जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से गौरी तृतीया व्रत विधान और उसका फल

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से गौरी तृतीया व्रत विधान और उसका फल



सुमंतु मुनि ने कहा- राजन जो स्त्री सब प्रकार का सुख चाहती है उसे तृतीया का व्रत करना चाहिए उस दिन नमक नहीं खाना चाहिए इस विधि से उपवास पूर्वक जीवन पर्यंत इस व्रत का अनुष्ठान करने वाली स्त्री को भगवती गौरी संतुष्ट होकर रूप सौभाग्य तथा लावण्य प्रदान करती है। इस व्रत का विधान जो स्वयं गौरी ने धर्म राज से कहा है उसी का वर्णन में करता हूं उसे आप सुने।

भगवती गौरी ने धर्मराज से कहा- धर्मराज स्त्री पुरुषों के कल्याण के लिए मैंने इस सौभाग्य प्राप्त करने वाले वृत्त को बनाया है। जो स्त्री इस व्रत को नियम पूर्वक करती है वह सदैव अपने पति के साथ रहकर उसी प्रकार आनंद का अनुभव करती है जैसे भगवान शिव के साथ में आनंदित रहती हूं। उत्तम पति की प्राप्ति के लिए कन्या को यह व्रत करना चाहिए व्रत में नमक ना खाएं स्वर्ण की गौरी प्रतिमा स्थापित करके भक्ति पूर्वक एकाग्र चित्त हो गौरी का पूजन करें। गौरी के लिए नाना प्रकार के नैवेद्य अर्पित करने चाहिए रात्रि में लवण रहित भोजन करके स्थापित गौरी प्रतिमा के समक्ष ही शयन करें दूसरे दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दें इस प्रकार जो कन्या व्रत करती है वह उत्तम पति को प्राप्त करती है। तथा चिरकाल तक श्रेष्ठ भोगों को भोग कर अंत में पति के साथ उत्तम लोगों को जाती है।

यदि विधवा इस व्रत को करती है तो वह स्वर्ग में अपने पति को प्राप्त करती है और बहुत समय तक वहां रहकर पति के साथ वहां के सुखों का उपभोग करती है एवं पूर्वोक्त सभी सुखों को भी प्राप्त करती है। देवी इंद्राणी ने पुत्र प्राप्ति के लिए इस व्रत का अनुष्ठान किया था इसके प्रभाव से उन्हें जयंत नाम का पुत्र प्राप्त हुआ। अरुन्धती ने उत्तम स्थान प्राप्त करने के लिए इस व्रत का नियम पालन किया था जिसके प्रभाव से पति सहित सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त कर सकी थी आज तक आकाश में अपने पति महर्षि वशिष्ठ के साथ दिखाई देती हैं। चंद्रमा की पत्नी रोहिणी ने अपनी समस्त सपत्नियों को जीतने के लिए बिना लवण खाए इस व्रत को किया तो वे अपनी सभी पत्नियों में प्रधान तथा अपने पति चंद्रमा की अत्यंत प्रिय पत्नी हो गई। देवी पार्वती की अनुकंपा से उन्हें अचल सौभाग्य प्राप्त हुआ।

इस प्रकार यह तृतीया तिथि सारे संसार में पूजित है और उत्तम फल देने वाली है। वैशाख भाद्रपद तथा माघ मास की तृतीया अन्य मासों की तृतीय से अधिक उत्तम है। जिसमें माघ मास तथा भाद्रपद मास की तृतीय स्त्रियों को विशेष फल देने वाली है।

वैशाख मास की तृतीय सामान्य रूप से सबके लिए है यह साधारण तृतीया है माघ मास की तृतीया को गुड़ तथा लवण का दान करना स्त्री पुरुषों के लिए अत्यंत श्रेयस्कर है। भाद्रपद मास की तृतीया में गुड के बने मालपुआ का दान करना चाहिए। भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिए माघ मास की तृतीया को मोदक और जल का दान करना चाहिए। वैशाख मास की तृतीया को चंदन मिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं। देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है इस दिन अन्न वस्त्र भोजन और आदि का दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है इसी विशेषता के कारण इस तृतीया का नाम अक्षय तृतीया है। इस तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देने वाला सूर्य लोक को प्राप्त करता है। इस तिथी को जो उपवास करता है वह रिद्धि वृद्धि और श्री से संपन्न हो जाता है।

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