बुकर के बुलंद दरवाजे पर हिंदी की जोरदार दस्तक है रेत समाधि: डॉ रचना तिवारी

उपन्यासकार गीतांजलि श्री को बहुत-बहुत बधाई!

सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)। रेत समाधि को बुकर पुरस्कार मिला यह भारत के लिए बहुत ही गर्व की बात है । यह बात है सोनांचल की प्रख्यात गीतकार और नामचीन साहित्यकार डॉक्टर रचना तिवारी ने इस संवाददाता से बातचीत करते हुए कही। उन्होंने इसके लिए उपन्यासकार गीतांजलि श्री और अनुवादक डेज़ी रॉकवेल को बधाई देते हुए कहा है कि रेत समाधि का अंग्रेज़ी में अनुवाद टॉम्ब ऑफ सैंड भले ही अंग्रेज़ियत की देह लेकर सम्मानित हुआ हो किन्तु उसकी आत्मा हिंदी ही रहेगी। डॉक्टर रचना तिवारी ने आगे कहा कि हिंदी लेखिकाओं के लिए यह सम्मान बहुत ही प्रेरणादाई है।

वार्ता को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि कुछ लोग पुरस्कारों को भी औरत मर्द की चकल्लस में फंसाकर उसकी रंगत पर तरह तरह के सवाल दागते हैं । डां रचना तिवारी मानती हैं कि ये सम्मान लेखन का हुआ है ,गीतांजलि श्री की प्रतिभा का हुआ है न कि किसी स्त्री का । लेखन एक यात्रा है जो किसी और के लिए नहीं स्वयं को जानने की यात्रा है। इसे और परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘एक स्त्री जब कुछ ऐसा रच रही होती है तो इस भीड़ से अलग एकांत में सर्जना का नीड़ बुन रही होती है,अकेलेपन में उत्सवरत हो रही होती है , सूनी दीवारों पर शब्दों की हलचल सुन रही होती है।’ वे कहती हैं कि स्त्री कोई भी हो वो अपने स्त्रीपन में तमाम ज़रूरतों को पूरा करने के बाद ही अपनी रुचियों को वक़्त दे पाती है जिसमे लेखन कठिन काम है। रचना तिवारी गदगद मन से कहती है कि सपनों की कोई उम्र नहीं होती ,कौन सा सपना दम तोड़ देगा या कौन सा सपना पलकर जवान होगा ये आप नहीं जानते । तीस साल की उम्र के बाद गीतांजलि श्री का लेखन जागा और आज बुकर आपके सामने हैं ,मैं तो वाक़ई बहुत ऊर्जावान हुई हूँ इस घटना से, हो सकता है नेपथ्य में कई गीतांजलि श्री अभी गर्भावस्था में स्वयं का निर्माण करने में जुटी हों । आगे यह भी कहती हैं कि इस दिखावटी दुनिया से दूर हो सकता है कोई स्त्री अपने नोबेल का निर्माण कर रही हो।लेखन की दुनिया मे भी स्त्री को कितना सुनना सहना पड़ता है वो मुझसे पूछिये। लिखते लिखते हम आत्मविश्वासी ,जुझारू, लौह हो जाते हैं ।समाज सोचता है स्त्री बड़ा काम तो करे किन्तु अपनी हंसी ,मस्ती ,अपना निर्णय सब कुछ रेहन पर रख दे । गीतांजलि जी बिंदास और अपनी शर्तों पर जीने वाली स्त्री हैं। बुकर के बुलंद दरवाज़े पर हिंदी की जोरदार दस्तक है रेत समाधि । मैंने रेत समाधि का कुछ अंश पढ़ा ,कठिन और घुमावदार शब्दों का संयोजन हैं, साथ ही लच्छेदार भाषा के छोटे छोटे टुकड़े। बहुत आसानी से ‘हाफ गर्ल फ्रेंड’ की तरह आप नहीं समझ सकते इस उपन्यास को । गीतांजलि जी कहती हैं कि बेटियां हवा से बनती हैं और प्यार की बात कभी भी की जा सकती है। ये सच है किन्तु ये कैसा समाज है जहां हर अनीति ,हत्या,भ्र्ष्टाचार, बलात्कार , हिंसा , भ्रूण हत्या सबकुछ हो सकता है किंतु एक स्त्री प्यार नहीं कर सकती ,अपनी खुशी नहीं जी सकती। कोई दोस्त नहीं बना सकती ,किसी के साथ घूम नहीं सकती। अपनी गीतों से बहुतायत लोगों को ऊर्जावान बना देने वाली रचनाकार डॉ रचना तिवारी का मानना है कि जो स्त्री अपनी रचनात्मकता के रास्ते मे दुष्ट आत्माओं की उलूल जुलूल की वाहियात बातों से रूबरू होकर भी अपने जीवन को अपने ढंग से जिये वही असली मायने में स्त्री है । हर हिंदी लेखन वाली बिंदास स्त्रियां जो खुद के प्रति ईमानदार हैं उनका कोई पथ निहारता पथिक है ,जो अच्छे लेखन की बांह थामकर फिर एक दिन कहेगा कि मैं बुकर हूं, मैं नोबेल हूँ ,आओ मेरे पास ले जाओ मुझे गर्व है स्त्री होने पर ।

Translate »