जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से मान्द्य चन्द्रग्रहण (‘उपच्छाया ग्रहण’) 30 नवम्ब 2020 शंका समाधान

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से मान्द्य चन्द्रग्रहण (‘उपच्छाया ग्रहण’) 30 नवम्ब 2020 शंका समाधान



मान्य चन्द्र ग्रहण-कार्तिक शुक्ल पक्ष 15 सोमवार तारीख 30.11.2020 ई. को मान्द्य चन्द्र ग्रहण का भारतीय समय से स्पर्श दिन में 01.02 बजे एवं मोक्ष दिन में05.23 बजे होगा यह ग्रहण भारत में कारगिल, उत्तर काशी, लैंसडाउन, बरेली, अम्बेडकर नगर, कानपुर, चित्रकूट, रीवा, श्रीकाकुलम इन नगरों तथा इन नगरों से पूर्व के सभी नगरों में दृश्य होगा परन्तु दक्षिण-पश्चिमी भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, अन्टार्कटिका आदि में ग्रहण दृश्य नहीं होगा इस ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है इसमें किसी भी प्रकार का यम-नियम सूतक आदि मान्य नहीं होगा।

मान्ध चन्द्रग्रहण यानि (‘उपच्छाया ग्रहण’)
वास्तव में चन्द्रग्रहण नहीं होता। प्रत्येक चन्द्रग्रहण के घटित होने से पहिले चन्द्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में अवश्य प्रवेश करता है, जिसे चन्द्र-मालिन्य अथवा इंग्लिश में (Penumbra) भी कहा जाता है। उसके बाद ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया [दूसरे शब्दों में भूभा (Umbra)] में प्रवेश करता है। तभी उसे वास्तविक ग्रहण कहा जाता है। भूभा में चन्द्रमा के संक्रमण काल को चन्द्रग्रहण कहा जाता है। पूर्णिमा को चन्द्रमा उपच्छाया में प्रवेश कर, उपच्छाया शंक से ही बाहर निकल जाता है। इस उपच्छाया के समय चन्द्रमा का बिम्ब केवल धुन्धला पडता है, काला नहीं होता तथा इस धुंधलेपन को साधारण नंगी आँख से देख पाना सम्भव नहीं होता। धर्मशास्त्रकारों ने इस प्रकार के उप-ग्रहणों (उपच्छाया) में चन्द्र बिम्ब पर मालिन्य मात्र छाया आने के कारण उन्हें ग्रहण की कोटि में नहीं रखा। प्रत्येक चन्द्रग्रहण घटित होने से पहिले तथा बाद में भी चन्द्रमा को पृथ्वी की इस उपच्छाया में से गुजरना पड़ता है, जिसे ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती।

गत कुछ वर्षों से कई टी.वी. चैनलों तथा कछ समाचार पत्रों द्वारा भी अपनी-अपनी टी.आर.पी. वृद्धि के उद्देश्य से उपरोक्त उपच्छाया ग्रहणों को भी ग्रहणों की कोटि में प्रदर्शित कर उनका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और वहाँ बैठे एंकरों तथा अल्पज्ञ पण्डितों द्वारा इन उपच्छाया ग्रहणों द्वारा बारह राशियों पर पड़ने वाले काल्पनिक प्रभावों की विवेचना भी प्रारम्भ कर देते हैं और लोगों को अकारण ही भयभीत एवं गुमराह कर देते हैं। वास्तव में उपच्छाया ग्रहणों में न तो अन्य वास्तविक ग्रहणों की भान्ति पृथ्वी पर उनकी काली छाया
पड़ती है, न ही सौरपिण्डों (सूर्य-चन्द्र) की भान्ति उनका वर्ण काला होता है। केवल
चन्द्रमा की आकृति थोड़ी धुंधली-सी हो जाती है। अतः धर्मनिष्ठ एवं श्रद्धालु जनों को इन्हें ग्रहण-कोटि में न मानते हुए एवं ग्रहण सम्बन्धी पथ्य-अपथ्य का विचार न करते हुए पूर्णिमा सम्बन्धित साधारण व्रत, उपवास, दान आदि का अनुष्ठान करना चाहिए।

ध्यान दें यह ग्रहण धार्मिक दृष्टिकोण से मान्य नही है इसका सूतक नही लगेगा ना ही इसके लिये किसी भी प्रकार का यम नियम करना आवश्यक है। यह ग्रहण किसी भी राशि को शुभ अशुभ रूप से प्रभावित नही करेगा।

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