-गरीब हो या हो धनवान, विद्या होवे एक समान
ओबरा (सतीश चौबे) : पेपर लेस और आन लाइन परीक्षा की ओर सरकार को कदम बढ़ाने की जरूरत है। क्रमशः पीजी, डीसी, इंटरमीडिएट, हाई स्कूल स्तर तक इस अभियान को पूरा किया जा सकता है। यह बातें माध्यमिक शिक्षक संघ के पूर्व जिलाध्यक्ष व शिक्षा निकेतन इंटरमीडिएट कॉलेज के वरिष्ठ प्रवक्ता प्रमोद चौबे ने पीएमओ, सीएम सहित कई प्रमुख लोगों को ट्यूट कर अपेक्षा की है। जिलाध्यक्ष ने कहा कि जिस तरह से अभियांत्रिकी आदि की विविध प्रवेश व मुख्य परीक्षाएं पेपर लेस व आन लाइन हो गई हैं। उसी तरह से समेकित कार्य योजना और क्रियान्वयन पर पहल की जरूरत है। इसकी जरूरत काफी पहले से थी। इस पहल से कागज आदि के नाम पर अब भी विभागों में हो रहे अरबों-खरबों के धंधे पर रोक लगेगी और उस वित्त का प्रयोग कम्प्यूटर आदि पर खर्च किया जा सकता है। कागज के प्रयोग पर अधिकतम रोक लग जाए तो पेड़ों की भी सुरक्षा हो और पर्यावरण भी संरक्षित करने में मदद मिले। कोविद 19 कोरोना के बाद बदली हुई परिस्थितियों में एंड्रॉयड मोबाइल का प्रयोग विद्यार्थियों में होने लगा है। अब 14 वर्ष से ऊपर के विद्यार्थियों को सीमित समय के मोबाइल की अनुमति दे दी जानी चाहिए, क्योंकि अनुमति महज कोरम पूर्ति है। विद्यार्थियों में अधिकांश एंड्रॉयड मोबाइल का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। विविध सूचनाओं से लेकर आन लाइन पढ़ाई तक के कार्य मोबाइल पर पूरे देश में विद्यार्थियों ने किया है।
नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक शिक्षा
अभिभावकों को सतर्क रहने की जरूरत है कि नई शिक्षा नीति में हाई स्कूल व इंटरमीडिएट के विषयों में व्यावसायिक शिक्षा जोड़ दी गई है। विद्यार्थियों के मनोनुकूल विषय के चयन में शिक्षकों और अभिभावको की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो गई।
शिक्षा के बजाय करें विद्यादान
शिक्षा देने के स्थान पर हमें विद्यादान की स्वाभाविक प्रवृति विकसित करने की जरूरत है। गरीब हो या हो धनवान, विद्या होवे एक समान की थ्योरी पर जनता के सक्रिय पहल पर ही सरकार शिक्षा-विद्या एक समान करेगी, अन्यथा नौकरी की विविध श्रेणियों की तरह ही शिक्षा-विद्या में विभेद बना रहेगा।
मजदूर बनाने की अघोषित नीति
सरकारी विद्यालयों से सरकार मनरेगा आदि के मजदूर बनाने की अघोषित नीति पर कार्य करती है। प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक, माध्यमिक स्तर तक के शिक्षकों से गैर अध्यापन के कार्य सर्व शिक्षा अभियान, यातायात सहित विविध रैली आदि प्राथमिकता के आधार पर लिए जाते हैं, जबकि स्ववित्त पोषित सीबीएसई आदि के विद्यालयों को गैर शैक्षणिक कार्यों में शामिल नहीं किया जाता है। अघोषित अलग-विलग शिक्षा-विद्या की व्यवस्था को त्वरित ठीक करने के लिए समान पाठ्यक्रम, निःशुल्क शिक्षा अनिवार्य होनी ही चाहिए।
गुरु का सम्मान दे हुकूमत
शिक्षक का नहीं गुरु का सम्मान दे हुकूमत
विद्यालयों के निरीक्षण में शिक्षकों संग गया गुजरा व्यवहार किया जाता है, जबकि शिक्षक राष्ट्र निर्माता है। दुर्व्यहार से पीड़ित शिक्षक शिक्षा से पेट भरने की जुगत बताने से अधिक नहीं कर सकता है, जबकि गुरु ज्ञान से समाज में समस्या का जन्म ही नहीं होगा।
कम जरूरी कार्यों से मिले मुक्ति,सरकारी शिक्षकों से मतदान, जन गणना, पशु गणना, मतगणना, आर्थिक गणना आदि जैसे विद्या से कम जरूरी कार्य लेकर अध्यापन को साजिशन चौपट किया गया है, जबकि प्राइवेट सेक्टर के विद्यालयों से ऐसे कार्य नहीं लिए जाते वैसे ही सरकारी विद्यालयों से नहीं लिए जाएं। बहुउद्देशीय कर्मी की मनोदशा में सरकारी शिक्षक होते जा रहे हैं।