशान कर देता है। उनमें आत्म लुब्धता की भावना भी होती हैं। वे औरों पर तत्काल भरोसा कर लेते हैं और धोखा भी खाते हैं। लेकिन यह सब उनकी सत्यनिष्ठता में कोई कमी नहीं लाता।

ऐसे जातक वर्तमान में ही जीते हैं, कल की चिंता से सर्वथा मुक्त उनका जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहता है। वे हर कार्य निष्ठा से संपन्न करना चाहते हैं, पर अधैर्य उन्हें कोई भी कार्य पूरा नहीं करने देता। उनकी ऊर्जा बंट सी जाती है। वे एक को साधने की बजाय सबको साधने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसे जातकों को यह उक्ति याद रखनी चाहिए कि एक ही साधे सब सधे, सब साधे सब जाय! यदि वे अधैर्य त्याग कर संयमित होकर कार्य करें तो जीवन में यशस्वी भी हो सकते हैं।

युवावस्था उनके लिए सतत् संघर्ष लेकर आती है। आर्थिक समस्याओं के अतिरिक्त स्वास्थ्य की गड़बड़ी भी उन्हें परेशान किये रहती है। अड़तीस वर्ष की अवस्था के बाद ही जीवन में स्थिरता आती है।

ऐसे जातक माता के प्रति विशेष आसक्त होते हैं। मातृपक्ष से ही उन्हें लाभ भी होता है। पिता की ओर से उन्हें कोई विशेष लाभ नहीं होता ।

ऐसे जातकों में यह भी देखा गया है कि जरूरत पड़ने पर वे तमाम रीति-रिवाजों और मान्यताओं को तिलांजलि भी देते हैं। ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन भी विशेष सुखद नहीं बताया गया है।

रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातक रक्त संबंधी विकारों के शिकार हो सकते हैं- यथा रक्त का मधुमेह आदि । रोहिणी नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं भी सुंदर एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाली होती हैं। वे सद्-व्यवहार वाली होती हैं तथापि प्रदर्शन- प्रिय भी, रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातकों की तरह वे भी तुनुकमिजाजी के कारण दुःख उठाती हैं। वे व्यवहारिक होती हैं, अतः वे थोड़े से प्रयत्न से अपनी इस आदत पर काबू पा सकती हैं। ऐसी जातिकाएं प्रत्येक कार्य को भली भांति करने में सक्षम होती हैं। फलतः उनका पारिवारिक जीवन भी सुखी होता है। लेकिन पूर्ण वैवाहिक एवं पारिवारिक सुख प्राप्त करने के लिए उन्हें अपने ही स्वभाव पर अंकुश लगाने की सलाह दी जाती है। ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है।

रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी मंगल, द्वितीय चरण का शुक्र, तृतीय चरण का बुध एवं चतुर्थ चरण का स्वयं चंद्र होता है।

क्रमशः… आगे के लेख मे मृगशिरा नक्षत्र के विषय मे विस्तार से वर्णन किया जाएगा।

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