जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शनिदेव और रोजगार

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शनिदेव और रोजगार



शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है। जो लोग अनुचित बातों के द्वारा अपनी चलाने की कोशिश करते हैं, जो बात समाज के हित में नही होती है और उसको मान्यता देने की कोशिश करते है, अहम के कारण अपनी ही बात को सबसे आगे रखते हैं, अनुचित विषमता, अथवा अस्वभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि उनको ही पीडित करता है। शनि हमसे कुपित न हो, उससे पहले ही हमे समझ लेना चाहिये, कि हम कहीं अन्याय तो नही कर रहे हैं, या अनावश्यक विषमता का साथ तो नही दे रहे हैं। यह तपकारक ग्रह है, अर्थात तप करने से शरीर परिपक्व होता है, शनि का रंग गहरा नीला होता है, शनि ग्रह से निरंतर गहरे नीले रंग की किरणें पृथ्वी पर गिरती रहती हैं। शरी में इस ग्रह का स्थान उदर और जंघाओं में है। सूर्य पुत्र शनि दुख दायक, शूद्र वर्ण, तामस प्रकृति, वात प्रकृति प्रधान तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखता है। शनि सीमा ग्रह कहलाता है, क्योंकि जहां पर सूर्य की सीमा समाप्त होती है, वहीं से शनि की सीमा शुरु हो जाती है। जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझना, शनि का विशेष गुण है। यह ग्रह कष्टकारक तथा दुर्दैव लाने वाला है। विपत्ति, कष्ट, निर्धनता, देने के साथ साथ बहुत बडा गुरु तथा शिक्षक भी है, जब तक शनि की सीमा से प्राणी बाहर नही होता है, संसार में उन्नति सम्भव नही है। शनि जब तक जातक को पीडित करता है, तो चारों तरफ़ तबाही मचा देता है। जातक को कोई भी रास्ता चलने के लिये नही मिलता है। करोडपति को भी खाकपति बना देना इसकी सिफ़्त है। अच्छे और शुभ कर्मों बाले जातकों का उच्च होकर उनके भाग्य को बढाता है, जो भी धन या संपत्ति जातक कमाता है, उसे सदुपयोग मे लगाता है। गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलायेगा.साथ ही धर्म पर चलने की प्रेरणा देकर तपस्या और समाधि आदि की तरफ़ अग्रसर करता है। अगर कर्म निन्दनीय और क्रूर है, तो नीच का होकर भाग्य कितना ही जोडदार क्यों न हो हरण कर लेगा, महा कंगाली सामने लाकर खडी कर देगा, कंगाली देकर भी मरने भी नही देगा, शनि के विरोध मे जाते ही जातक का विवेक समाप्त हो जाता है। निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाती है, प्रयास करने पर भी सभी कार्यों मे असफ़लता ही हाथ लगती है। स्वभाव मे चिडचिडापन आजाता है, नौकरी करने वालों का अधिकारियों और साथियों से झगडे, व्यापारियों को लम्बी आर्थिक हानि होने लगती है। विद्यार्थियों का पढने मे मन नही लगता है, बार बार अनुत्तीर्ण होने लगते हैं। जातक चाहने पर भी शुभ काम नही कर पाता है। दिमागी उन्माद के कारण उन कामों को कर बैठता है जिनसे करने के बाद केवल पछतावा ही हाथ लगता है। शरीर में वात रोग हो जाने के कारण शरीर फ़ूल जाता है, और हाथ पैर काम नही करते हैं, गुदा में मल के जमने से और जो खाया जाता है उसके सही रूप से नही पचने के कारण कडा मल बन जाने से गुदा मार्ग में मुलायम भाग में जख्म हो जाते हैं, और भगन्दर जैसे रोग पैदा हो जाते हैं। एकान्त वास रहने के कारण से सीलन और नमी के कारण गठिया जैसे रोग हो जाते हैं, हाथ पैर के जोडों मे वात की ठण्डक भर जाने से गांठों के रोग पैदा हो जाते हैं, शरीर के जोडों में सूजन आने से दर्द के मारे जातक को पग पग पर कठिनाई होती है। दिमागी सोचों के कारण लगातार नशों के खिंचाव के कारण स्नायु में दुर्बलता आजाती है। अधिक सोचने के कारण और घर परिवार के अन्दर क्लेश होने से विभिन्न प्रकार से नशे और मादक पदार्थ लेने की आदत पड जाती है, अधिकतर बीडी सिगरेट और तम्बाकू के सेवन से क्षय रोग हो जाता है, अधिकतर अधिक तामसी पदार्थ लेने से कैंसर जैसे रोग भी हो जाते हैं। पेट के अन्दर मल जमा रहने के कारण आंतों के अन्दर मल चिपक जाता है, और आंतो मे छाले होने से अल्सर जैसे रोग हो जाते हैं। शनि ऐसे रोगों को देकर जो दुष्ट कर्म जातक के द्वारा किये गये होते हैं, उन कर्मों का भुगतान करता है। जैसा जातक ने कर्म किया है उसका पूरा पूरा भुगतान करना ही शनिदेव का कार्य है। शनि की मणि नीलम है। प्राणी मात्र के शरीर में लोहे की मात्रा सब धातुओं से अधिक होती है, शरीर में लोहे की मात्रा कम होते ही उसका चलना फ़िरना दूभर हो जाता है। और शरीर में कितने ही रोग पैदा हो जाते हैं। इसलिये ही इसके लौह कम होने से पैदा हुए रोगों की औषधि खाने से भी फ़ायदा नही हो तो जातक को समझ लेना चाहिये कि शनि खराब चल रहा है। शनि मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है। इसका उच्च तुला राशि में और नीच मेष राशि में अनुभव किया जाता है। इसकी धातु लोहा, अनाज चना, और दालों में उडद की दाल मानी जाती है।

