घर घर सरकार की बैंकिंग व्यवस्था नही मिलने से बैंकों में पैसों के लिए लग रही लाईन , खाते में पैसा नदारत।

समर जायसवाल-

दुद्धी / सोनभद्र।शासन प्रशासन के तमाम निर्देशों के बाद भी बैंक कर्मचारी खाता धारकों को परेशान करने से बाज नही आ रहे हैं।जिससे दुद्धी, अमवार के नाम कस्बे में स्थित बैंकों से खाता धारकों की नाराजगी बढ़ती जा रही हैं।बैंक कभी केवाईसी के लिए तो कभी पैन कार्ड के लिए ग्राहकों बार बार परेशान कर रहे हैं।दुद्धी तथा अमवार सहित अन्य बैंकों में प्रतिदिन सैकड़ों मजदूर अपने खाते में आए मजदूरी चेक कराने के लिए बैंक में पहुँचते है लेकिन बैंक कर्मचारियों द्वारा उनका बैलेंस चेक नही किया जाता हैं और सीधे विड्रॉल भरकर लाइन लगने की सलाह दी जाती हैं जबकि मजदूर को यह पता नहीं होता कि मेरे खाते में कितने पैसे है ऐसे स्थिति में मजदूर अंदाज बस राशि भरकर बैंक की लाइन में खड़ा हो जाता है लेकिन उसे निराश हाथ तब लगती हैं जब एक-दो घण्टे खड़े होने के बाद उसका नम्बर आता है तो कैशियर उसे यह कहते हुए भगा देता है कि तुम्हारे खाते में तो बैलेंस कम है और तुमने विड्रॉल में अधिक रुपये भरें है या तो यह कह दिया जाता हैं कि केवाईसी नही होने के कारण तुम्हारा खाता बन्द है।ऐसी स्थिति में 25-30 किलोमीटर दूर झारखंड व छतीसगढ़ के बॉर्डर गांव बरखोहरा ,बैरखड़ तथा कुदरी आदि गांवों से बैंक पहुचा मजदूर निराश होकर बैंक व्यवस्था को कोसते हुए दुखी मन से अपने घर की रवाना होता है जबकि मजदूर को एक दिन की मजदूरी तथा आने -जाने का किराया जो नुकशान हुआ वह अलग गया और उसे मानसिक तनाव अलग से मिलती हैं जिससे वह बैंक व्यवस्था को कोसता रहता है।बैरखड़ के मनरेगा मजदूर नागवंती ,कलावती,जमुना,रमावती तथा बरखोहरा के लीलावती, कलावती,सुनीता ,अनिता तथा कुदरी के कौलेश्वर, प्रेमचंद, प्रभा,पनपाती सहित अन्य मनरेगा खाताधारकों ने कहा कि बैंक वाले जानबूझकर जमलोगों के परेशान करते हैं।एक तो बैलेंस चेक करके नही बताते हैं और उल्टे लाइन में लगने के बाद बैलेंस विड्राल में भरे राशि से कम होने पर डांट कर भगा देते हैं।यदि बैंकों की व्यवस्था इसी तरह चलती रही तो लोग मनरेगा में मजदूरी करना भी छोड़ सकते हैं क्योंकि मनरेगा मजदूरी लगभग दो सौ रुपये प्रतिदिन मिलती हैं और पैसा निकालना कितना कठिन है यह मनरेगा मजदूर से बेहतर कोई नहीं जानता होगा ।मनरेगा में एक तो मजदूरी कम और उल्टे बैंकों का झंझट जबकि दुद्धी कस्बे या आसपास के गांवों मजदूरी करने से मजदूर को प्रतिदिन शाम को बिना झंझट के 300-350 रुपये मिल जाते हैं और मजदूर शाम को खुशी खुशी घर पहुँच जाता है।लेकिन मनरेगा में काम करने के बाद बैंक से मजदूरी निकालना मजदूरों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।मनरेगा मजदूर खाताधारकों ने इस समस्या की ओर जिला अधिकारी का ध्यान आकृष्ट कराया है।

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