जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से स्नान एक पवित्र सनातनी परम्परा!!

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से स्नान एक पवित्र सनातनी परम्परा!!



स्नान किये विना जो पुण्यकर्म किया जाता है वह निष्फल होता है।उसे राक्षस ग्रहण करते है।।

दुःस्वप्न देखने,हजामत बनवाने (क्षोरकर्म) वमन (उल्टी) होने स्त्री संग करने और श्मशान भूमि में जाने पर वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए।

तेल लगाने के बाद ,श्मशान से लौटने पर, स्त्रीसंग करने पर ,क्षोरकर्म करने के बाद जब तक मनुष्य स्नान नही करता ,तब तक बह चांडाल बना रहता है।।:

यदि नदी हो तो जिस ओर से उसकी धारा आती हो उसी ओर मुंह करके तथा दूसरे जलाशय में सूर्य की ओर मुंह करके स्नान करना चाहिए।
कुएं से निकाले हुए जल की अपेक्षा झरने का जल पवित्र होता है।उससे पवित्र सरोवर का,उससे भी पवित्र नदी नद का जल बताया गया है।तीर्थ का जल उससे भी पवित्र होता है ओर गङ्गा का जल तो सबसे पवित्र माना गया है।

भोजन के बाद,रोगी रहने पर,महानिशा(रात्रि के मध्य दो पहर)में बहुत वस्त्र पहने हुए और अज्ञात जलाशय में स्नान नही करना चाहिए।।

रात्रि के समय स्नान नही करना चाहिए, सन्ध्या के समय भी स्नान नही करना चाहिए।परन्तु सूर्यग्रहण अथवा चंद्रग्रहण के समय रात्रि में भी स्नान कर सकते है।

नोट👉 सूर्योदय के पूर्व एवम सूर्यास्त के बाद का प्रहर रात्रि की गणना में नही आते।

पुत्र जन्म ,सूर्य की संक्रांति,स्वजन की मृत्यु, ग्रहण तथा जन्म नक्षत्र में चंद्रमा रहने पर रात्रि में भी स्नान किया जा सकता है।।

बिना शरीर की थकावट दूर किये और बिना मुंह धोए स्नान नही करना चाहिए।

सूर्य की धूप से संतप्त व्यक्ति यदि तुरन्त (विना विश्राम किये)स्नान करता है तो उसकि दृष्टि मन्द पड़ जाती है और सिर में पीड़ा होती है।

कांसे के पात्र से निकाला हुआ जल कुत्ते के मूत्र के समान अशुद्ध होने के कारण स्नान एवम देवपूजा के योग्य नही होता। उसकी शुद्धि पुनः स्नान करने से होती है।।

नग्न होकर कभी स्नान नही करना चाहिए।

पुरुष को नित्य सिर के ऊपर से स्नान करना चाहिए।सिर को छोड़कर स्नान नही करना चाहिये।सिर के ऊपर से स्नान करके ही देवकार्य और पितृकार्य करने चाहिए।

विना स्नान किये कभी चन्दन नही लगाना चाहिए।
जो दोनो पक्षो की एकादशी को आंवले से स्नान करता है -उसके बहुत से रोग एवम पाप नष्ट हो जाते है।और वह देवलोक में सम्मानित होता है।।

स्नान के वाद अपने अंगों में तेल की मालिस नही करनी चाहिए।समूह में गीले वस्त्रों को झटकारना नही चाहिए।

विना स्नान किये चन्दन आदि नही लगाना चाहिए।

स्नान के वाद वस्त्र को चौगुना करके निचोड़ना चाहिए, तिगुना करके नही। घर मे वस्त्र निचिड़ते समय उसके छोर को नीचे करके निचोड़े ,ओर जलाशय आदि में स्नान किया हो तो ऊपर की ओर छोर करके भूमि पर निचोड़े।

निचोडें हुए वस्त्र को कंधे पर न रखे।

स्नान के बाद शरीर को हाथ से नही पोंछना चाहिए ।

स्नान के वाद अपने गीले वालो को फटकारना (झाड़ना) नही चाहिए।

(बाल से गिरा हुआ जल अशुद्ध होता है।यदि बाल झाड़ना आवश्यक लग रहा हो तो इसका ध्यान रखना चाहिए कि बाल के छीटे किसी व्यक्ति या वस्तु पर न पड़े)

स्नान के समय पहने हुए भीगे वस्त्रों से शरीर को नही पोंछना चाहिए।

ऐसा करने से शरीर कुत्ते से चाटे हुए के समान अशुद्ध हो जाता है,जो पुनः स्नान से ही शुद्ध होता है।

उपरोक्त सभी शास्त्रोक्त नियम है।
स्नान विधि एक क्रम।
प्रश्न नही स्वाध्याय करें-!
धूर्तो के लिए कोई नियम नही होता!!

🖊️🖊️🖊️ संकलित

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