अपनी जड़ो की ओर लौटे .!

अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत बनाएं: डॉ मार्कंडेय राम पाठक

सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव) । आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण व संवर्धन के प्रति सजग डॉ मार्कण्डेय राम पाठक 42 वर्ष तक भारतरत्न मदन मोहन मालवीय की बगिया काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में विभिन्न बड़े पदों पर सेवा करने के बाद भी विश्राम नही कर रहे हैं । वे उन बुनियादों को ढूंढ ढूंढ कर आज़ादी के अमृत महोत्सव वाले वर्ष में युवा पीढ़ी को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं । बुधवार को उन्होंने पते की बात साझा करते हुए सवाल किया कि , हमारे पास तो पहले से ही अमृत से भरे कलश थे…! फिर हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं…? डॉ पाठक ने इसे और स्पष्ट करते हुए आमजन से यह अपेक्षा किया है कि जरा इन पर विचार करें…

यदि मातृनवमी थी,
तो मदर्स डे क्यों लाया गया?
यदि कौमुदी महोत्सव था,
तो वैलेंटाइन डे क्यों लाया गया? यदि गुरुपूर्णिमा थी,
तो टीचर्स डे क्यों लाया गया? यदि धन्वन्तरि जयन्ती थी, तो डॉक्टर्स डे क्यों लाया गया?
यदि विश्वकर्मा जयंती थी,
तो टेक्नालॉजी डे क्यों लाया गया? यदि सन्तान सप्तमी थी, तो चिल्ड्रेन्स डे क्यों लाया गया?
यदि नवरात्रि और कन्या भोज था, तो डॉटर्स डे क्यों लाया गया? रक्षाबंधन* है तो सिस्टर डे क्यों ? भाईदूज है तो ब्रदर्स डे क्यों ?
आंवला नवमी, तुलसी विवाह मनाने वाले हिंदुओं को इसकी क्या आवश्यकता ?
इनवारमेंट डे की ।
केवल इतना ही नहीं, नारद जयन्ती ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है…
पितृपक्ष 7 पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है…
नवरात्रि को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये… उन्होंने भारतीय संस्कृत के उपासकों से अपेक्षा की है कि आइए, हम सभी सनातन पर्वों को गर्व से मनाएं…
पश्चिमी अंधानुकरण मत अपनाये
ध्यान रखे… सूर्य जब भी पश्चिम में गया है तब अस्त ही हुआ है

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