सुधांशु कुमार सतीशसिमराही बाजार (सुपौल)
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सिमराही बाज़ार के तत्वधान में भव्य स्नेह मिलन एवं आध्यात्मिक समारोह कार्यक्रम का आयोजन किया गया । जिसमें माँ लक्ष्मी जी के चैतन्य झांकी की पुजा कर कार्यक्रम विधिवत रूपमें दीप प्रज्वलन करके सुभारम्भ किया।सभी प्रभु प्रेमियों को सम्बोधित करते हुए सीमावर्ती क्षेत्र प्रभारी ब्रह्मा कुमारी रंजु दीदी ने अपने उदबोधन में कही कि दीपावली त्यौहार में हम सब जिस प्रकार घर की सफाई का ध्यान रखते हैं, उसी प्रकार अन्तर्मन की सफाई भी जरूरी है। बाहर के अन्धकार को तो मिट्टी के दीपक जलाकर दूर कर सकते हैं किन्तु अन्तर्मन में छाए हुए अन्धकार को दूर करने के लिए हमें शुभसंकल्पों के दीप जलाने होंगे।
उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि आओ हम सभी मनुष्य सत्य परमात्मा से सत्य ज्ञान लेकर अपने जीवन को पावन बनाएं। अपनी आत्म ज्योति जगाकर ईश्वरीय मिलन का वास्तविक सुख प्राप्त करें। ऐसे मनोपरिवर्तन से ही पृथ्वी पर स्वर्ग आएगा। जहाँ श्री लक्ष्मी और श्री नारायण का राज्य होगा।उन्होंने आगे कहा कि आत्मा ही सच्चा दीपक है। विकारों के वशीभूत हो जाने के कारण आत्मा का प्रकाश आज मलिन हो गया है। लोगों का अन्तर्मन काम, क्रोध ,लोभ, मोह, अहंकार आदि विकारों के अधीन हो गया है। ऐसे विकारी मनुष्यों के बीच श्री लक्ष्मी का शुभागमन भला कैसे हो सकता है? यह कैसी विडम्बना है कि मन-मन्दिर की सफाई करने की जगह बाहरी सफाई से ही हम खुश हो जाते हैं। इस समय परमपिता परमात्मा जो कि जन्म-मरण के चक्र में न आने के कारण सदा ही जागती ज्योति हैं, हम मनुष्य आत्माओं की ज्ञान और योग से ज्योति जगाकर पावन बना रहे हैं। दीपावली का त्यौहार परमात्मा के इन्हीं कर्मों की यादगार है।उन्होंने आगे कहा कि हमेशा दूसरों के लिए अच्छा सोचें। सदैव शुभ सोचेंगे तो लाभ होना ही है। इसीलिए हमारी भारतीय संस्कृति में जब कोई नया कार्य शुरू करते हैं तो स्वस्तिक के साथ शुभ और लाभ लिखते हैं। क्योंकि शुभ के साथ लाभ जुड़ा हुआ है।इसीप्रकार सेवा केंद्र प्रभारी बबीता दीदी ने अपने उदबोधन में कहीं दिवाली अर्थात् जब आत्मा की ज्योत जग जाती है। दिवाली एक-दूसरे को दुआएं देने का, पुरानी बातें, पुराने खाते जो एक-दूसरे के साथ अटके थे, उन्हें समाप्त करके नए साल की, नए युग की शुरुआत का समय है। दिवाली आने के कई दिन पहले से ही हम सब घर सफाई शुरू कर देते हैं। इसके साथ ही हमें मन की सफाई भी जोड़ देनी चाहिए।हम देखते हैं कि दिवाली के समय सफाई एक अलग ही स्तर पर चली जाती है। हर रोज हम ऊपर-ऊपर से सफाई करते हैं। चीजें कभी-कभी उठाकर ऐसे ही अलमारी में डाल देते हैं। लेकिन चीजें इतनी जमा हो जाती हैं कि गलती से किसी ने वह अलमारी खोल दी तो बहुत कुछ बाहर निकलकर आ जाता है। इसी तरह जीवन में भी होता है।हम लोगों से बहुत प्यार से बात करते हैं, बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं, हमें लगता है कि हमारा सबके साथ रिश्ता इतना अच्छा है। लेकिन हम ये नहीं जांचते कि हमने मन में क्या रखा हुआ है ? हम उनके बारे में सोचते कुछ और हैं, बोलते कुछ और हैं। हम कुछ करना नहीं चाहते फिर भी करते हैं उनको खुश करने के लिए। उन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, लेकिन कोई बात नहीं रिश्ता महत्वपूर्ण है।