जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से कार्तिक माह महात्म्य – सातवाँ अध्याय

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से कार्तिक माह महात्म्य – सातवाँ अध्याय



मंगलकारी श्री हरि का,
सच्चा नाम ध्याऊं।
कार्तिक मास माहात्म्य का,
सातवाँ अध्याय बनाऊँ।।

नारद जी ने कहा – हे राजन! कार्तिक मास में व्रत करने वालों के नियमों को मैं संक्षेप में बतलाता हूँ, उसे आप सुनिए. व्रती को सब प्रकार के आमिष मांस, उरद, राई, खटाई तथा नशीली वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए. व्रती को दूसरे का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, किसी से द्वेष नहीं करना चाहिए और तीर्थ के अतिरिक्त अन्य कोई यात्रा नहीं करनी चाहिए. देवता, वेद, ब्राह्मण, गाय, व्रती, नारी, राजा तथा गुरुजनों की निन्दा भी नहीं करनी चाहिए.
व्रती को दाल, तिल, पकवान व दान किया हुआ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए. किसी की चुगली या निन्दा भी नहीं करनी चाहिए. किसी भी जीव का मांस नहीं छूना चाहिए. पान, कत्था, चूना, नींबू, मसूर, बासी तथा झूठे अन्न का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए. गाय, बकरी तथा भैंस के अतिरिक्त अन्य किसी पशु का दूध नहीं पीना चाहिए. कांस्य के पात्र में रखा हुआ पंचगव्य, बहुत छोटे घड़े का पानी तथा केवल अपने लिए ही पका हुआ अन्न प्रयोग करना चाहिए।

कार्तिक माह का व्रत करने वाले मनुष्य को सदैव ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. उसे धरती पर सोना चाहिए और दिन के चौथे पहर में केवल एक बार पत्तल में भोजन करना चाहिए. व्रती कार्तिक माह में केवल नरक चतुर्दशी जिसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है के दिन ही शरीर में तेल लगा सकता है. कार्तिक माह में व्रत करने वाले मनुष्य को सिंघाड़ा, प्याज, मठ्ठा, गाजर, मूली, काशीफल, लौकी, तरबूज इन वस्तुओं का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए. रजस्वला, चाण्डाल, पापी, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मणद्रोही और नास्तिकों से बातचीत नहीं करनी चाहिए. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अपनी शक्ति के अनुसार चान्द्रायण आदि का व्रत करना चाहिए और उपर्युक्त नियमों का पालन करना चाहिए।

व्रती को प्रतिपदा को कुम्हड़ा, द्वितीया को कटहल, तृतीया को तरूणी स्त्री, चतुर्थी को मूली, पंचमी को बेल, षष्ठी को तरबूज, सप्तमी को आंवला, अष्टमी को नारियल, नवमी को मूली, दशमी को लौकी, एकादशी को परवल, द्वादशी को बेर, त्रयोदशी को मठ्ठा, चतुर्दशी को गाजर तथा पूर्णिमा को शाक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। रविवार को आंवला का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक माह में व्रत करने वाला मनुष्य यदि इन शाकों में से किसी शाक का सेवन करना चाहे तो पहले ब्राह्मण को देखकर ग्रहण करे।
यही विधान माघ माह के व्रत के लिए भी है. देवोत्थानी एकादशी में पहले कही गयी विधि के अनुसार नृत्य, जागरण, गायन-वादन आदि करना चाहिए। इसको विधिपूर्वक करने वाले मनुष्य को देखकर यमदूत ऎसे भाग जाते हैं जैसे सिंह की गर्जना से हाथी भाग जाते हैं। कार्तिक माह का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त जितने भी व्रत-यज्ञ हैं वह हजार की संख्या में किये जाने पर भी इसकी तुलना नहीं कर सकते क्योंकि यज्ञ करने वाले मनुष्य को सीधा वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार राजा की रक्षा उसके अंगरक्षक करते हैं उसी प्रकार कार्तिक माह का व्रत करने वाले की रक्षा भगवान विष्णु की आज्ञा से इन्द्रादि देवता करते हैं।
व्रती मनुष्य जहाँ कहीं भी रहता है वहीं पर उसकी पूजा होती है, उसका यश फैलता है। उसके निवास स्थान पर भूत, पिशाच आदि कोई भी नहीं रह पाते। विधि पूर्वक कार्तिक माह का व्रत करने वाले मनुष्यों के पुण्यों का वर्णन करने में ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। यह व्रत सभी पापों को नष्ट करने वाला, पुत्र-पौत्र प्रदान करने वाला और धन-धान्य की वृद्धि करने वाला है।

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