सावन में भी सिवान दिख रहा विरान

लोक जीवन की हर खुशियों पर चला इंद्रदेव का अप्रत्यक्ष वज्र, नहीं गूंज रही कजरी की गूंज

पानी के अभाव में नहीं हो रही धान की रोपाई, सूखे की आशंका से किसान चिंतित

शाहगंज-सोनभद्र(ज्ञानदास कन्नौजिया)। वर्तमान में जो स्थिति दृष्टिगोचर हो रही है उससे यही लगता है कि इस साल सोनांचल की सुहागिनी बहुरिया अपने परदेसी पिया को घर बुलाने वाली गीत नहीं कर सकेंगी। उल्टे जिनके पति घर बैठे होंगे उन्हें परदेस धकेलने के लिए नए- नए गीत रचेंगी। इंद्रदेवता के कोपने लोक जीवन के हर सुकून और खुशियों पर अपना अप्रत्यक्ष वज्र चला दिया है। बताते चलें कि मानसून की बेरुखी से लोगों के माथे पर कुछ अनजान साथ दाग अंकित होने लगा है। महाकवि घाघ की एक-एक पंक्ति अक्षरस: सच साबित होती जा रही है। जायसी ने सखियों द्वारा दिलासा दे दिया था, लेकिन इस वर्ष अकाल पड़ने के संकेत से वियोगी किसानों को कौन दिलासा देने आएगा। उनको तो सब कुछ लुटा -लुटा सा महसूस होने लगा है। बरसात चाहे भले ही समय से शुरू हुई हो, घर में जो कुछ था उसका एक हिस्सा खर्च कर कच्चे घर की मरम्मत करा दिए। उसके बाद नम खेतों की जुताई, धान की नर्सरी में बीज डालकर बैठ गए। खेती की तैयारी में अरहर, मक्का, उर्द, तिल आदि जाने क्या-क्या खेतों में वो दिया। जिस महीने में झमाझम बारिश होनी चाहिए, उस महीने में खेत सूखे पड़े हैं। अभी तक ऐसी बरसात नहीं हुई जिससे धरती तृप्त हो सके। जाने कौन सी विडंबना है जो मानसून को कुपित कर दे रही है। मालूम हो कि लोक जीवन, वर्षा ऋतु और कजरी विधा का धना अन्तरसंबंध यहां के हर वाशिंदे की रग-रग में बसा है। सच कहें तो कजली जनपद के कृषि जीवन का सबसे जीवन्त और सरस दस्तावेज है। आधे आषाढ़ तक जब खेतों, सिवानो, नदी- नालों, ताल -पोखरो और बगीचों में पानी भर जाता है और जमीन से लेकर नीले आसमान तक में मनोहारी नमी फैल जाती है, मानसून उस समय केवल प्राकृतिक उपादानों में ही नहीं बल्कि मनुष्य समुदाय के मन और आत्मा में संगीत का एक विरल प्रवाह अनायाश फूंक मारने लगता है। किसानों के ललनाओं के कंठ से भी स्वत: कजली के बोल फूट पड़ते हैं। जरई उखाड़ते, धान की रोपाई करते कछाड़ मारे महिलाओं का समूह मदहोशी की दशा में इस गीत का जो अलार्म करती है, उससे निष्ठर व्यक्ति का भी मन मयूर बनकर थिरकने लगता है। किंतु मालूम होता है इस साल ऐसा कुछ भी नहीं होगा। क्योंकि सावन में भी चौतरफा उजाड़ सा दृश्य छाया है। नदी- नाले, ताल -पोखरे सूखे पड़े हैं। धान की थोड़ा- बहुत रोपाई वही किसान कर रहे हैं जिनके पास सिंचाई का अपना निजी साधन है। या फिर जिस इलाके में नहरों का पानी पहुंचा है। किसान उमडते – घुमडते और गरजते काले कजरारे मेघों की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। इन्हें उम्मीद है कि शायद सावन मास के आखिरी में अच्छी बरसात हो जाए।

बादलों का खेल किसानों को नहीं आ रहा रास

शाहगंज (सोनभद्र)। बारिश ने इस वर्ष किसानों के साथ धोखा दिया है। आकाश में बादल छा रहे हैं, पर बरस नहीं रहा है जितना कि बरसना चाहिए। कभी -कभार तो बिना बरसे ही वापस चले जाते हैं मेघ। आवारा बादलों का यह खेल किसानों को रास नहीं आ रहा है। बादल हाव-भाव तो इस कदर बना रहे हैं जैसे धरती पर पूरा पानी ही गिरा देंगे। किंतु सिर्फ रस्म अदायगी कर थोड़ी ही देर बाद हवा के साथ फूर्र हो जा रहे हैं।

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