तो मुझे अच्छे से व्यवहार करना है। ये जो सफाई हो रही थी ये बाहर की सफाई हो रही थी। लेकिन अंदर और मन के कोने-कोने में बहुत सारी पुरानी बातें रखी हैं। अगर हम सरल रीति से जांचें तो हमें उनके संस्कार, उनका व्यवहार अच्छा नहीं लग रहा। हमें उनका काम करने का तरीका पसंद नहीं आ रहा। पर हम सबके साथ अच्छे से चल रहे हैं।लेकिन हमने देखा कि सबकुछ करने के बावजूद हमारे रिश्ते बहुत मजबूत आधार पर नहीं खड़े हैं। किसी ने एक शब्द कहा तो बहुत कुछ बाहर निकल आता है। फिर हम माफी मांगते हैं कि मुंह से निकल गया। जब तक वो बात मन में न हो, तब तक मुंह से निकल ही नहीं सकती।तो दिवाली आ गई है। घर के साथ मन के कोने-कोने की भी सफाई करें। बिना इसके हम श्री लक्ष्मी का आह्वान नहीं कर पाएंगे। अर्थात् अंदर की पवित्रता, दिव्यता का आह्वान करना। जहां पुरानी बातें जमी होंगी वहां पवित्रता कैसे आएगी। जहां किसी के बारे में कुछ जमा रखा होगा तो वहां सफाई कैसे होगी! कोई तो इतना पुराना मैल है कि हमें वो मैल लगता ही नहीं है। क्योंकि हमारे मन के वे दाग जीवन का हिस्सा ही बन चुके हैं। हमें पता भी नहीं है कि ये एक दाग है। ये हमारा शुद्ध वास्तविक संस्कार नहीं हैं।दिवाली अर्थात् कोने-कोने की सफाई। अगले कुछ दिन खुद के साथ बैठें। अच्छे से कोने-कोने में जांचें, जहां पहले कभी नहीं गए थे वहां जाएं। बचपन में कुछ हुआ था, बीस साल पहले कुछ हुआ था, किसी ने कुछ कहा था, किसी ने कुछ किया था। उसे हटाना है। क्योंकि आत्मा का दाग हमारा हिस्सा बन जाता है। वह हमारे वर्तमान पर भी असर डालता है। अगर आत्मा शरीर छोड़ती है तो हमारे दाग हमारे साथ जाते हैं।अगर धरती पर दिवाली लानी है तो हर आत्मा को, हर दाग, जो पिछले कई जन्मों से लाए हुए हैं, उन्हें साफ करना है। जैसे कोई मुझसे प्यार ही नहीं करता, कोई मेरा सम्मान नहीं करता, किसी को मेरा मोल नहीं है, जिसे देखो मुझे इस्तेमाल कर छोड़ देता है। ये आवाजें जब अंदर चलती रहती हैं, तो आत्मा की पवित्रता खत्म हो जाती है।हम भले सबके साथ बहुत अच्छे हैं लेकिन खुद अपने आपसे अच्छे से बात नहीं करते हैं। हम खुद ही खुद के मन को कितना मैला कर देते हैं। एक गलत सोच दाग है और एक सही सोच उस दाग को मिटा देती है। तो ज्ञान को लेकर परमात्मा की याद और शक्ति से अपने मन पर लगे हुए दागो को मिटाना है। तभी जीवन में दिवाली आएगी।दिवाली सिर्फ बाहर मनाने का त्योहार नहीं अपने मन के अंदर मनाने का त्योहार है। वो उनका संस्कार है, वो उनका नजरिया है, वो उनकी मन की स्थिति, वो उनका मूड है। हमसे भी कभी गलती हो जाती है तो हम खुद के प्रति बहुत आलोचनात्मक हो जाते हैं। अपनी ही गलतियों को अंदर दोहराते रहते हैं।गलती हो गई फिर कभी नहीं करेंगे, यह सोच बनानी है और आत्म-आलोचना के दाग को खत्म करना है। खुद के साथ समय बिताएं और कोने-कोने में जाकर हर पुराने दाग को खत्म करें तभी हमारा मन दिवाली मनाने के लिए साफ होगा।
उक्त कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमार किशोर भाईजी ने किया।
मौके पर राघोपुर बीडीओ सुभाष कुमार, मुखिया बिजय चौधरी, व्यवसायिक राम नगीना भगत, राम नारायण महतो, अनिल महतो , परमेश्वरी सिंह यादव, विमल गुप्ता, सतीश कुमार, ब्रह्माकुमारी बबीता दीदी, बीना बहन, संगम बहन, मौसम बहन, ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी, सेंट्रल बैंक मैनेजर सचिन कुमार सिंह, खुशबू बहन, मधु देवी, सुशीला देवी, सत्य नारायण भाई, बेचू भाई, अशोक भाई, वीरेंद्र भाई इत्यादि सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।