राम को वन जाते हुए देख नम हुई लीला प्रेमियों की आंखें

आदित्य सोनी

रेणुकूट (सोनभद्र)। हिण्डाल्को रामलीला परिषद् द्वारा हिण्डाल्को रामलीला मैदान पर आयोजित हो रही रामलीला के चौथे दिन राम राज्याभिषेक की घोषणा, राम वन गमन, राम-केवट संवाद एवं दशरथ स्वर्गवास आदि लीलाओं को बहुत ही सजीवता से मंचन हुआ। लीलाओं में चारो भाई विवाहोपरांत अयोध्या लौटते है और मंत्रिगणों से मंत्रणा करके राजा दशरथ श्रीराम को अयोध्या की राजगद्दी सौंपने की घोषणा करते हैं। अयोध्यावासी पूरे हर्ष-उल्लास के साथ भगवान राम के राज्याभिषेक की तैयारियों में लगे होते हैं तो

इधर नारदजी सोचते है कि यदि रामचन्द्रजी राज-पाट में लग गए तो राक्षसों का संहार कैसे होगा और इस हेतु मां सरस्वती की सहायता से मंथरा के मन में भरत को राजगद्दी और श्रीराम को सात वर्ष के वनवास की कुबुद्धी भर देते हैं। मंथरा कैकेई के कान भरती है और मंथरा की बातों में आकर राजा दशरथ द्वारा दिए गए वरदानों के बदले में भरत के लिए अयोध्या की राजगद्दी और राम के लिए सात वर्ष का वनवास मांग लेती है। पिता के वचनों का पालन करते हुए माता सीता व भ्राता लक्ष्मण के साथ श्री राम वन को प्रस्थान करते है। इस मार्मिक दृश्य को देखकर लीला प्रेमियों की आंखें भी नम हो उठती हैं। उधर अहिल्या प्रसंग के कारण केवट राज श्री राम को नदी पार कराने को तैयार नही होते परन्तु राम द्वारा समझाने पर केवट राज मान जाते हैं और श्रीराम वहां से अयोध्यावासियों से विदा लेते हैं। अयोध्या में श्रीराम के विछोह में राजा दशरथ भी अपना शरीर त्याग देते हैं और इसी के साथ चतुर्थ दिन की लीलाओं का समापन होता है। इससे पूर्व मुख्य अतिथि हिण्डाल्को एल्युमिना प्लांट के हेड एन. एन. रॉय, विशिष्ट अतिथि हिण्डाल्को के वरिष्ठ अधिकारी विकास कुमार, किरण कुमार एवं रामलीला परिषद् के अध्यक्ष प्रमोद उपाध्याय ने गौरी-गणेश पूजन कर चौथे दिन की लीलाओं का शुभारंभ किया।

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