फर्जीवाडे के जरिये हासिल किया था खनन पट्टा, पुलिस करेगी नए सिरे से जाँच
कोर्ट ने ख़ारिज की पुलिस की रिपोर्ट, अग्रिम विवेचना का दिया आदेश
जमीन की गड़बड़ी छिपाकर खनन पट्टा हासिल करने का मामला, ओबरा थाना क्षेत्र का मामला
सोनभद्र। प्रमुख खनन व्यवसायी राकेश जायसवाल से जुड़े खनन पट्टा फर्जीवाड़ा के मामले की पुलिस नए सिरे से जांच करेगी। पूर्व में ओबरा थाने में दर्ज धोखाधड़ी के मामले में पुलिस द्वारा दाखिल की गई अंतिम रिपोर्ट को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। मामले की सुनवाई करते समय, वादी द्वारा की गई आपत्ति को स्वीकार करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट/अपर सिविल जज जूनियर डिविजन निवेदिता सिंह की अदालत ने ओबरा थानाध्यक्ष को प्रकरण की अग्रिम विवेचना का आदेश जारी किया है। मामला 2017 में धारा 419, 420, 467, 468, 471 आईपीसी में दर्ज किया गया था। उसी दर्ज मामले के क्रम में विवेचना आगे बढ़ाई जाएगी। मूलतः वाराणसी के शिवपुर निवासी शिवप्रकाश दूबे ने 2017 में वाराणसी के पांडेयपुर निवासी राकेश जायसवाल और उनकी पत्नी आरती जायसवाल पर जमीन से जुड़े तथ्यों को छिपाकर धोखाधड़ी पूर्वक खनन पट्टा हासिल करने का आरोप लगाया था और अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र दाखिल कर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने की गुहार लगाई थी। कोर्ट के आदेश पर धारा 419, 420, 467, 468, 471 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर विवेचना शुरू की गई थी। एक कथित सुलहनामे के आधार पर पुलिस ने मामले में अंतिम रिपोर्ट लगा दी। इस पर वादी शिवप्रकाश दूबे ने अधिवक्ता के जरिए अंतिम रिपोर्ट पर आपत्ति (प्रोटेस्ट) किया। दलील दी कि दूसरे के नाम दर्ज जमीन को नवीन परती दिखाकर धोखाधड़ी पूर्वक खनन पट्टा प्राप्त किया। इसके लिए कूटरचित कागजात का उपयोग करने और गलत तरीके से काशी सेवा समिति के सचिव का प्रमाणपत्र डीएम कार्यालय में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि पुलिस ने समिति की सचिव आरती जायसवाल और उनके पति राकेश जायसवाल के पक्ष में बैनामा कर सुलह-समझौता करने का मामला बताते हुए दर्ज मुकदमे को अंतिम रिपोर्ट के जरिए समाप्त कर, रिपोर्ट कोर्ट में प्रेषित कर दी। वहीं वादी की तरफ से दी गई आपत्ति में कहा गया है कि दस्तावेजी साक्ष्य आरोपियों के विरूद्ध पाए गए तो तत्कालीन समय में राकेश जायसवाल द्वारा माफिया मुन्ना बजरंगी के संबंधों का भय दिखाकर उससे और उसके गवाहों से सुलहनामे का शपथपत्र बनवा लिया गया। तथ्यों के परिशीलन के बाद कोर्ट ने माना कि विवेचक द्वारा गंभीर मामले में कोई विवेचना नहीं की गई। मात्र उभयपक्षों द्वारा दाखिल सुलहनामे के आधार पर अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी गई। विवेचना न किया जाना, निष्पक्ष विवेचना पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। इसको दृष्टिगत रखते हुए ओबरा थानाध्यक्ष को आदेशित किया गया कि वह 2017 में उपरोक्त धाराओं में दर्ज मामले की अग्रिम विवेचना, आदेश में दिए गए निर्देशों का पालन कराते हुए, कराना सुनिश्चित करें।