सिग्ररैली।मध्य प्रदेश के सीधी जिले में पुलिस द्वारा थाने में एक पत्रकार व रंगकर्मियों के साथ अशोभनीय व अमानवीय व्यवहार ने हर संवेदनशील नागरिक को विचलित किया। थाने में गिरफ्तार किये गए एक रंगकर्मी की गिरफ्तारी के विरोध में धरना दे रहे रंगकर्मियों व घटना को कवर कर रहे एक पत्रकार को गिरफ्तार करके थाने में निर्वस्त्र किया गया। मारपीट के बाद निर्वस्त्र अवस्था में फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। बताया जाता है कि यह सब स्थानीय विधायक के इशारे पर किया गया जिसके खिलाफ देश के कई पत्रकार संगठनों व फेडरेशन फॉर कम्युनिटी ऑफ़ डिजिटल यानी FCDN ने विरोध जताया है और घटना को व्यथित करने वाला बताया है। इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय से मांग की गई कि लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मीडिया की आजादी का सम्मान करने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सख्त निर्देश जारी किये जायें। ऐसा ही मामला ओडिशा में एक टीवी पत्रकार के साथ अमानवीय व्यवहार का भी सामने आया है। ये घटनाएं हमें सोचने को विवश करती हैं कि क्यों भारत वर्ल्ड प्रेस इंडेक्स की 2021 की सूची में 180 देशों में 142वें स्थान पर है। गाहे-बगाहे छोटे-बड़े शहरों में मीडिया कर्मियों के साथ भड़ास निकालने की कार्रवाई में उत्पीड़न के आरोप लगाये जाते रहे हैं। फिर छोटे गांव-कस्बों में जहां पुलिस का दबदबा होता है, वहां कैसी स्थिति होगी, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
हो सकता है सीधी की घटना में रंगकर्मियों व मीडियाकर्मी ने अपनी सीमाएं लांघी हों, लेकिन उनके साथ ऐसा अशोभनीय व्यवहार करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। मीडियाकर्मी जनता के प्रतिनिधि के रूप में सूचनाओं का संकलन करते हैं, ऐसे में उनके साथ ऐसा व्यवहार होता है, तो आम आदमी की स्थिति का सहज आकलन किया जा सकता है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र की खूबसूरती स्वतंत्र मीडिया में निहित है, जो समाज में एक जागरूक व चेतनाशील सोच के निर्माण में भूमिका निभाता है। ऐसे में उनके साथ ऐसा व्यवहार लोकतांत्रिक मूल्यों का ही हनन है।
हाल के दिनों में वैचारिक प्रतिबद्धता की राजनीति में मीडिया को निशाने पर लेने का फैशन हो चला है। निस्संदेह, काली भेड़ें सभी जगह पायी जाती हैं। फिर भी किसी भी व्यक्ति को निरंकुश व्यवहार की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह भी तय है कि सूचना व आंकड़े स्वतंत्र व पवित्र होते हैं। इनमें राजनीति व विचारधारा विशेष का घालमेल मीडिया की विश्वसनीयता पर आंच के दायरे में लाता है। इसके लिये मीडिया संगठनों को आचार संहिता का पालन करवाना चाहिए। इससे पहले कि मीडिया की आजादी को बाहर से नियंत्रित करने का प्रयास हो, मीडिया संस्थानों को का पालन करना चाहिए। समय कोई भी हो, पत्रकारिता एक ऋषिकर्म की तरह रही है और जीवन के उच्च मानकों पर चलने की बात करती है। आजादी के बाद पत्रकारिता पर व्यावसायिकता का असर बढ़ा है, लेकिन इसके बावजूद आज भी कई संस्थान व पत्र-पत्रिकाएं वैचारिक स्वतंत्रता व मूल्यों के लिये प्रतिबद्ध हैं। कुछ मीडिया घरानों की घोर व्यावसायिकता के बावजूद वे पत्रकारिता के मूल्यों की प्रतिबद्धता को समर्पित हैं। फिर भी यदि कोई लक्ष्मण रेखा लांघता है तो प्रेस काउंसिल व अन्य नियामक संगठनों को इस बाबत हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन यदि अधिकारों के प्रति सजग व जनता के प्रति प्रतिबद्ध पत्रकारिता को हतोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है तो उसके खिलाफ आवाज मुखर होनी चाहिए। परंपरागत मीडिया कुछ अपवादों को छोड़कर सरोकारों की पत्रकारिता के प्रति कृतसंकल्प है। लेकिन आज के डिजिटल भारत में डिजिटल मीडिया भी पत्रकारिता के क्षेत्र में हर रोज नए मुकाम को छू रहा है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह डिजिटल मीडिया भी चौथे स्तम्भ को मजबूत बनाने के लिए कदम से कदम मिला कर काम कर रहा है। यह अलग बात है कि समाज में पत्रकार की भी कुछ सीमाएं हैं, लेकिन फिर भी मूल्यों से समझौता कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। कलम से की-बोर्ड तक के इस सफ़र में पत्रकारों के बीच आपस में कॉम्पीटीशन की वजह से आपसी मतभेद भी बढ़ रहे हैं। आपस में एकता न होने के कारण कई बार झूठे केस में भी फस जाते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है कि डिजिटल न्यूज़ के पत्रकार आपस में संगठित होकर काम करें। साथ ही चौथे स्तंभ की गरिमा व स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये देश की तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं और जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार भूमिका का निर्वहन करना होगा। यह भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु भी अनिवार्य शर्त है।