प्रयागराज-लवकुश शर्मा
हिंदी साहित्य आपदा में सम्बल देता है- प्रो० आनंद वर्धन।
प्रयागराज-हिंदी साहित्य कठिन समय में राह दिखाता है प्रेरित करता है। नवाचार से रचनात्मकता आती है। रचनाएं सकारात्मकता की ओर ले जाती हैं। साहित्य निराशा नहीं आशा को जगाने वाला होना चाहिए। यह बातें नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार के समापन सत्र में बोलते हुए प्रोफेसर आनंद वर्धन शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कही।
उन्होंने अपनी कविता “कौन सी आंधी चली” के द्वारा कोविड-19 में धैर्य रखने की बात करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य आपदा में सम्बल देता है। क्रोशिया से बोलते हुए डॉ ज्योति शर्मा ने कहा कि अपनी भाषा बोलते हुए हमें असहजता नहीं गर्व होना चाहिए। अपनी भाषा का अभिव्यक्ति में हमारा सामर्थ्य होना चाहिए। हिंदी दबाव कि नहीं प्रभाव की भाषा है। प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भाषा एकता का सूत्र है। भारत एक अनेक बोलियों एवं भाषाओं वाला देश है। क्षेत्रीय बोलियां जहां महत्वपूर्ण है वही हिंदी सबको साथ लेकर चलने वाली सार्वभौमिक भाषा है। मॉरिशस से डॉ० विनोद कुमार मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी अपनी वैश्विक धाक रखने में आगे है, यह मूल्यों को आत्मसात कर हमेशा तत्पर रहती है। भारतीय संस्कृति की संरचना में हिंदी का महत्वपूर्ण स्थान है। वांगडोंग विश्वविद्यालय चीन से डॉ० विवेक मणि त्रिपाठी ने बोलते हुए कहा कि चीन में भारतीय फिल्में एवं व्यापार हेतु हिंदी की आवश्यकता बढती जा रही है। बीएचयू के हिंदी विभाग की प्रोफेसर श्रद्धा सिंह ने आत्मनिर्भर एवं स्वराज की चर्चा करते हुए हिंदी भाषा के कर्मनिष्ठ मुंशी प्रेमचंद के भाषा प्रेम तथा आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना पर प्रकाश डाला। वेबिनार में स्वागत उद्बोधन कुलसचिव आर एल विश्वकर्मा ने किया। संचालन एवं संयोजन डॉ हिमांशु शेखर सिंह ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विष्णु शुक्ला ने किया। इस अवसर पर विभिन्न देशों से तीन सौ से अधिक प्रतिभागियों ने अॉनलाइन हिस्सा लिया।