शनि सम्बन्धी व्यापार और नौकरी

काले रंग की वस्तुयें, लोहा, ऊन, तेल, गैस, कोयला, कार्बन से बनी वस्तुयें, चमडा, मशीनों के पार्ट्स, पेट्रोल, पत्थर, तिल और रंग का व्यापार शनि से जुडे जातकों को फ़ायदा देने वाला होता है। चपरासी की नौकरी, ड्राइवर, समाज कल्याण की नौकरी नगर पालिका वाले काम, जज, वकील, राजदूत आदि वाले पद शनि की नौकरी मे आते हैं।

कुंडली मे शनि की पहचान

जातक को अपने जन्म दिनांक को देखना चाहिये, यदि शनि चौथे, छठे, आठवें, बारहवें भाव मे किसी भी राशि में विशेषकर नीच राशि में बैठा हो, तो निश्चित ही आर्थिक, मानसिक, भौतिक पीडायें अपनी महादशा, अन्तर्दशा, में देगा, इसमे कोई सन्देह नही है, समय से पहले यानि महादशा, अन्तर्दशा, आरम्भ होने से पहले शनि के बीज मंत्र का अवश्य जाप कर लेना चाहिये.ताकि शनि प्रताडित न कर सके, और शनि की महादशा और अन्तर्दशा का समय सुख से बीते.याद रखें अस्त शनि भयंकर पीडादायक माना जाता है, चाहे वह किसी भी भाव में क्यों न हो।

अंकशास्त्र में शनि

ज्योतिष विद्याओं मे अंक विद्या भी एक महत्व पूर्ण विद्या है, जिसके द्वारा हम थोडे समय में ही प्रश्न कर्ता का स्पष्ट उत्तर दे सकते हैं, अंक विद्या में ८ का अंक शनि को प्राप्त हुआ है। शनि परमतपस्वी और न्याय का कारक माना जाता है, इसकी विशेषता पुराणों में प्रतिपादित है। आपका जिस तारीख को जन्म हुआ है, गणना करिये, और योग अगर ८ आये, तो आपका अंकाधिपति शनिश्चर ही होगा.जैसे-८,१७,२६ तारीख आदि.यथा-१७=१+७=८,२६=२+६=८.

