शाहगंज-सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)- पिछले दो दिनों से बाजारों में जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर जहाँ फलों व मिठाइयों की दुकानें गुलजार रही व दूसरी तरफ व्रती महिलाएं दुकानों पर खरिदारी करती हुई नजर आई। शाम से ही कस्बे सहित ग्रामीण अंचलों में पुत्र की लंबी आयु की कामना को लेकर माताओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत विधि विधान से पूजा अर्चना किया। ग्रामीण अंचलों में मंदिरों के प्रागंण, तालाब के किनारे

मे व घरों पर सभी महिलाओं द्वारा एक जगह एकत्र होकर पुत्र के लिए इस कठिन व्रत को एक जगह एकत्रित होकर किया गया। परंपराओं की माने तो इस व्रत में माताओं द्वारा निर्जल 36 घंटे का उपवास रख कठिन व्रत परंपरा के अनुसार विश्वास रखकर अपने पुत्र

की लंबी आयु के लिए व्रत करती चली आ रही हैं, जीवित्पुत्रिका-व्रत के साथ जीमूतवाहन की कथा जुड़ी है। इसमें गन्धर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन अपने जीवन का दाव पर लगाकर नागवंश की रक्षा करते हैं।जीमूतवाहन के अदम्य साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई और तबसे पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की प्रथा शुरू हो गई। आश्विन कृष्ण अष्टमी के प्रदोषकाल में पुत्रवती

महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर स्त्री सायं प्रदोषकाल में
जीमूतवाहन की पूजा करती हैं तथा कथा सुनने के बाद आचार्य को दक्षिणा देती है, वह पुत्र-पौत्रों का पूर्ण सुख प्राप्त करती है। व्रत का पारण दूसरे दिन अष्टमी तिथि की समाप्ति के पश्चात किया जाता है, यह व्रत अपने नाम के अनुरूप फल देने वाला है। क्षेत्र के हिसाब से कई जगह व्रती महिलाओं के द्वारा चील चीलोरी की कहानी व पांडव की कहानी भी कही जाती है।
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