भाव एवं भावना के साथ हम हिंदी से जुड़ें: डॉ राम मोहन पाठक

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं की भूमिका विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

हिंदी को राष्ट्रभाषा बना दिया जाए और अंग्रेजी को संपर्क भाषा के रूप में चलने दिया जाए:राष्ट्रीय संयोजक

सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)। हिंदी बने राष्ट्रभाषा मंच द्वारा शुक्रवार को राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर गूगल मीट एवं यूट्यूब लाइव चैनल पर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान देश के विभिन्न भागों से हिंदी के विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए। बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा एवं नेहरू ग्राम भारती डीम्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर राममोहन पाठक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए आजादी के पूर्व के संकल्प को रेखांकित किया और कहां कि हमारा संकल्प था “स्वाभिमान, स्वाधीनता एवं स्वभाषा” जिसे गांधीजी भी भली-भांति समझते थे। उन्होंने कहा कि हम भाव एवं भावना के साथ हिंदी से जुड़े। हमारा संकल्प भाव एवं

भावनाओं का होता है आंकड़ों का नहीं। स्वतंत्रता से लेकर संविधान बनने तथा अब तक की स्थिति पर मुख्य अतिथि ने विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संविधान के किसी विषय पर विशेष चर्चा हुई है तो वह राजभाषा है। चंडीगढ़ से भारत सरकार के अधीनस्थ विभाग में कार्यरत राजपत्रित अधिकारी एवं युनाइटेड ब्यूरो ऑफ ह्यूमन राइट एंड क्राइम कंट्रोल के सलाहकार सुरेश वर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएं हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने देश की विभिन्न हिंदी संस्थाओं काशी नागरी प्रचारिणी सभा, प्रयाग हिंदी सम्मेलन, वर्धा आदि के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि हिंदी विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने तथा रोजगार के लिए विदेश में रह रहे भारतीयों को भी हिंदी के प्रचार-प्रसार का श्रेय दिया तथा सुझाव दिया कि इन लोगों से हमें जुड़े रहने की आवश्यकता है।
पीआरएसआई वाराणसी चैप्टर के पूर्व चेयरमैन एवं स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेस के संकाय अध्यक्ष प्रो. आरके सिंह ने राष्ट्रीय संगोष्ठी कराने के निर्णय को एक साहसिक कदम बताया तथा हिंदी बने राष्ट्रभाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक के इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि प्रबंधन को माना जाता है कि यह ग्लैमर की दुनिया है यहां अंग्रेजी ही चलती है। हमें अपने प्रोफेशन में हिंदी, अंग्रेजी के साथ भोजपुरी भी बोलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हमें हिंदी का विद्वान नहीं हिंदी का प्रेमी होना चाहिए। कोलकाता से हिंदी साहित्य परिषद अंतरराष्ट्रीय साहित्य संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय शुक्ला ने कहा कि हमारे देश में ही हिंदी को वह गौरव नहीं प्राप्त हो रहा है जिसका वह हकदार है। हिंदी ने अपना विस्तार कर लिया है, आज हिंदी विश्व में दूसरे नंबर पर स्थापित हो चुकी है। हिंदी भाषा साहित्य को जन जागरण की आवश्यकता नहीं है बशर्ते सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की संवाद की भाषा को हिंदी कर दिया जाए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मीडिया फोरम ऑफ इंडिया न्यास के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एवं सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार तथा लखनऊ से प्रकाशित एक हिंदी दैनिक के समाचारपत्र के समाचार संपादक मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी ‘मधु’ ने संगोष्ठी के विषय की सराहना करते हुए कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय ही स्वत: यह आयोजन अपने आप में हिंदी को गौरवान्वित करने का संदेश दे रहा है। आज हमें और सभी हिंदी प्रेमियों को संकल्प लेने की जरूरत है कि हम अपने घर, पड़ोस, कस्बे तथा अपने संस्थानों में हिंदी को बढ़ाने देने का काम करेंगे। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हम सभी हिंदी प्रेमियों को चाहिए कि हम हिंदी को बढ़ावा दें, हिंदी में बोलें तथा अपने कस्बे, गांव से प्रदेश एवं देश तक इसे को फैलाने का काम करें। यदि ऐसी संकल्पना को हम सभी मूर्त रूप दें तो हिंदी के क्षेत्र में काम कर रही सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएं भी ऐसा करने का नज़ीर पेश करेंगी।
गाजियाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार एवं हिंदी बने राष्ट्रभाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ‘शिखर’ ने सभी जुड़े हुए वक्ताओं, श्रोताओं एवं मुख्य अतिथि का स्वागत किया। स्वागत उपरांत उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र के उस कथन का याद दिलाया कि वह दिन दूर नहीं जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा हिंदी होगी, परंतु आज 75 वर्षों बाद भी मां भारती राष्ट्रभाषा का इंतजार कर रही है। उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्रीय कार्यालयों की भांति राज्यों के सरकारी संस्थाओं एवं गैरसरकारी संस्थाओं में राजभाषा नियम लागू किया जाए फिर हिंदी स्वत: ही अपना स्थान बना लेगी। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बना दिया जाए और अंग्रेजी को संपर्क भाषा के रूप में चलने दिया जाए।
कार्यक्रम का संचालन , यू ट्यूब पर लाईव प्रसारण तथा धन्यवाद ज्ञापन ” हिंदी श्री” पटल की संचालिका एवं वीर रस की कवयित्री सृष्टि ‘राज’ ने किया।उक्त कार्यक्रम में सोनभद्र से चंद्रशेखर जोशी, शक्तिनगर से एस के सिंह, खड़िया से बहर बनारसी , बकरिहवां से रविन्द्र श्रीवास्तव, कोटा से चंद्र मोहन चौहान, बरेली से रामबदन प्रसाद, गोंडा से प्रभात राजपूत राज गोंडवी, गाजियाबाद से प्रीति तिवारी आदि विभिन्न राज्यों से सैकड़ों लोग बतौर श्रोता जुड़े रहे।

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