जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जब माता सीता बन गई चण्डी

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जब माता सीता बन गई चण्डी



भगवान् श्री राम राज सभा में विराज रहे थे उसी समय विभीषण वहां पहुंचे. वे बहुत भयभीत और हडबड़ी में लग रहे थे. सभा में प्रवेश करते ही वे कहने लगे – हे राम ! मुझे बचाइये, कुम्भकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढा रहा है .अब लगता है न लंका बचेगी और न मेरा राज पाट।

भगवान श्री राम द्वारा ढांढस बंधाये जाने और पूरी बात बताये जाने पर विभीषण ने बताया कि कुम्भकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था. इसलिये उस का नाम मूलकासुर रखा गया. इसे अशुभ जान कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था।

जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया. मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या कर के ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया, अब उनके दिये वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है. जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राज पाट मुझे सौंप दिया है वह भन्नाया हुआ है।

भगवन आपने जिस दिन मुझे राज पाट सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही वह पाताल वासियों के साथ लंका पहुँच कर मुझ पर धावा बोल दिया. मैंने छः महिने तक मुकाबला किया पर ब्र्ह्मा जी के वरदान ने उसे इतना ताकत वर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा।

अपने बेटे, मन्त्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिये भाग कर यहाँ पहुँचा हूँ. उसने कहा कि ‘पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारुंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूँगा. वह आपके पास भी आता ही होगा।

समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं. जो उचित समझते हों तुरन्त कीजिये. भक्त की पुकार सुन श्रीराम जी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।

मूलकासुर को श्री राम चंद्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिये लंका के बाहर आ डटा. भयानक युद्ध छिड़ गया. सात दिनों तक घोर युद्ध होता रहा. मूलकासुर भगवान श्री राम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था।

अयोध्या से सुमन्त्र आदि सभी मन्त्री भी आ पहुँचे. हनुमान् जी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जिलाते जा रहे थे. सब कुछ होते हुये भी पर युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दीख रहा था. भगवान् चिन्ता में थे।

विभीषण ने बताया कि इस समय मूलकासुर तंत्र साधना करने गुप्त गुफा में गया है. उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ आये और भगवान से कहने लगे – ‘रघुनन्दन ! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है. आपका प्रयास बेकार ही जायेगा।

श्री राम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदे मंद हो सकता है.जब इसके भाई बिरादर लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी हो कर कहा, ‘चण्डी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’।

इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया – ‘दुष्ट ! तुने जिसे चण्डी कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी. ’ मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया.बाकी मुनि उस के डर से चुप चाप खिसक गये।

तो हे राम, अब कोई दूसरा उपाय नहीं है.अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं. आप उन्हें यहाँ बुला कर इसका वध करवाइये, इतना कह कर ब्रह्मा जी चले गये. भगवान् श्री राम ने हनुमान जी और गरुड़ को तुरन्त पुष्पक विमान से सीता जी को लाने भेजा।

इधर सीता देवी-देवताओं की मनौती मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गा जी की पूजा करती कि विजयी श्री राम शीघ्र लौटें. तभी गरुड़ और हनुमान् जी उनके पास पहुँचे।

पति के संदेश को सुन कर सीता तुरन्त चल दीं. भगवान श्री राम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया. फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया . उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था।

यह छाया सीता चण्डी के वेश में लंका की ओर बढ चलीं . इधर श्री राम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जा कर तहस नहस करें।

वानर गुफा के भीतर पहुंच कर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किट किटाता हुआ सब छोड़ छाड़ कर वानर सेना के पीछे दौड़ा. हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा. फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।

युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन ? अभी भाग जा. मैं औरतों पर मर्दानगी नही दिखाता. छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुये कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत-चण्डी हूँ. तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मार कर उसका बदला चुकाउंगी।

इतना कह कर छाया सीता ने मूलकासुर पर पाँच बाण चलाये. मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाये. कुछ देर तक घोर युद्द हुआ पर अन्त में ‘चण्डिकास्त्र’ चला कर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया. वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।

राक्षस हाहाकार करते हुए इधर उधर भाग खड़े हुए. छाया सीता लौट कर सीता के शरीर में प्रवेश कर गयी. मूलका सुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय जयकार की और विभीषन ने उन्हें धन्यवाद दिया. कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्री राम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आये ।

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