शिक्षकों के साथ छुट्टी में खेल खेल रही दिल्ली सरकार !

भोलानाथ मिश्र

लेखक, पत्रकार व राजनीतिक समीक्षक

एक ग्रामीण कहावत है – दूर के ढोल सुहावन होते हैं । ढोल के सुर ताल की सही जानकारी नज़दीक जाने पर ही मिलती है । यही हाल अरविंद केजरीवाल सरकार की भी है । बिजली की सब्सिडी के मामले में सर्वे होगा । उपभोक्ताओं को विकल्प दिया जाएगा कि वे चाहें तो बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ सकते हैं । एम सीडी , केंद्र सरकार और उप राज्यपाल पर असफलता का ठीकरा फोड़ने वाले आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को इस बात का मलाल रहता है कि उनके अंडर में पुलिस नही है । लेकिन पंजाब की भगवंत सिंह मान सरकार की पुलिस जिस राजनीतिक पचड़े में फंसकर अपनी फजीहत कराई उससे तो यह साफ हो गया कि दिल्ली में ठीक ही सरकार के पास पुलिस का नियंत्रण नही हैं । विचार अभिव्यक्ति के नाम पर जेएनयू , शाहीन बाग , जहांगीरपुरी घटना , डोनाल्ड ट्रम्प के आने पर दंगे में 53 लोगो की मौत असफलता अराजकता की कहानी कहते हैं । कवि डॉ कुमार विश्वास के घर जा कर पंजाब पुलिस की पूछताछ आम आदमी पार्टी के कथनी करनी को रेखांकित करती हैं । विज्ञापन पर
करोड़ो खर्च करने वाले अरविंद केजरीवाल 2024 के लोकसभा के आम चुनाव को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी समेत विपक्ष के अन्य नेताओं समेत प्रशांत किशोर के भी सम्पर्क में है । बावजूद इसके इस बात की संभावना एक दम क्षीण है कि एनसीपी के शरद पवार , कांग्रेस के राहुल गांधी , सपा के अखिलेश , बसपा की
बहन मायावती अरविंद को नेता मानेगी । दिल्ली सरकार अपनी शिक्षा व्यवस्था को लेकर बहुत उत्साहित रहती है । उप मुख्यमंत्री व शिक्षमन्त्री मनीष सिशौदिया मॉडल स्कूल की चर्चा
करते नही अघाते । डोनाल्ड ट्रप की बेटी को एक मॉडल स्कूल
में ले जाया गया था । बावजूद इसके सरकार के कई निर्णयों
से शिक्षक सहमत नही है ।


शिक्षकों की छुट्टी
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दिल्ली सरकार के विद्यालयों में 10 मई 2022 से 27 जून 2022 तक ग्रीष्म कालीन अवकाश हैं । इसके अलावा दशहरे के समय भी 5 दिन का अवकाश मिलता है । और सर्दियों में 30 दिसंबर से 15 जनवरी तक भी शीत कालीन अवकाश मिलते हैं ।

जान कर ख़ुशी भी होती है और दुःख भी । ख़ुशी इसलिए कि ये छुट्टियाँ मिलती हैं, दुःख इसलिए कि ये केवल नाम की छुट्टियाँ हैं, असल में इन छुट्टियों में बेगार लिया जाता है ।

इन छुट्टियों में बच्चों के लिए समर कैम्प लगाए जाते हैं,
इन छुट्टियों में शिक्षकों के लिए सेमीनार आयोजित किये हैं,
इन छुट्टियों में विद्यालयों में दाखिले होते हैं,
इन छुट्टियों में विद्यालयों में इंस्पेक्शन किये जाते हैं,
इन छुट्टियों में विद्यालयों में छात्रों के लिए पुस्तकें भेजी जाती हैं, इन छुट्टियों में विद्यालयों में ऑडिट की जाती हैं,
इन छुट्टियों में विद्यालयों में तोड़-फोड़ तथा बनाना (रिनोवेशन) की जाती हैं, और भी न जाने क्या क्या किया जाता है !

हमें इन सब कार्यों से कोई परेशानी नहीं है, ये कार्य होने ही चाहिएँ । परंतु हमें परेशानी इस बात से है कि, इन सब कार्यों के लिए विद्यालयों में अध्यापकों की ही ड्यूटी लगाईं जाती है । अब सोचने वाली बात ये है कि, जब अधिकतर अध्यापकों को छुट्टियों में विद्यालय आना ही है, तो अध्यापकों को छुट्टियाँ क्यों दी जाती हैं ?

