जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शुक्र का लग्न एवं अष्टकवर्ग अनुसार फल

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शुक्र का लग्न एवं अष्टकवर्ग अनुसार फल

शुक्र का लग्न एवं अष्टकवर्ग अनुसार फल

(१) लग्न मे शुक्र स्थित हो तो जातक संवेदनशील
,प्रेम करने वाला ,दूसरो पर दया करने वाला होता है| ऐसा जातक समस्त जनो के साथ सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करता है।

(२) लग्न के शुक्र का जातक हंसमुख,मनमोहक,कलात्मक रूची संपन्न होता है।

(३) लग्न का शुक्र होने पर १६वें या १७ वें साल मे
शारीरिक संबंधो की प्रबल संभावना देता है।
यदि शुक्र के साथ मंगल,शनि,राहु इत्यादी हो तो कम
आयु मे ही यौन संबंध बनने के योग बनते है या फिर
कम आयु से ही यौन कार्यो मे रूची बन जाती है। किसी अवसर पर तो जातक या जातिका का जीवन व्यभिचार मे संलग्न रहता है।
(४) शुक्र लग्नस्थ होकर यदि ६,८,१२के स्वामियो से प्रभावित हो तो जातक के पत्नी या पति से अलग दूसरे व्यक्ति से भी स्नेह संबंध रहते है या फिर दो विवाह का योग
बनता है। ऐसा तब भी होता है जब पापकर्तरी हो।

(५) स्वगृही शुक्र राजयोग देता है। तथा अस्टमेश या
द्वादशेश शुक्र लग्न मे होने पर दुबारा विवाह का योग बनता है।

(६) मेष,सिंह,धनु का शुक्र लग्न मे हो तो विवाह मे विलम्ब होता है परन्तु पत्नी सुंदर और पति से प्रेम करने
वाली और सहयोग प्रदान करने वाली होती है।

(७) वृष का शुक्र जातक को अत्यधिक कामुक ,सुन्दरी
का प्रेमी,दुराचारी, और अनैतिक यौन संबंधो
मे सुख पाने वाला होता है।

(८) लग्न का शुक्र जातक को प्लास्टिक
,पालीथीन,फाइबर,ग्लास,रबर,मोम,नायलान,प्रसाधन,क्रीम पाउडर,पेन्ट ,रंग,टीवी,म्युजिक सिस्टम के व्यापार से लाभ कराता है।

(९) शुक्र के लग्न वाला जातक प्रबंध,प्रसाशन,शासन के पद को को प्राप्त करने के लिये प्रयासरत रहता है।
ऐसा जातक जंहा भी हो अनुशासन चाहता है और अपने ऊपर किसी को पंसद नही करता| ऐसे जातको को
m.b.a_IAS_pps_PCs(j) इत्यादि पदो की प्राप्ति
के लिये प्रयास करना चाहिये।

शुक्र अष्टकवर्ग फल

अष्टकवर्ग विद्या में नियम है कि कोई भी ग्रह चाहे वह स्वराद्गिा या उच्च का ही क्यों न हो, तभी अच्छा फल दे सकता है जब वह अपने अष्टकवर्ग में ५ या अधिक बिंदुओं के साथ हो क्योंकि तब वह ग्रह बली माना जाता है। अतः यदि शुक्र ग्रह शुक्र अष्टकवर्ग में ५ या इससे अधिक बिंदुओं के साथ है तथा सर्वाष्टक वर्ग में भी २८ या अधिक बिंदुओं के साथ है तो शुक्र से संबंधित भावों के शुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि सर्वाष्टकवर्ग में २८ से अधिक बिंदु व शुक्र अष्टकवर्ग में ४ से भी कम बिंदु हैं तो फल सम आता है। यदि दोनों ही वर्गों में कम बिंदु हैं तो ग्रह के अद्गाभ फल प्राप्त होते हैं। कारकत्व के अनुसार शुक्र से विवाह, पत्नी, वस्त्र, वाहन, लक्ष्मी आदि का विचार किया जाता है।
भारतीय ज्योतिष में फलकथन हेतु अष्टकवर्ग विद्या की अचूकता व सटीकता का प्रतिशत सबसे अधिक है। अष्टकवर्ग विद्या में लग्न और सात ग्रहों (सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि) को गणना में सम्मिलित किया जाता है। शुक्र ग्रह द्वारा विभिन्न भावों व राशियों को दिये गये शुभ बिंदु तथा शुक्र का ‘शोध्यपिंड’ – ये ‘शुक्र अष्टकवर्ग’ से किये गये फलकथन का आधार होते हैं।

शुक्र के अष्टकवर्ग में जिस जिस राषि में अधिक बिंदु हों, उस उस राषि में शुक्र के आने पर भूमि, धन तथा कलत्र का लाभ उसी राषि की दिषा में मिलता है।

शुक्र के सप्तम से स्त्री का विचार किया जाता है। अतः शुक्र से सप्तम भाव या सप्तम से त्रिकोण भाव, जिसमें भी अधिक बिंदु हों, में गोचर के शुक्र के आने से उसी राषि की दिषा में स्त्री प्राप्ति को कहना चाहिए।

शुक्र के अष्टकवर्ग में शुक्र से सप्तम के बिंदुओं को शुक्र के शोध्यपिंड से गुणाकर २७ का भाग देने पर जो शेष आये, उस तुल्य नक्षत्र या उससे त्रिकोण नक्षत्र में जब शनि आये तो स्त्री को कष्ट समझना चाहिये।

शुक्र के अष्टकवर्ग में शुक्र से सप्तम के बिंदुओं को शुक्र के शोध्यपिंड से गुणाकर १२ का भाग देने पर जो शेष आये, उस तुल्य राषि या उससे त्रिकोण राषि में जब शनि आये तो स्त्री को कष्ट समझना चाहिये।

शुक्र के अष्टकवर्ग में जिन राषियों में अधिक बिंदु हैं उस राषि की कन्या से विवाह करने से वंष वृद्धि होगी या उस राषि की दषा में जन्मी कन्या से विवाह करना संतानप्रद होता है।’’

जन्म कुंडली में शुक्र जिस राषि में बैठा है, उस राषि का स्वामी यदि ५ या अधिक बिंदुओं के साथ हो तो जातक को सभी प्रकार से संपन्नता, सुविधा और सुख मिलता है।
यदि कुंडली में सप्तमेष नीच का हो तथा शुक्र २ या ३ बिंदुओं के साथ ६-८-१२ भाव में हो तो जातक चरित्रहीन होता है।

जन्म कुंडली के जिस भाव में सबसे ज्यादा शुभ बिंदु हों, उस भाव पर शुक्र का जब गोचर हो तो वह समय संगीत सीखने, यौन सुख, गहने खरीदने या शादी करने के लिये शुभ होता है।

शुक्र के शोध्य पिंड को सूर्य के सातवें घर के बिंदुओं की संख्या से गुणा कर १२ का भाग देने पर जो शेष आये, उस तुल्य राषि में सूर्य का गोचर विवाह का माह बताता है।

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