जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व संदिग्ध व्रत पर्व शंका समाधान…….
कृष्ण जन्मोत्सव पर्व इस वर्ष 11 एवं 12 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष में जन्माष्टमी पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु इस दिन मथुरा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जात है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु कृष्ण रुप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं. श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाते हैं तथा वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते हैं।
अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है।
स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो ‘जयंती’ नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नामवाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है। अन्त्य की दोनों में परा ही लें।
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।
व्रजमण्डलमें श्रीकृष्णाष्टमी के दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासीउसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनि बजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।
संदिग्ध व्रत पर्व निर्णय
गत वर्षो की भाँति इस वर्ष भी दो दिन अष्टमी व्याप्त होने से जन्माष्टमी व्रत एंव उत्सव के सम्बन्ध मे संशय बना हुआ है ओर इसी कारण हमारे पुराणो व धर्मग्रंथो मे कृष्ण जन्माष्टमी व्रत व उत्सव का निर्णय स्मार्त मत (गृहस्थ और सन्यासी) व वैष्णव मत (मथुरा वृन्दावन) साम्प्रदाय के लिए अलग अलग सिद्धांतो से किया है। गृहस्थ व उतरी भारत के लोग कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पूजा अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी रोहिणी नक्षत्र वृषभ लग्न मे करते है जबकि वैष्णव मत वाले लोग विशेष कर मथुरा वृन्दावन अन्य प्रदेशो मे उदयकालिन अष्टमी (नवमी युता) के दिन ही कृष्ण उत्सव मनाते आ रहे है। अर्द्धरात्रि को अष्टमी व रोहिणी नक्षत्र हो या न हो इस बात को महत्व नही देते है। जन्म स्थली मथुरा को आधार मानकर मनाई जाने वाले श्रीकृष्ण उत्सव के दिन ही सरकार छुट्टी की घोषणा करती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत तथा जन्मोत्सव दो अलग अलग स्थितिया है।
जन्माष्टमी निर्धारण के नियम
1 अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है।
2 अष्टमी केवल दूसरे ही दिन आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
3 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र का योग एक ही दिन हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी नक्षत्र से युक्त दिन में किया जाता है।
4 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को विद्यमान हो और दोनों ही दिन अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त रहे तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
5 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में दोनों दिन रोहिणी नक्षत्र का योग न हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
6 अगर दोनों दिन अष्टमी आधी रात को व्याप्त न करे तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन होगा।
विशेष: उपरोक्त मुहूर्त स्मार्त मत के अनुसार दिए गए हैं स्मार्त मत वाले प्रायः व्रत निर्णय उदयव्यापिनी तिथि को आधार मानकर ही करते है। वैष्णवों के मतानुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अगले दिन मनाई जाएगी। ध्यान रहे कि वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय मत को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं।
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार वैष्णव वे लोग हैं, जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय में बतलाए गए नियमों के अनुसार विधिवत दीक्षा ली है। ये लोग अधिकतर अपने गले में कण्ठी माला पहनते हैं और मस्तक पर विष्णुचरण का चिन्ह (टीका) लगाते हैं। इन वैष्णव लोगों के अलावा सभी लोगों को धर्मशास्त्र में स्मार्त कहा गया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि – वे सभी लोग, जिन्होंने विधिपूर्वक वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली है, स्मार्त कहलाते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी का मुहूर्त
जन्माष्टमी की तिथि: 11 अगस्त और 12 अगस्त।
अष्टमी तिथि प्रारम्भ = 11 अगस्त को प्रातः 09:06 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त = 12 अगस्त को 11:15 बजे
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 12 अगस्त की सुबह 03 बजकर 27 मिनट से होगा इसकारण इस वर्ष जन्माष्टमी पर्व पर रोहिणी नक्षत्र नही रहेगा।
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 13 अगस्त 2019 को सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक।
व्रत का पारण👉 जन्माष्टमी के पहले दिन यानी 11 अगस्त को व्रत रखने वालों को अष्टमी तिथि 12 अगस्त प्रातः 11 बजकर 20 मिनट पर खत्म होने पर किया जाना चाहिये।
निशिता (रात्रि) पूजा का समय 12:00 से 12:41 रहेगी इसमें मध्य रात्रि रात 12 बजकर 21 मिनट पर रहने के कारण इसी समय श्रीकृष्ण का जन्म मानना उत्तम रहेगा।
वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाई जाएगी तथा वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय 95:45 (सूर्योदय के बाद) होगा।
दही हाण्डी 12अगस्त को ही मनाई जाएगी।
नोट- शास्त्र विचार
शास्त्र अनुसार व्रत रखने वाले भक्त 11 तारीख मंगलवार के दिन निसंकोच होकर व्रत रख सकते है। क्योंकि कृष्ण जन्माष्टमी में श्रीकृष्ण के जन्म समय मे अष्टमी तिथि का होना अत्यंत आवश्यक है और यह 11 तारीख को ही उपलब्ध रहेगी 12 अगस्त के दिन नही।