अंक आठ की ज्योतिषीय परिभाषा

अंक आठ वाले जातक धीरे धीरे उन्नति करते हैं, और उनको सफ़लता देर से ही मिल पाती है। परिश्रम बहुत करना पडता है, लेकिन जितना किया जाता है उतना मिल नही पाता है, जातक वकील और न्यायाधीश तक बन जाते हैं, और लोहा, पत्थर आदि के व्यवसाय के द्वारा जीविका भी चलाते हैं। दिमाग हमेशा अशान्त सा ही रहता है, और वह परिवार से भी अलग ही हो जाता है, साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी कटुता आती है। अत: आठ अंक वाले व्यक्तियों को प्रथम शनि के विधिवत बीज मंत्र का जाप करना चाहिये.तदोपरान्त साढे पांच रत्ती का नीलम धारण करना चाहिये.ऐसा करने से जातक हर क्षेत्र में उन्नति करता हुआ, अपना लक्ष्य शीघ्र प्राप्त कर लेगा.और जीवन में तप भी कर सकेगा, जिसके फ़लस्वरूप जातक का इहलोक और परलोक सार्थक होंगे. शनि प्रधान जातक तपस्वी और परोपकारी होता है, वह न्यायवान, विचारवान, तथा विद्वान भी होता है, बुद्धि कुशाग्र होती है, शान्त स्वभाव होता है, और वह कठिन से कठिन परिस्थति में अपने को जिन्दा रख सकता है। जातक को लोहा से जुडे वयवसायों मे लाभ अधिक होता है। शनि प्रधान जातकों की अन्तर्भावना को कोई जल्दी पहिचान नही पाता है। जातक के अन्दर मानव परीक्षक के गुण विद्यमान होते हैं। शनि की सिफ़्त चालाकी, आलसी, धीरे धीरे काम करने वाला, शरीर में ठंडक अधिक होने से रोगी, आलसी होने के कारण बात बात मे तर्क करने वाला, और अपने को दंड से बचाने के लिये मधुर भाषी होता है। दाम्पत्यजीवन सामान्य होता है। अधिक परिश्रम करने के बाद भी धन और धान्य कम ही होता है। जातक न तो समय से सोते हैं और न ही समय से जागते हैं। हमेशा उनके दिमाग में चिन्ता घुसी रहती है। वे लोहा, स्टील, मशीनरी, ठेका, बीमा, पुराने वस्तुओं का व्यापार, या राज कार्यों के अन्दर अपनी कार्य करके अपनी जीविका चलाते हैं। शनि प्रधान जातक में कुछ कमिया होती हैं, जैसे वे नये कपडे पहिनेंगे तो जूते उनके पुराने होंगे, हर बात में शंका करने लगेंगे, अपनी आदत के अनुसार हठ बहुत करेंगे, अधिकतर जातकों के विचार पुराने होते हैं। उनके सामने जो भी परेशानी होती है सबके सामने उसे उजागर करने में उनको कोई शर्म नही आती है। शनि प्रधान जातक अक्सर अपने भाई और बान्धवों से अपने विचार विपरीत रखते हैं, धन का हमेशा उनके पास अभाव ही रहता है, रोग उनके शरीर में मानो हमेशा ही पनपते रहते हैं, आलसी होने के कारण भाग्य की गाडी आती है और चली जाती है उनको पहिचान ही नही होती है, जो भी धन पिता के द्वारा दिया जाता है वह अधिकतर मामलों में अपव्यय ही कर दिया जाता है। अपने मित्रों से विरोध रहता है। और अपनी माता के सुख से भी जातक अधिकतर वंचित ही रहता है।

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