जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से द्वादशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व…….
हिंदू पंचाग की बाहरवीं तिथि द्वादशी कहलाती है। इस तिथि का नाम यशोबला भी है, क्योंकि इस दिन पूजन करने से यश और बल की प्राप्ति होती है। इसे हिंदी में बारस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की बारहवीं कला है, इस कला में अमृत का पान पितृगण करते हैं। द्वादशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 133 डिग्री से 144 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में द्वादशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 313 से 324 डिग्री अंश तक होता है। द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान विष्णु को माना गया है। इस तिथि में जन्मे जातकों को श्रीहरि की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इस तिथि के दिन भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का भी जन्म हुआ था।
द्वादशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि द्वादशी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा द्वादशी तिथि बुधवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि किसी भी पक्ष में द्वादशी रविवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ होता है, जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। बता दें कि द्वादशी तिथि भद्रा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है।
द्वादशी तिथि में जन्मे जातकों को मन बहुत चंचल होता है। ये लोग घुमक्कड़ी होते हैं। इनको निर्णय लेने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ये जातक काफी भावुक स्वभाव के होते हैं। ये जातक मेहनती और परिश्रम करने वाले होते हैं। इन्हें संतान सुख और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति भी मिलती है। ये लोग खाने-पीने के शौकीन होते हैं।
द्वादशी के शुभ कार्य
द्वादशी तिथि में यात्रा छोड़कर अन्य सभी कार्य करने शुभ होते हैं। इस तिथि में विवाह, घर निर्माण और गृहप्रवेश करना भी लाभप्रद रहता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की द्वादशी तिथि में मसूर की दाल खाना वर्जित है।
द्वादशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
तिल द्वादशी / भीष्म द्वादशी / गोविंद द्वादशी
माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी या तिल द्वादशी कहते हैं। इस तिथि पर भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इस तिथि पर पूर्वजों का तर्पण करने का विधान है। इस दिन तिल से भगवान विष्णु की पूजा किया जाती है।
गोवत्स द्वादशी
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर गाय और बछड़ो की पूजा की जाती है। इस तिथि पर संतान की उन्नति, सुरक्षा और सुख-शांति के लिए माताएं व्रत रखती हैं।
वामन द्वादशी
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामनदेव धरती पर अवतरित हुए थे। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन और ब्राह्मणों को दान करने का विधान है।
अखण्ड द्वादशी
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अखण्ड द्वादशी कहा जाता है। इस तिथि पर श्रीहरि की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
पद्मनाभ द्वादशी
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पद्मनाभ द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के अनंत पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से धन-धान्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रुक्मिणी द्वादशी
वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रूक्मिणी द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने रूक्मिणी का हरण करके विवाह किया था। इस दिन रूक्मिणी देवी का पूजन किया जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से अविवाहति कन्याओं को श्रीकृष्ण जैसे पति यानि योग्य वर की प्राप्ति जल्द हो जाती है।