जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से गोचर कुंडली फलादेश……..

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से गोचर कुंडली फलादेश……..



ज्योतिष में भचक्र की किसी राशि विशेष में ग्रह के जाने का नाम गोचर है। ‘गो’ का मतलब है ग्रह जो जाता है। ‘चर’ का मतलब है ‘गमन’ संचार इसलिए दिनानुदिन आकाश में जो ग्रह जाते हैं तब उस राशि में गोचरवश ग्रह हुआ, यह कहते है जन्म-चक्र स्थिर है। इसमें ग्रहों की स्थिति जन्मकाल में है, परन्तु ग्रह स्थिर नहीं है, चलते रहते हैं। इसलिए जब जहाँ जाते हैं वहां पर उनकी स्थिति कही जाती है।

भचक्र में ये चलते रहते हैं और चक्र को पूरा करने पर फिर उसी मार्ग में दुबारा जाते हैं। इसलिए जब हम गोचर विचार कहते हैं तो जन्मकालिक ग्रह की स्थिति और ग्रह कहाँ जा रहे हैं, दोनों का ही विचार करते हैं। गोचर कुंडली फलादेश करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए –

१.👉 ग्रह जब जन्म राशि से अथवा लग्न से बारहवें स्थान में जाते हैं तो अत्यधिक व्यय करते हैं, विशेष तौर पर उस समय जब दो या तीन ग्रह बारहवें स्थान में जाते हों क्रूर ग्रह अधिक व्यय करते हैं। शुभ ग्रह अच्छे कार्यों में जैसे की विवाह, धर्म इत्यादि में व्यय करते है।

२.👉 सूर्य, बुद्ध और शुक्र बारह राशियों का भ्रमण एक वर्ष में पूरा कर लेते हैं। ये ग्रह प्रायः एक राशि में एक मास तक रहते हैं। यदि जन्म के समय कोई ग्रह राशि में बलवान हो (अपने उच्च, मित्र अथवा अपनी ही राशि में) और किसी शुभ स्थान में भी बैठा हो तो गोचर में यदि वह किन्हीं अशुभ भावों में जाएगा तो भी उसका अधिक बुरा फल नहीं होगा। यही फल उस समय भी समझना चाहिए जब ग्रह (जिसके गोचर का विचार किया जा रहा हो) अच्छे भाव का श्वामी हो या जन्म कुंडली में योगकारक हो।

३.👉 यदि कोई ग्रह राशि ओर भाव में भी बलवान हो तो जब गोचर में शुभ स्थानों से जाता है तो अत्यधिक शुभ फल देता है।

४.👉 यदि कोई ग्रह कमजोर हो (राशि और नवांश में नीच का हो या किसी शत्रु की राशि और नवांश में हो) और किसी क्रूर ग्रह के साथ बैठा हो या दृष्ट हो और उसपर किसी शुभ ग्रह की युति या दृष्टि न हो अथवा अशुभ स्थानों का श्वामी हो, अस्त हो तो गोचर में वह शुभ स्थानों में जाता हुआ भी विशेष शुभ फल नहीं देगा।

५.👉 गोचर में यदि किसी ग्रह का क्रूर ग्रहों से योग हो या उसपर क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़े, तो गोचर में जाते हुए ग्रह का अच्छा फल कम हो जाता है और बुरा फल बढ़ जाता है यदि कोई ग्रह गोचर में अस्त हो या अपनी नीच राशि या नीच नवांश में हो तो उसका भी इसी प्रकार फल होता है।

६.👉 गोचर में जब किसी ग्रह का किसी शुभ ग्रह से योग होता है अथवा उसपर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती है तो तो उस गोचर में जाते हुए ग्रह का अच्छा फल बढ़ जाता है और ख़राब फल कम हो जाता है।
उदाहरण के लिए मंगल यदि तीसरे स्थान में जा रहा हो और उसी समय शुक्र अथवा गुरु भी वहां जाएँ तो मंगल के शुभ फल को बढ़ाएंगे। इसके अलावा यदि मंगल नवम स्थान से जा रहा हो और उसपर गुरु की द्रष्टि पड़े तो मंगल का अशुभ फल कम हो जायेगा।