हम बताते हैं कि छुट्टियां क्यों दी जाती हैं !
ताकि अध्यापकों को एक वर्ष में, कार्यालयों की तरह 30 आकस्मिक अवकाश न देकर, केवल 8 आकस्मिक अवकाश दिए जाएँ । ताकि अध्यापकों को कार्यालयों की तरह अर्जित अवकाश न देकर उनके साथ बेईमानी की जाए, क्योंकि अर्जित अवकाश के पैसे मिलते हैं । ताकि अध्यापकों से 3 दिन काम लेने के बदले उन्हें केवल एक विशेष अर्जित अवकाश दिया जाए । जबकि कई विभागों में अधिक काम के अधिक पैसे दिए जाते हैं, अथवा अधिक काम की अधिक काम के बराबर ही छुट्टियाँ दी जाती हैं । ताकि अध्यापकों को कार्यालयों की तरह सप्ताह में 2 दिन, शनिवार – रविवार बन्द न रखा जाए, बल्कि केवल 1 दिन रविवार को ही बंद रखा जाए ।
ताकि उन्हें 8 घण्टे की जगह केवल एक – डेढ़ घंटे कम समय के लिए विद्यालय बुलाकर उन पर अहसान किया जाए, और इस अहसान के बदला उन्हें 24 घंटे का नौकर बोलकर लिया जाए । ताकि उन्हें जनगणना कार्य में लगा कर अनपढ़ लोगों से पिटवाया जाए । ताकि उन पर पे कमीशन ठीक से लागू न किये जाएँ । ताकि उनके बारे में दुष्प्रचार किया जाए, कि उन्हें सबसे अधिक छुट्टियाँ मिलती हैं, जबकि असल में उन्हें कार्यालयों से कम छुट्टियां मिलती हैं । ताकि वे अपने काम करने के लिए, परिवार सहित कहीं घूमने के लिए, परिवार के साथ समय बिताने के लिए, सरकार द्वारा दी गई छुट्टियों का इंतज़ार करें, और जब छुट्टियों का समय आये, तब उनकी ड्यूटी विद्यालय में लगा दी जाए । जबकि कार्यालयों में कार्य करने वालों को इतनी छुट्टियाँ मिलती हैं, कि वे वर्ष में कभी भी परिवार सहित LTC पर जा सकते हैं, या कभी छुट्टी लेकर अपने परिवार के साथ समय बिता सकते हैं । ताकि अध्यापक कभी भी अपने परिवार व समाज के साथ समय न बिता सकें ।
और भी न जाने क्या – क्या कारण हैं !

इसीलिए अब समय आ गया है कि शिक्षक समाज अपने साथ होने वाले अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठायें । और सरकार व शिक्षा विभाग से माँग करें कि, विद्यालयों को पूरे वर्ष कार्यालयों की तरह खोला जाए । शिक्षकों को सरकार की खैरात के रूप में दी गई छुट्टियां नहीं चाहिएँ, बल्कि अपने हक़ की, कार्यालयों के सामान ही छुट्टियां चाहिएँ । जब तक शिक्षकों को अलग छुट्टियाँ दी जाती रहेंगीं, तब तक अध्यापकों को कार्यालय कर्मचारियों के सामान सुविधाएँ नहीं मिलेंगीं । एक – डेढ़ घंटे कम समय लेकर शिक्षक कोई तीर नहीं मार लेते, प्रतिदिन कार्यालयों की तरह 8 घंटे विद्यालय में रुकने का मन पक्का कीजिये, और उसके बदले कार्यालयों की तरह सप्ताह में 2 दिन का अवकाश लीजिये ।

कब तक अपने हक़ की छुट्टियों के लिए HOS के आगे दयनीय बने रहेंगें, कब तक छुट्टी की अर्जी लेकर प्रधानाचार्य कक्ष के आगे खड़े रहेंगें ! क्या शिक्षकों की कोई इज़्ज़त नहीं है ? प्रधानाचार्यों, उप प्रधानाचार्यों तथा क्लेरिकल स्टाफ का समय विद्यालयों में 8 घंटे का होता है, मगर उनमें से कितने 8 घंटे रुकते हैं ? कुछ शिक्षकों के साथ, तो कुछ शिक्षकों के जाते ही विद्यालयों से चले जाते हैं । और शिक्षकों को शिक्षा देते हैं, कि हम भी तो अधिक रुकते हैं, आप एक दिन अधिक समय रुक जाओगे तो क्या बिगड़ जाएगा ! कोई ये पूछे कि आपका तो समय ही 8 घंटे है, उसके बदले आपको 30 सी० एल०, व कैशेबल ई० एल० आदि मिलते हैं, आप जब चाहे छुट्टी ले सकते हैं, और सबसे बड़ी बात आप 8 घंटे विद्यालय में रुकते कितना हैं ! शिक्षकों की लड़ाई किसी के साथ नहीं है, शिक्षक केवल अपना हक चाहते हैं, सरकार व विभाग से । निकलो बाहर मकानों से, जंग लड़ो अपने हक़ की । कोई क्लर्क आपके लिए आगे नहीं आएगा, आपको खुद ही लड़ना पड़ेगा ।

शिक्षक संगठनों से मांग कीजिए कि वे आपकी मांग आगे उठाएँ । खैरात में मिली छुट्टियों और एक-डेढ़ घण्टा कम समय का मोह छोड़िए, अपने हक़ की छुट्टी लीजिए । और कार्यालय स्टाफ की तरह टेंशन फ्री लाइफ जिईये !

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