राम वनवास और दशरथ विलाप देख दर्शकों की भर आईं आंखें

सत्यदेव पांडेय

चोपन-सोनभद्र। चोपन रामलीला कमेटी व रामलीला सब्जी मंडी मैदान के मंच पर हृदय विदारक राम वनवास का मंचन किया गया। इधर, शाहगंज, के माध्यम से काशी विश्वनाथ रामलीला शाहगंज के द्वारा सीता स्वयंवर, परशुराम संवाद और रामवनवास और कैकेयी का कोप भवन में जाना दिखाया गया। शनिवार की रात रामवनवास के हृदय विदारक दृश्य को देखकर लोगों की आंखों से आंसू छलक गए। चोपन बैरियर रामलीला कमेटी के मंच पर राम बनवास का हुआ मंचन के मंच पर राम वनवास का शानदार मंचन किया गया। कमेटी के निर्देशक चोपन थाना प्रभारी लक्ष्मण पर्वत ने बताया कि कला को समझने वाले दर्शकों को सबसे बेहतरीन रामलीला राम वनवास में देखने को मिलती है, जहां कलाकरों के अभिनय से दर्शक आनंदित होते हैं। शनिवार को सबसे पहले राम, लक्ष्मण व सीता अयोध्या पधारते हैं। अगले दृश्य में राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से राम का राजतिलक करने निर्णय लेते हैं, लेकिन मंथरा यह सुनकर कैकेयी को भड़काने के लिए चल देती है। अगले दृश्य में मंथरा कैकेयी को भड़काती है कि राम को राजा बनाया जा रहा है और भरत को अब राम के अधीन रहना पड़ेगा। मंथरा के बहुत कहने पर कैकेयी भी मान जाती है कि राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांगने का समय आ गया है। मंथरा का किरदार पहली बार निभा रहीं अभिनेत्री रामबली की अदाकारी दर्शकों को खूब पसंद आई। अगले दृश्य में कैकेयी कोप भवन में राजा दशरथ को बुलाती है और उनसे अपने दो वरदान मांगती है तो राजा दशरथ कहते हैं कि कहा इक बार जो, अंतिम मेरा वचन होगा, कसम है राम की दशरथ, नहीं मिथ्या कथन होगा। तब कैकेयी अपने पहले वरदान में भरत को राज और दूसरे वरदान में राम को चौदह वर्ष का वनवास मांगती है। फिर राम, लक्ष्मण और सीता के साथ भगवा वस्त्र पहनकर वनवास की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। राम के वियोग में राजा दशरथ अपने प्राण त्याग देते हैं। दशरथ की भूमिका में रमेश शर्मा और कैकेयी के किरदार में श्रीकांत ने अपने अभिनय से दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं। अंतिम दृश्य में केवट अपनी नाव में राम, लक्ष्मण और सीता को गंगा पार करवाते हैं। केवट के किरदार में रामलीला के सबसे वरिष्ठ कलाकार धीरेंद्र पांडे ने बहुत खूबसूरत अभिनय किया।

लाज रख मईया मेरी, अपने दिए संस्कार की अब दो विदाई राम को उसके नए संसार की चोपन बैरियर रामलीला कमेटी ने शनिवार को मंच पर हो रहे वनवास के दृश्य ने दर्शकों की आंखें आंसुओं से भिगो दीं। श्रीराम का किरदार निभा रहे शिवांशु पांडे ने अपनी माता कौशल्या (श्रीकांत) से जाने की आज्ञा मांगी और मां पुत्र के उस प्रसंग से वहां मौजूद दर्शक भाव विभोर हो गए। यहां श्रीराम ने अपनी माता को अपने ही दिए संस्कारों का वास्ता देकर कहा – लाज रख मईया मेरी, अपने दिए संस्कार की, अब दो विदाई राम को उसके नए संसार की। संगीत पार्षद पूर्व निर्देशक स्वर्गीय विश्वबंधु द्वारा रचित गीत पर पालन करने मैं चला, मुझे बन को जाने दे मंच पर गाया गया। इसके बाद माता सीता (दिव्यांशु पांडे ) एवं लक्ष्मण (हिमांशु पांडे) ने साथ चलने का आग्रह किया, जिस पर श्रीराम के साथ उनका बेहतरीन प्रसंग दर्शाया गया। सीता के किरदार को कलाकार ने मंच पर जीवंत कर दिया। अंत में तीनों ने वनवास की राह ली और भगवा वस्त्रों में पुत्रों को महल छोड़ते देख दशरथ (रमेश शर्मा) के विलाप ने दर्शकों को भी रुला दिया। कौशल्या का रुदन देखकर सबकी पलकें भींग गईं। श्याम सुंदर पांडे ने बताया कि इस दृश्य के लिए सबसे ज्यादा रिहर्सल किया गया है क्योंकि इसका सीधा जुड़ाव लोगों के दिल से होता है और जहां दिल के तार छेड़ना हो, वहां उम्दा अभिनय की आवश्यकता पड़ती है। अंत में महाराज दशरथ ने राम के वियोग में अपने प्राण त्याग दिए।

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