धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से सूर्य सप्तमी (आरोग्य सप्तमी) विशेष
माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन सूर्य देव ने ब्रह्मांड को अपने दिव्य तेज से प्रकाशमान किया था। माघ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली सप्तमी की तिथि को रथ सप्तमी, माघ सप्तमी या सूर्य सप्तमी कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह तिथि 19 फरवरी शुक्रवार को पड़ रही है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य का जन्म हुआ था इसलिए इसे सूर्य जयंती के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है।
सूर्य पूजन का महत्व
हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में सूर्य को देवता व नवग्रहों के राजा की उपाधि दी गई है। संसार में सूर्य के बिना जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है, इसलिए सूर्य को जगत पिता कहा गया है। मान्यता है कि रोजाना सूर्य को जल चढ़ाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और मानसिक चेतना मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार रथ सप्तमी पर सूर्य भगवान की पूजा और दान करने से जाने-अनजाने किए गए पापों से छुटकारा मिल जाता है और सूर्य से संबंधित सभी दोषों का प्रभाव कम होता है।
स्नान दान मुहूर्त
माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारम्भ 18 फरवरी को सुबह 08:15 बजे से हो रहा है, जिसका समापन 19 फरवरी को दिन में 10:55 बजे होगा। अचला सप्तमी के लिए उदयातिथि यानी सूर्योदय 19 फरवरी को हो रहा है, इसलिए अचला सप्तमी का व्रत और पूजा शुक्रवार 19 फरवरी के दिन ही किया जाना श्रेष्ठ है।
अचला सप्तमी के दिन सूर्योदय 19 फरवरी प्रात: 06 बजकर 31 मिनट पर होगा। पूर्ण सूर्योदय का समय सुबह 06 बजकर 55 मिनट पर है। इस दिन सूर्यास्त शाम को 06 बजकर 11 मिनट पर होगा।
19 फरवरी के दिन आपको प्रात: 05 बजकर 11मिनट से सुबह 06 बजकर 55 मिनट के मध्य स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित कर देना चाहिए। इस दिन आपको सूर्य देव की पूजा के लिए 01 घण्टा 44 मिनट का कुल समय प्राप्त होगा।
उपरोक्त मुहूर्त ऋषिकेश के लिए प्रभावी है। अपने शहर अनुसार इसमे परिवर्तन जाने।
सूर्य सप्तमी पूजा विधि
सूर्य देव को नियमित जल चढ़ाने और उनकी उपासना करने से मनुष्य के अंदर आत्म विश्वास, आरोग्य, सम्मान और तीव्र स्मरण शक्ति की प्राप्ति होती है। रथ सप्तमी पर सूर्य देव के पूजन की विधि इस प्रकार है।
सूर्य सप्तमी पर व्रत रखें और सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस दिन पवित्र नदी, सरोवर या घर पर स्नान के बाद एक कलश में जल लेकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके धीरे-धीरे सूर्य देव को जल चढ़ाएँ और सूर्य मंत्र “ॐ घृणि सूर्याय नमः” का जाप करें। सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद घी का दीपक जलाएं और कपूर, धूप जलाकर सूर्य देव की आरती करें व उन्हें लाल पुष्प चढ़ाएं। इस दिन आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए। इसके प्रभाव से आरोग्य की प्राप्ति होती है।सूर्य ग्रहण की तरह सूर्य सप्तमी के दिन भी दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है, इसलिए इस दिन सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान करें।
राशी के अनुसार सूर्य का आहवाहन करें,
१२ राशियां सूर्यदेव के नाम
१ – मेष .. ऊँ आदित्याय नमः
२ – बृषभ .. ऊँ अरुणाय नमः
३ – मिथुन .. ऊँ आदिभुताय नमः
४ – कर्क .. ऊँ वसुप्रदाय नमः
५ – सिंह.. ऊँ भानवे नमः
६ – कन्या.. ऊँ शांताय नमः
७ – तुला.. ऊँ इन्द्राय नमः
८ – वृश्चिक.. ऊँ आदित्याय नमः
९ – धनु.. ऊँ शर्वाय नमः
१० – मकर.. ऊँ सहस्त्र किरणाय नमः
११ – कुम्भ.. ऊँ ब्राह्मणे दिवाकर नमः
१२ – मीन.. ऊँ जयिने नमः
सूर्य पूजा के दौरान भगवान सूर्यदेव का आवाहन इस मंत्र के द्वारा भी कर सकते है।
ॐ सहस्त्र शीर्षाः पुरूषः सहस्त्राक्षः सहस्त्र पाक्ष |
स भूमि ग्वं सब्येत स्तपुत्वा अयतिष्ठ दर्शां गुलम् ||
आवाहन के उपरांत ऊनी आसान पर सूर्याभिमुख होकर बैठे तदोपरान्त पंचोपचार पूजन करें इसके बाद मनोकामना अनुसार नीचे दिए मंत्रो का यथा सामर्थ्य जाप करे जप के बाद सूर्य देवकी आरती कर क्षमा प्रार्थना करें।
पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य देव का मंत्र
ऊँ भास्कराय पुत्रं देहि महातेजसे।
धीमहि तन्नः सूर्य प्रचोदयात्।।
हृदय रोग, नेत्र व पीलिया रोग एवं कुष्ठ रोग तथा समस्त असाध्य रोगों को नष्ट करने के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ऊँ हृां हृीं सः सूर्याय नमः।।
व्यवसाय में वृद्धि करने के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ऊँ घृणिः सूर्य आदिव्योम।।
अपने शत्रुओं के नाश के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
शत्रु नाशाय ऊँ हृीं हृीं सूर्याय नमः
अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ऊँ हृां हृीं सः
सभी अनिष्ट ग्रहों की दशा के निवारण हेतु सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ऊँ हृीं श्रीं आं ग्रहधिराजाय आदित्याय नमः
आरती श्री सूर्य जी
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सकल – सुकर्म – प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।