जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से माँ विन्ध्येश्वरी स्तोत्र
माँ विन्ध्येश्वरी स्तोत्र
निशुम्भ शुम्भ मर्दिनीँ, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनीम्।
वने रणे प्रकाशिनीँ, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥
त्रिशूल मुण्ड धारिणीँ, धारा विधात हारिणीम्।
गृहे गृहे निवासिनीँ, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥
दरिद्र दुःख हारिणीँ, सती विभूति धारिणीम्।
वियोग शोक हारिणीँ, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥
लसत्सुलोल लोचनीँ, जने सदा वरप्रदाम्।
कपाल शूल धारिणीँ, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥
कराब्ज दानदा धरां, शिवा शिव प्रदायिनीम्।
वरां वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥
कपीन्द्र जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणीम्।
जले स्थले निवासिनीँ, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥
विशिष्ट शिष्ट कारिणीम्, विशाल रूप धारिणीम्।
महोदरे विलासिनीँ, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥
पुरन्दरादि सेवितां, पुरादिवंश खण्डिताम्।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीँ, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥ विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् समाप्त