जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भांवरों के बाद सप्तपदी की रस्म क्यों?

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भांवरों के बाद सप्तपदी की रस्म क्यों?

भांवरों के बाद सप्तपदी की रस्म क्यों?

सात परिक्रमाएं पूर्ण कर लेने के बाद सप्तपदी की रस्म अदा की जाती है। इसके लिए वर-वधू साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर पहले से बना दी गई चावल की सात ढेरियों पर पैर लगाते हुए एक-एक कदम आगे बढ़ते हैं। रुकते हैं, फिर आगे बढ़ जाते हैं। इस प्रकार सात कदम साथ-साथ बढ़ाते समय पंडित प्रत्येक बार मंत्र उच्चारण करते जाते हैं। विवाह संस्कार पद्धति के अनुसार इसमें वचन और प्रतिज्ञाएं स्मरण कराई जाती हैं कि पति-पत्नी योजनाबद्ध प्रगतिशील जीवन के लिए देव-साक्षी में संकल्पित हो रहे हैं, जिसका लाभ वर-वधू को जीवन भर मिलता रहे। प्रत्येक कदम के साथ की भावनाएं इस प्रकार हैं।

पहला कदम अन्न वृद्धि के लिए उठाया जाता है। आहार का स्वास्थ्य से घनिष्ठ संबंध होता है, इसलिए उसकी सात्त्विकता का पूरा ध्यान रखें।

दूसरा कदम शारीरिक और मानसिक बल वृद्धि के लिए उठाया जाता है। शारीरिक परिश्रम और व्यायाम तथा अध्ययन और विचार विमर्श से शारीरिक और मानसिक बल बढ़ता है।

तीसरा कदम धन वृद्धि के लिए उठाया जाता है। घर की अर्थव्यवस्था को उचित ढंग से संभालने के लिए दोनों को प्रयत्न कर धन की वृद्धि करनी चाहिए।

चौथा कदम सुख वृद्धि के लिए उठाया जाता है। संतोषी सदा सुखी का सिद्धांत अपनाते हुए हास-परिहास, मनोरंजन में दोनों लिप्त रहें ।

पांचवां कदम कर्तव्य प्रजापालन के लिए उठाया जाता है। इसमें घर के सभी सदस्यों, आश्रितों, पशु-पक्षियों की देखभाल, उनकी उन्नति और घर की सुख-शांति कायम रखने की ओर ध्यान देने की भावना है।

छठा कदम ऋतुचर्या के लिए उठाया जाता है। ऋतु के अनुसार रहन-सहन करते हुए दांपत्य-जीवन संयम के साथ गुजारा जाए।

सातवां कदम पत्नी को अनुगामिनी, मित्रतापूर्ण व्यवहार के लिए उठाया जाता है। इसमें पति का अनुसरण करना, सौजन्यता, सहृदयता पूर्ण व्यवहार कायम करते हुए कोई भूल चूक होने पर क्षमा आदि का सहारा लेना, ताकि दांपत्य-जीवन सुख-शांति से सफलता पूर्वक व्यतीत हो सके।

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