कृष्ण पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाई जाती है नारद जयंती।
आदि संपादक हैं महर्षि व्यास।
लोक कल्याण के लिए समाचार, संदेश, सूचनाओं का होता रहा है प्रसारण
सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)। आदिकाल से ही मानव एक दूसरे को संदेश भेजने के नए-नए तरीकों की खोज करता रहा है।
संदेश भेजने के पुराने तरीके प्रारंभ में मनुष्य एक दूसरे को संदेश भेजने के लिए चित्रों, ढोल नगाड़ों, धुंआ आदि संकेतों का सहारा लेता था। उसके बाद कबूतर और घुड़सवारों की मदद ली जाती थी। नारद जयंती के अवसर पर सोनघाटी पत्रिका के प्रधान संपादक/ वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार केसरवानी अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि-“समाचार, संदेश करता और कारक के रूप में प्राचीन कालीन भारतीय
समाज में महर्षि नारद उपस्थित रहे हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, नारद जयंती हर साल कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। महर्षि नारद आदिकालीन संवाददाता है जो तीनों लोकों में भ्रमण कर पृथ्वी,आकाश, पाताल तीनों लोकों में निवास करने वाले देवी-देवताओं, दानव, मानव तक संकलित समाचार वीणा की धुन पर गायन के माध्यम से सच्चे, निर्भीक, जनकल्याणकारी संवाददाता के रूप में समाचार एक दूसरे तक पहुंचाते थे। इन्होंने देवताओं के साथ-साथ असुरों का भी सही मार्गदर्शन किया। नारद मुनि. जो कभी भी, कहीं भी पहुंच जाते थे और हर समस्या का निदान सुझा देते थे. वह भी केवल तीन बार नारायण-नारायण-नारायण बोलकर पल भर में कोई भी संदेश कहीं भी पहुंचा देते थे। समाचार, सूचनाओं, संवाद, संकलन, संप्रेषण का कार्य रामायण काल मै मै भी किया जाता था। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में राम रावण युद्ध के आरंभ से लेकर अंत तक खबरों के आदान-प्रदान का सिलसिला समाचार, खबर, सुधि (सूचना) के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। इस काल में सूचना, समाचार, संदेश, सुधि के करता और कारक (संवाददाता) के रूप में अंगद, हनुमान, जटायु एवं स्त्री संवाददाता के रूप में सरस्वती, सुपनखा, मंथरा सुरसा, लंकिनी आदि थी जिनकी सूचनाओं, खबरों, सुधी के आधार पर रामकथा का घटनाचक्र घूमता रहा है। सरस्वती मां उस काल का मीडिया प्रभारी माना जा सकता है। महाभारत युद्ध के दौरान संजय द्वारा धृतराष्ट्र को महल में बैठे-बैठे युद्ध के मैदान का आंखों देखा हाल सुनाया गया था। महर्षि वेदव्यास विश्व के पहले संपादक हैं महाभारत की रचना के साथ- साथ वेदों का संपादन किया था। मानव एक दूसरे को संदेश भेजने के नए-नए तरीकों की खोज करता रहा है। समाचार संकलन एवं प्रसारण देवी देवता भी की मुख्य भूमिका होती थी वह समय-समय पर जन कल्याण के लिए आकाशवाणी के माध्यम से तीनों लोकों के निवासियों को संदेश देते थे रामायण काल में सीता स्वयंवर के समय आकाशवाणी के माध्यम से यह सूचना प्रसारित हुई थी कि-” हे रावण तुम्हारे लंका में आग लग गई है रावण धनुष यज्ञ छोड़कर लंका की ओर चला गया और भगवान श्री राम ने धनुष को तोड़ माता सीता के साथ विवाह संपन्न हुआ। इसी प्रकार महाभारत काल मैं जब कंस अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ करके उसे ससुराल पहुँचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी कि ‘हे कंस! जिस बहन को इतने प्यार से ससुराल पहुँचाने जा रहा है, उसी की आठवीं सन्तान से तुम मारा जाएगा’। अनेकों आकाशवाणी से त्रेता, द्वापर, सतयुग के लोगों का जनकल्याण हुआ। समाचार, सूचनाओं के प्रसारण का माध्यम रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र, आधुनिक माध्यम गूगल, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, इंटरनेट, लाइव टेलीकास्ट माध्यम है। इस माध्यम का प्राचीन स्वरूप हमारी देश में कायम रहा है। लोक जन कल्याण का एक सशक्त माध्यम है समाचार का प्रसारण संवाददाता के माध्यम से करने की परंपरा महर्षि नारद से शुरू होकर समाज में आज भी जारी है।