जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्री कुबेरजी महाराज धन के स्वामी

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्री कुबेरजी महाराज धन के स्वामी



भारत एक ऐसा देश है जहां हमारे हिंदू धर्म में हर वस्तु विशेष की पूजा देवी-देवताओं के रुप में की जाती है जो चीजें हमारे जीवन की जरूरत है या जिनके बिना हम जी नहीं सकते उन्हें हम देवी-देवताओं के रूप में पूजते हैं जैसे अग्नि, पानी, वायु ,सूर्य, वर्षा आदि आज का युग जिसमें हम सब के लिए सबसे जरूरी और सर्वश्रेष्ठ जो चीज है वह है धन। हर इंसान सारा जीवन धन के लिए जूझता है कभी-कभी तो खुद की सेहत और रिश्तो को धन के लिए दांव पर लगा देता है, इसलिए आज के युग में जहां धन इतना जरूरी है वहां धन के देवता की पूजा करना भी उतना ही आवश्यक है।

कुबेर कलयुग में ही नहीं उससे भी पहले कई युगों से पूजे जाते हैं वैसे तो कुबेर की कई कथाएं प्रसिद्ध हैं, परंतु उनकी एक कथा जो पुराणों में मिलती है वह यह है कि पुलस्त्य ऋषि के पुत्र विश्रवा थे और विश्रवा की 4 पत्नियां थी जिनमें से एक पत्नी का नाम इडविडा था जिनसे कुबेर का जन्म हुआ। इडविडा राजा की पुत्री थी और कैकसी से रावण का जन्म हुआ, कैकसी राक्षसी थी। रावण और कुबेर दोनों सोतेले भाई थे, कहते हैं ब्रह्मा जी ने वरदान में विश्वकर्मा से सोने की लंका बनवाकर कुबेर को भेंट की थी और मन की गति से चलने वाला पुष्पक विमान भी दिया था परंतु रावण ने उस से ना केवल लंका बल्कि पुष्पक विमान भी छीन लिया था।

हमारे देश में विद्या और ज्ञान को ज्यादा महत्व दिया जाता है कोई भी देवी देवता है ऐसे नहीं है जो ज्ञान के प्रारूप ना हो यहां धन को इतना महत्व नहीं दिया जाता जितना ज्ञान को, अक्सर हम सुनते हैं कि ज्यादा धन होना अच्छा नहीं है ज्यादा धन होने से व्यक्ति धन के बोझ के नीचे दब जाता है इसलिए कथा वाचकों ने और मूर्तिकारों ने कुबेर को तीन टांग वाला और कुबड़ा दिखाया है परंतु वेदों में इसका कोई वृतांत नहीं मिलता कि कुबेर कुरूप थे ।

कुबेर के लिए एक और कहानी प्रचलित है कि कुबेर अपने पिछले जन्म में चोर थे, वह देर रात मंदिरों में चोरी करते थे, एक बार वो चोरी करने शिव मंदिर में घुसे,तब मंदिर में अंधेरा था और उन्होंने मंदिर में रोशनी के लिए दीपक जलाया लेकिन हवा ज्यादा चलने के कारण दीपक बुझ गया,कुबेर ने फिर दीपक जलाया,वह दीपक फिर बुझ गया। यह क्रम उन्होंने कई बार किया, वहां विराजमान भोले शंकर ने अपने दीपक को बुझने से बचाने के लिए खुश होकर कुबेर को धनपति होने का वरदान दिया इसी कारण अपने अगले जन्म में उनका जन्म कुबेर के रूप में हुआ।

एक और कथा बहुत प्रसिद्ध है कि एक बार कुबेर जी के मन में अहंकार आ गया कि मेरे पास अपार धन संपदा है मैं इससे कुछ भी कर सकता हूं जितने चाहे उतने लोगों का पेट भर सकता हूं मेरा खजाना कभी खाली नहीं हो सकता।इस बात के अहंकार में आकर उन्होंने कई देवों को खाने का निमंत्रण दिया। कुबेर शिवभक्त थे इसलिए सबसे पहले वह शिवजी के पास कैलाश गए और उनको खाने का निमंत्रण दिया परंतु शिवजी ने बड़ी विनम्रता के साथ उनका निमंत्रण यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि वह कैलाश छोड़कर नहीं जा सकते इतने में पार्वती जी ने शिव भगवान से कहा कि आप निमंत्रण को अस्वीकार ना करें,हम अपने पुत्र गणेश को खाने पर भेज सकते हैं। फिर कुबेर जी गणेश जी का निमंत्रण सविकार करके वहां से चले गए अगले दिन कुबेर जी सभी देवताओं का स्वागत करने के लिए अपने महल के बाहर खड़े थे तभी गणेश जी वहां पधारें।कुबेर ने कहा कि आईए गजानन ,आप पेट भर कर खाइए यहां पर सब चीजें मौजूद हैं जब गणेश जी खाना खाने बैठे तो वह खाते ही रहे सब देवता खाना खा कर चले गए, परंतु गणेश जी खाते ही रहे ,अंदर पका हुआ सारा भोजन समाप्त हो गया ।

