स्वास्थ्य डेस्क। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से धन बढ़े, आरोग्य बढ़े, आयु बढ़ता जाय, देव-पितर खुश होत रहें, जो इस विधि भोजन खाय
सभी जीवों के लिए भोजन जीवन का क्या महत्व है, इसे सब जानते हैं। यह भी प्रमाणित है कि जो जैसा भोजन करता है वैसा ही उसका स्वास्थ्य और विचार हो जाता है और इसमें की गयी लापरवाही बहुतही महँगा पड़ता है। दूसरी ओर, यदि रुचिकर, स्वास्थ्यवर्धक, पवित्र भोजन अच्छे गुणों का भंडार होता है।
इस तथ्य को ऋषि-मुनिओं ने बहुत नजदीक से जाँचा-परखा और लोकहित के लिए बिभिन्न शास्त्र-पुराणों के माध्यम से सामने रखा। सुख-समृद्धि चाहनेवाले को अवश्य ही इन पर ध्यान देना चाहिए।
- दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह — इन पाँचो अंगो को धोकर ही भोजन करना चाहिए। इससे आदमी की आयु बढ़ती है। (स्कंदपुराण,पद्मपुराण,सुश्रुतसंहिता,आदि) )
- अँन्धेरे में भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन में कुछ खतरनाक जीव-जंतु गिर जाय तो वह दिखता नहीं और उसे खा लेने पर वह जानलेवा हो सकता है। (पद्मपुराण
- भोजन की वस्तु को गोद में रखकर खाना वर्जित है। इसीप्रकार बिछावन पर बैठकर, हाथमें लेकर और आसन पर रखकर भोजन करने से रोग और दरिद्रता आती है। (वशिष्ठस्मृति, बौद्धयनस्मृति, कूर्मपुराण, पद्मपुराण, आदि )
- फूटे हुए बर्तनमें भोजन करने से यह अपवित्र हो जाता है, जिसे खाने से खानेवाला भारी पाप का भागी होता है। ( व्याघ्रपादस्मृति, सुश्रुतसंहिता, मनुस्मृति,स्कंदपुराण, आदि )
- ढीक आधी रातमें, मध्यान्ह(दिंनके बारहबजे के आस-पास ) में, गीले वस्त्र धारणकर, सोते हुए और दूसरे के लिए रखे गए आसन पर खाना खाने से देव-पितृगण तो रस्ट होते ही हैं वातरोग भी हो जाता है। (कूर्मपुराण)
- अजीर्णता (जब भोजन नहीं पचा हो और कंठदाह, खट्टी डकार आदि आती हो) होने पर भोजन करना विष के समान मानाजाता है, जो प्राणलेवा भी हो जाता है। अत:ऐसी स्थितिमें भोजन करना पूर्णत:मना है। ( कूर्मपुराण )
- ग्रहणकाल (सूर्य अथवा चन्द्र ) में भोजन करना भयंकर दुखदायी है, अत:बुद्धिमान लोगों को इससे एकदमही बचना चाहिए। इससे आँख की बीमारी, दाँतों का नष्ट होना, पेटमें बिभिन्न प्रकार के रोगों की संभावना तो रहती ही है व्यक्ति भारी पाप का भागी भी होता है। (आपस्तम्बस्मृति, देवीभागवत, आदि )
- मल-मूत्र के वेग होनेपर भोजन नही करना चाहिए। (सुश्रुतसंहिता )
- जो कोई व्यक्ति भोजन करनेवाले में प्रेम न रखता हो उसका दिया हुआ भोजन नहीं ही करना चाहिए। यह किसी दुर्घटना का कारण हो सकता है।(चरकसंहिता )
- बहुत थका हुआ होनें पर आराम करने के बाद ही भोजन करना चाहिए, नहीं तो बुखार या वमन (वोमिटिंग) हो सकता है। (नीतिवक्यामृतम् )
- जोभी भोजन परोसा गया है उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। सामने जोभी आगया उसे प्रेमसे खाना चाहिये। इससे वह अच्छी तरह पच जाता है और बल में वृद्धि करता है।
निंदित भोजन स्वास्थ्यकर तो नहीं ही होता है, देवी अन्नपूर्णा को भी क्रुद्ध कर देता है, फलत:आदमी दरिद्रता की और बढ़ने लगता है। (चरकसंहिता, महाभारत, तैत्तरीयोपनिषद्, वृद्धगौतमस्मृति, आदि )