विधानसभा चुनाव की चर्चा में कोई विकास तो कोई दल जात की कर रहा बात

जातीय गणित झूलेगा साथ उसी के सिर सजेगा ताज

मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी/सर्वेश श्रीवास्तव

सोनभद्र- विधानसभा चुनाव के तीन चरणों के चुनाव रविवार को हो गए। सोनभद्र में चार विधानसभाओं का चुनाव अंतिम चरण मैं 7 मार्च को होना है। ऐसे में चुनाव की चिट्टियां जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही हैं प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में गर्मी बढ़ती जा रही है। सोनभद्र आदिवासी बहुल एवं पिछड़े जनपद के रूप में जाना जाता है बावजूद इसके यहां जाति और मजहब के नाम पर मतदान की रवायत से इनकार नहीं किया जा सकता। यूं तो चुनाव के समय जातिवादी रूढ़िवादिता हावी है जो अब नासूर बनती जा रही है। हालांकि ज्यादातर मतदाता जाति धर्म और मजहब से परे मानव कल्याण तथा विकास के मुद्दे पर वोट देने के लिए कृत संकल्पित बताए जा रहे हैं। इस वक्त चट्टी चौराहों चाय पान की दुकानों से लेकर गांव की चौपालों तक केवल विधानसभा चुनाव की ही चर्चा हो रही है जिसमे वोटर अपने-अपने तर्क रख रहे हैं। जनपद के चारों विधानसभा क्षेत्रों घोरावल, रावटसगंज, ओबरा व दुद्धी में आखिरी चरण 7 मार्च को चुनाव होगा। प्रत्याशी तथा उनके समर्थक मतदाताओं को रिझाने के उद्देश्य से जनता के द्वार पहुंच वायदे के पुल बांधने में पीछे नहीं हट रहे हैं। उनके पक्ष में हो इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे भी अपनाने शुरू कर दिए हैं। उनके लुभावने वायदे को सच मानें तो क्षेत्र में समस्याएं पूरी तरह समाप्त हो जाएगी, फिर भी इनके बहकाने पर जनता को विश्वास नहीं हो रहा है क्योंकि चुनावी वायदे सुनते सुनते जनता पूरी तरह ऊब चुकी है । इनका कहना है की वायदे सिर्फ चुनाव के दिन ही होते हैं चुनाव बीतने के बाद फिर 5 साल तक जीतने वाले गुम हो जाते हैं। यही कारण है कि आम मतदाता उम्मीदवारों के लुभावने प्रलोभन में शामिल होने से कतरा रहे हैं।

कुछ समझदार मतदाता तो यह कहते हैं कि– को नृप होय हमें का हानि,
कुछ बुद्धिजीवी मतदाताओं की माने तो समय के साथ चुनाव का तरीका भी बदलता जा रहा है जो देश व समाज के हित में कतई ठीक नहीं है। अब कि विधानसभा चुनाव में पंचायत चुनाव की भांति जातिवाद पर उल्टी होने की आशंका जताई जा रही है। सियासी पंडितों की मानें तो यदि बात सच हुई तो यह चुनावी फिजा को बदल सकती है। इससे प्रत्याशियों के लिए यहां जाति समीकरणों को साधना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि जो जातिगत समीकरणों को साधने मैं सफल होगा उसी का सस्ता सफल हो सकता है। बहरहाल जो भी हो देखना है कि इस बार प्रत्याशी विकास या जातिगत समीकरणों के सहारे चुनावी वैतरणी पार कर पाते हैं कि नहीं।

सोनांचल में प्रदूषण को कोई भी मुद्दा नहीं बनाता और ना ही इस बारे में गंभीरता से सोचता है। ऊर्जा की राजधानी कहे जाने वाले जनपद सोनभद्र में प्रदूषित वातावरण जहां जल जीवन के लिए हानिकारक साबित हो रहा है वहीं अवैध तरीके से दोहन होने से प्राकृतिक संपदा और नदियों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा है। ऐसे में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का सोनभद्र को स्विट्जरलैंड बनाने का सपना टूटता नजर आ रहा है। इस संबंध में युवा सुनील कुमार का कहना है कि विकास परियोजनाओं के साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर भी जनप्रतिनिधि द्वारा गंभीरता पूर्वक ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे जनपद के हर क्षेत्र का आम जनजीवन स्वस्थ रहें और प्राकृतिक सौंदर्य बना रहे।

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