७👉 जब कोई ग्रह अपनी उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि या अपने नवांश या उच्च नवांश में से जाता है तो उसका अच्छा फल बढ़ता है और ख़राब फल कम हो जाता है।
उदाहरण के लिए शनि के साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) ख़राब मानी गई है, परन्तु कन्या राशि वाले के लिए अंतिम ढाई वर्षों में शनि तुला में आयेगा| तुला राशि शनि का उच्च स्थान है इसलिए वहां पर शनि अधिक पीड़ा नहीं देगा।

८.👉 शुभ ग्रह गोचर में जब वक्री होते हैं तो अधिक शुभ फल देते हैं। क्रूर ग्रहों के वक्री होने पर अत्यधिक अशुभ फल होता है।

९.👉 सबसे अधिक शुभ अथवा अशुभ प्रभाव उस समय होता है जिस समय दो या अधिक ग्रह गोचर में वक्री हो जाएँ।

१०👉 क्रूर ग्रह अशुभ स्थानों में जाते हुए ज्यादा बुरा फल देंगे यदि जिस राशी में वे जा रहे है उस राशि में जन्म के समय कोई ग्रह बैठा हो तो भी अच्छा फल देते हैं।
उदहारण के लिए गुरु चौथे स्थान में जा रहा हो जहाँ सूर्य भी जन्म के समय है तो जिस समय गुरु सूर्य पर से जायेगा तो सूर्य अच्छा फल देगा जैसे उच्च स्थान, नए मित्र, नया कार्य, पिता का या स्वयं का धन इत्यादि।

१२.👉 यदि जन्म के समय किसी भाव पर शुभ ग्रहों की द्रष्टि हो तो गोचर में क्रूर ग्रह भी उस भाव में जाते हुए बहुत बुरा फल नहीं देंगे।

१३.👉 जन्म के समय लग्न में बैठा हुआ ग्रह गोचर में जिस भाव में जायेगा उस भाव का फल देगा।

१४.👉 जो अच्छा या बुरा फल ग्रह जन्म-कुंडली में बताता है वह फल उस समय होगा जब ग्रह लग्न में ले जा रहा हो।

१५.👉 गोचर विचार में सूर्य और मंगल प्रथम १० अंश के भीतर, गुरु और शुक्र १० से २० अंश के भीतर तथा बुध सम्पूर्ण राशि में अपना फल देते हैं।

१६.👉 यह गोचर में किसी प्रकार का अच्छा या बुरा फल देगा यह इस बात पर निर्भर करता है की वह ग्रह जन्म-कुंडली में-
(अ) किन भावों का स्वामी है ?
(ब) किस स्थान में बैठा हुआ है ?
(स) किस वस्तु का कारक है ?
(द) गोचर में किस भाव में जा रहा है ?
यहाँ भाव का विचार जन्म राशि से, जन्म लग्न से तथा ग्रह के मूल स्थान से करना चाहिए।

भ्रमण काल :-
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सूर्य, शुक्र, बुध का भ्रमण काल 1 माह होता है।

चंद्र का भ्रमण काल सवा दो दिन होता है।

मंगल का भ्रमण काल ५७दिन होता है।

गुरु का भ्रमण काल 1 वर्ष होता है।

राहु-केतु का भ्रमण काल डेढ़ वर्ष होता है।

शनि का भ्रमण काल ढाई वर्ष होता है।

१. सूर्य
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सूर्य जन्मकालीन राशि से ३, ६, १० और ११वें भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

२. चंद्र
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चंद्र जन्मकालीन राशि से १, ३, ६, ७, १० व ११ भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

३. मंगल
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मंगल जन्मकालीन राशि से ३, ६, ११ भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

४. बुध
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बुध जन्मकालीन राशि से २, ४, ६, ८, १० और ११वें भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

५. गुरु
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गुरु जन्मकालीन राशि से २, ५, ७, ९ और ११ वें भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

६. शुक्र
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शुक्र जन्मकालीन राशि से १, २, ३, ४, ५, ८, ९, ११ और १२वें भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

७. शनि
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शनि जन्मकालीन राशि से ३,६,११ भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

८. राहु
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राहु जन्मकालीन राशि से ३,६,११, भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

९. केतु
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केतु जन्मकालीन राशि से १, २, ३, ४, ५, ७, ९, और ११ वें भाव में शुभ फल देता है। बाकी भावों में अशुभ फल देता है।

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