मैं वार्डन हूं——
सोनभद्र (सर्वेश श्रीवास्तव) । हिटलर एक पागलखाने का निरीक्षण करने गया । वहाँ उसका ख़ूब स्वागत हुआ , सब लोगों ने सैल्यूट ठोंका । हिटलर बड़ा प्रसन्न हुआ । सब कुछ बड़ा अच्छा चल रहा था कि हिटलर ने देखा …. एक व्यक्ति उदासीन खड़ा है ।
उसने सैल्यूट भी नही किया। हिटलर ने उससे पूछा….. ‘आश्चर्य है कि तुमने मुझे सैल्यूट तक नही किया , जबकि बाकी सब लोगो ने किया। ‘
..वह व्यक्ति बड़ी विनम्रता
से बोला– महाशय ऐसा इसलिए क्योंकि मैं पागल नहीं हूँ । मैं इस पागलखाने का वार्डन हूँ ।
..यह कहानी बौद्धिक के दौरान दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने संघ शिक्षा वर्ग द्वितीय वर्ष में डीएवी कॉलेज वाराणसी में जून माह 1978 में सुनाई थी।
यह संस्मरण गुरुवार को पत्रकार भोलानाथ मिश्र ने
हमारे संवाददाता से चर्चा के दौरान साझा किया । उन्होंने
बताया कि एक पुरानी डायरी देख रहा था तो यह प्रसंग ध्यान में आया ।
उस समय दत्तो पंत ठेंगड़ी जी भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय प्रमुख थे । प्रान्त प्रचारक जय गोपाल जी भी उपरोक्त प्रसंग का उल्लेख
समन्वय बैठक में किए थे ।
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