धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शनि अष्टकवर्ग
आयुश्चजीवनोपायंदुखशोकभयानिच || सर्वक्षयंचमरणंमन्देनैवनिरीक्षयेत् || (वृ.पा.हो.शा.७२:४)
(१) शनी के अष्टक वर्ग से आयु जीवन में आने वाली पत्ती दुख सुख भर धन संपदा व हानी तथा मृत्यु आदि का विचार किया जाता है।
(२) शनि जिस राशि में हो उससे अष्टम भाव में पड़ी राशि मृत्यु राशि होती है वही आयु का स्थान भी है उसी से आयु का विचार करना चाहिए।
(३) शनि के अष्टक वर्ग में लग्न से सनी तक जितने बिंदुओं उनके योग तुल्य वर्ष में रोग पीड़ा विपत्ति व हानि जैसे अनिष्ट परिणाम होते है। मतांतर से शनी से लग्न तक के बिंदुओं के योग तुल्य वर्षों में भी अशुभ फल मिला करते हैं।
(४) शनि अष्टक वर्ग में जो राशि ० बिंद उपाय उस राशि पर शनि का गोचर होने से शुभ फल प्राप्त नहीं होते।
(५) ८ बिंदु अपने ही अष्टक वर्ग में पाने वाला शनि जातक को लोकप्रियता जनसमर्थन सहयोग व सम्मान दिलाता है ऐसा जातक गांव या नगर का प्रमुख वह प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है।
(६) ७ बिंदु पाने वाला शनि अपनी दशा भुक्ति में दास-दासियों का सुख देता है और उसका पशुधन भी श्रेष्ठ व लाभकारी होता है।
(७) ६ बिंदु वाला शनि कभी जातक को दस्यु तसकरो का सम्राट अथवा जनजाति का मुख्य बनाता है श्रेष्ठ ससमृत्यु ख पाने वाला राजा सरीखा प्रतापी होता है।
(८) पांच बिंदु प्राप्त शनि जातक को धनमान प्रतिष्ठा वह सुख देता है। दुर्बल वर्ग के लोग उसे राजा सरीखा सम्मान देते हैं।
(९) चार बिंदु युक्त शनि राजा का आश्रय दिलाकर सुख संपन्नता विश्वास देता है।
(१०) तीन बिंदु पाने वाला शनि अपनी दशा में अर्थ संकट तथा पत्नी व संतान की चिंता देता है।
(११) दो बिंदु पाने वाला शनि जातक को अस्वस्थ व दुर्बल देह बनाता है जातक कष्ट क्लेश पाता है।
(१२) १या ०बिंदु पाने वाला शनि अपनी दशा मे धन वैभव का नाश तो कभी राजदंड या शत्रुत्रास का भय और संताप देता है।
(१३) यदि शनि के अष्टक वर्ग में लग्न शुभ विंदु से वंचित हो लग्न पर शनि का गोचर धन संपदा की हानि रोग पीड़ा से मानसिक क्लेश देता है। उदाहरण स्वरूप रूस के अध्यक्ष स्टालिन की कुंडली में वृश्चिक राशि में शनि के अष्टक वर्ग में शून्य बिंदु पाया जब शनि का गोचर ० बिंदु वाली वृश्चिक राशि पर हुआ तो स्टालिन को पर्वतों में छिपकर रहना पड़ा था तथा २० माह की जेल भी भुगतनी पड़ी।
(१४) यदि शनि को अपने अष्टक वर्ग में ५ या ६ बिंदु मिले हो तथा ऐसा शनि अपनी उच्च राशि तुला में या केंद्र स्थान में हो तो जातक की आयु कम होती है स उदाहरण स्वामी विवेकानंद वृध्दावस्था से पूर्व मृत्यु को प्राप्त हुए उनका शनि चार बिंदु प्राप्त कर दशम भाव में था।
(१५) लग्नस्थ शनि यदि पांच या छह शुभ विंदु पाए तो पाप ग्रह बली होने से जातक दैन्य दुख का भाव और पीड़ा के चक्रव्यू में फंसा रहता है किंतु यदि ५ से अधिक बिंदु पाने वाला शनि शत्रु क्षेत्रीय नीचस्थ होने से थोड़ा दुर्बल भी हो तो भी जातक दीर्घ आयु होता है।
(१६) ७अधिक बिंदु युक्त शनि दशम भाव या दशमेश से संबंध करने पर जातक गांव का सरपंच या नगर निगम का आयुक्त होता है कोई जातक वाणिज्य पार से धन कमाता है।
(१७) यदि शनि चार बिंदु प्राप्त कर अपनी स्वराशि या उच्च राशि में नही है तो भी वह जातक दीर्घ आयु और भाग्यशाली होता है। ऐसा शनि लग्न या चतुर्थ भाव में शुभ फल देता है।
(१८) ५ या अधिक बिंदु पाने वाला शनि यदि नीच राशि में हो तो जातक दीर्घ आयु होता है केंद्र या त्रिकोण में स्थित शनि यदि तीन या कम बिंदु पाकर अपनी राशि या नवांश में बैठे तो जातक अनेक स्त्रोतो से धन कमाता है।