फिर कुबेर जी गणेश जी के पास आए उन्होंने कहा कि आपके लिए और भोजन पकाया जा रहा है आप इंतजार करें, गणेश जी गुस्से में आ गए वह रसोई घर में गए वहां सभी सब्जियां जो अधपकी थी वह सब उन्होंने खा ली। फिर भी उनका पेट नहीं भरा, इतने में वह गुस्से में आकर कुबेर के पीछे भागने लगे,दोनों भागते-भागते कैलाश पर्वत पर पहुंच गए वह शिव भगवान के पास जाकर कुबेर जी ने उनके पांव पकड़ लिए भगवान शिव ने गणेश जी से पूछा क्या आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, गणेश जी ने कहा के कुबेर ने कहा था कि उनके पास खाने का सब सामान है जिससे उनका पेट भर जाएगा परंतु मेरा पेट अभी तक नहीं भरा भगवान शिव ने गणेश जी को मोदक खाने को दिए जिनसे उनका पेट भर गया ।इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है की अहंकार करने से किसी का पेट नहीं भरता सब कुछ होते हुए भी कुबेर भगवान गणेश का पेट नहीं भर सके उनके पास कभी न खत्म होने वाला धन है परंतु फिर भी वह गणेशजी जी की भूख नहीं मिटा पाए। यह कहानी उन व्यक्तियों के लिए शिक्षा है जो धनवान होने का अभिमान करते हैं इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि धन होना अच्छा है परंतु धन का अहंकार हो ना बहुत बुरा है अगर कुबेर धन के देवता होकर भी परीक्षा में पड़ सकते हैं तो हम इंसान क्या हैं।

कुबेर जी नौ निधियों के देवता माने गए है इसके लिए एक कहानी प्रचलित है कि ऋषि पुलस्त्य के ऊपर एक विपदा आ गई, उनके गांव में सूखा पड़ गया उनके पास धन की कमी हो गई ,जिसके लिए उन्होंने गणपति जी की आराधना की क्योंकि वेदों के नियम के अनुसार कुबेर जी कि सीधे आराधना नहीं की जाती थी इसलिए गणपति जी ने कुबेर को ऋषि की मदद करने के लिए कहा।

कुबेर जी ने प्रकट होकर ऋषि पुलसत्य को कहा कि अगर मेरे नौ रूपों में से किसी एक रूप की आराधना की जाएगी तो आप को अपार धन लाभ होगा। इसी कथा के अनुसार जो भी कुबेर जी के नौ रूपों में से किसी भी रूप की प्रार्थना करता है उसे धन की कभी कमी नहीं होती कुबेर के नौ रूपों में से पहला रूप है

धनकुबेर — धनकुबेर की धन प्राप्त करने के लिए आराधना की जाती है इनकी आराधना मंगलवार के दिन की जाती है इनकी आराधना के समय पूर्व दिशा मैं मुख होना चाहिए।

पुष्प कुबेर — रिश्तो को सौम्या बनाने के लिए पुष्प रूप कुबेर की आराधना की जाती है इनका दिन मंगलवार है और इनकी दिशा उत्तर दिशा मानी गई है।

चंद्र कुबेर — चंद्र कुबेर की आराधना संतान प्राप्ति के लिए की जाती है इनकी आराधना रविवार के दिन की जाती है इस आराधना के लिए मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

पीत कुबेर — पीत कुबेर को संपत्ति के लिए पूजा जाता है जिन लोगों को प्रॉपर्टी चाहिए, उन्हें पीत कुबेर की पूजा करनी चाहिए पीत कुबेर की पूजा करने के लिए बुधवार का दिन शुभ माना गया है इसके लिए मुख पश्चिम दिशा की तरफ होना चाहिए।

हंस कुबेर — कानूनी दावपेंच,मुकदमे में जीत आदि के लिए हंस कुबेर की पूजा की जाती है इनकी आराधना शनिवार के दिन की जाती है, और मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए।

राग कुबेर — राग कुबेर की आराधना शिक्षा प्राप्ति के लिए लेखन,चित्र कला,नृत्य आदि में प्रसिद्धि के लिए की जाती है इसका दिन वीरवार है और दिशा पूर्व दिशा मानी गई है।

अमृत कुबेर — सभी रोगों की के नाश के लिए अमृत कुबेर की पूजा की जाती है इनकी आराधना शुक्रवार के दिन की जाती है और मुख पश्चिम दिशा में होना चाहिए।

प्राण कुबेर — ऋण नाशक प्राण कुबेर की आराधना सोमवार के दिन उत्तर दिशा की तरफ मुख करके करनी चाहिए इससे सभी प्रकार के ऋणों का नाश होता है।

उग्र कुबेर — उग्र कुबेर की आराधना शत्रु नाश के लिए की जाती है इनकी आराधना शनिवार के दिन की जाती है इस आराधना के समय मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

इस प्रकार कुबेर के नौ रुपों में से किसी भी रूप की आराधना करने से मनचाहा फल प्राप्त होता है दीपावली और धनतेरस के दिन कुबेर साधना का महत्व और भी बढ़ जाता है।

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