वटवृक्ष सावित्री पूजा का हैं पौराणिक महत्व
ओमप्रकाश रावत
विंढमगंज-सोनभद्र। बाजार के समीप सलैयाडीह में स्थित मां काली मन्दिर के प्रांगण में दिन सोमवार को सैकड़ों साल पुराने वटवृक्ष के पेड़ के नीचे सलैयाडीह ,विंढमगंज, मुड़ीसेमर धरतीडोलवा से आई हुई गांव की हजारों की संख्या मे महिलाओं की भीड़ भाड़ लगी रही। ब्रती महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा कर पति की लंबी दीर्घायु होने की कामना की। वट

सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को संपन्न किया जाता है। काली मंदिर के कथा कहने वाले राजीव रंजन तिवारी के द्वारा क्रमबद्ध तरीके से सभी को सावित्री कथा सुनाया गया। राजीव रंजन तिवारी ने बताया कि बट सावित्री पूजा यह स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन सत्यवान सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है। सावित्री ने इस व्रत के प्रभाव से अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज से छुड़ाया था। यह व्रत पति के दीर्घायु के अलावा यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी उचित बताया जाता है। बट सावित्री पूजा के दिन

सुहागिन स्त्रियां जल से वट वृक्ष को सींचकर तने को चारों ओर सात बार कच्चा धागा लपेट कर तीन बार परिक्रमा करती है। साथ ही पंखे से वट वृक्ष को हवा करें इसके बाद सत्यवान−सावित्री की कथा सुनती है क्योंकि इस पर्व में सावित्री कथा का बहुत ही महत्त्व होता है। इसके बाद भीगे हुए चनों का बायना निकाल कर उस पर यथाशक्ति रुपए रखकर अपनी सास को देना चाहिए तथा उनके चरण स्पर्श करने चाहिएं। घर आकर जल से अपने पति के पैर धोती हैं और आशीर्वाद लेती है। उसके बाद अपना व्रत खोलती हैं।
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