हर्षोल्लास के साथ बहनों ने मनाया भैया दूज का पर्व

गाय के गोबर से बनाई गई विविध आकृतियां, लोक कथाओं का किया वाचन

सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)। जनपद के विभिन्न अंचलों में कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भैया दूज का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर बहनों ने अपने भाईयों के लिए व्रत रखा और आंगन, पोखरा, तालाब, नदी के किनारे खुले स्थान पर गोबर से जमीन पर अलंकरण बनाया। नगर की संभ्रांत ग्रहणी प्रतिभा देवी के अनुसार आज के दिन जिसको जितना सरापा जाएगा उसकी उतनी ही उम्रअधिक होगी।वह अपने भाइयों का नाम लेकर उनके चिरायु होने तथा भाभी के सौभाग्य की कामना करती हैं, अलंकरण के मध्य में एक मूर्ति

बनाती हैं,इसे गोधन कहते हैं। वही शिक्षिका तृप्ति केसरवानी की माने तो इस दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना के अनेकों बार बुलाने के बाद उनके घर गए थे। यमुना ने यमराज को भोजन कराया और तिलक कर उनके खुशहाल जीवन की प्रार्थना की। प्रसन्न होकर यमराज ने बहन यमुना से वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा आप हर साल इस दिन मेरे घर आया करो और इस दिन जो बहन अपने भाई का तिलक करेगी उसे आपका भय नहीं रहेगा। यमराज ने यमुना को आशीष प्रदान किया। पूजा में भाग लेने वाली रीना देवी के अनुसार नरक चतुर्दशी एवं भैया दूज यमराज से संबंधित त्यौहार है और इस दिन यमराज को प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ हवन इत्यादि श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता है। गीता देवी का मानना है कि भारतीय मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करते हैं यह परंपरा सिर्फ हमारे देश में ही कायम है और अनंत काल तक कायम रहेगी। दूज का पर्व भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। कथा वाचिका अमरावती देवी बताती है कि भाई दूज के दिन भगवान कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे। इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल,फूल, मिठाई और अनेकों दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। सुभद्रा ने भगवान श्रीकृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी। नगर सहित आसपास के क्षेत्रों में इस तरह के कई कार्यक्रम महिलाओं द्वारा संपादित किए गए।

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