प्राचीन काल से चली आ रही गौरीशंकर मेले की परंपरा

रोहित कुमार त्रिपाठी

ईमलीपुर-सोनभद्र। जनपद में शिव आराधना के शिवालयों में अपना अद्वितीय स्थान रखने वाला गौरी शंकर मंदिर परिसर इन दिनों लगे मेले से गुलजार हो गया है। बताते चलें कि

शिवरात्रि से लेकर होली तक लगने वाले इस मेले में सुदूर क्षेत्रों से भारी संख्या में नर नारी भ्रमण करने और मेरे का आनंद उठाने हेतु आते हैं । इतना ही नहीं इस मेले में गृहस्थी की वह सभी सामग्रियां जो गांव- घरों में नही उपलब्ध हो पाती उसे मेरे से खरीदने का काम लोग करते हैं।

बुजुर्गों का यह मानना है कि यह मेला सोनांचल का सबसे बड़ा प्राचीन काल से लगने वाले मेला रूप में जाना जाता है। उनकी माने तो कई पीढ़ियां समाप्त हो गई परंतु यह परंपरा अभी भी कायम है। यहां पर काफी दूर -दूर के लोग अपनी दुकानों को लगाने के लिए आते हैं तथा मेले के दौरान भारी भरकम रकम भी कमाकर जाते हैं। खासतौर इस मेले में सील जात -चकरी व

लोहे के बर्तन सस्ते दामों में मिल जाते हैं। यहां की गुड की जलेबी भी बहुत प्रसिद्ध है जो लोगों को मेले में आने के लिए आकर्षित करती है। इस साल पिछले दो वर्षो की कोरोना कॉल की अपेक्षा दुकानदारों और मेलार्थियों में भी काफी उत्साह देखने को मिल रहा है।

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