सोनभद्र।हिंद और हिंदू के संवाहक है स्वयंसेवक
संगठन बनता है और समाप्त हो जाता है लेकिन आद्य सरसंघ चालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी ने जिस संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में विजयादशमी के दिन किया वह संगठन चिरगामी हो गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसको समझने के लिए तंत्र और उसके मंत्र को जानना होगा,संघ में व्यक्तिगत पद और प्रतिष्ठा की कोई लालसा नहीं होती आज भी संघ में वही बात दिखती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि भगवा ध्वज को गुरु मानता है।महापुरुष डॉक्टर हेडगेवार जी जिन्हें हिंदू राष्ट्र का मसीहा और लोकमान्य तिलक की संज्ञा दी जाती है,ऐसे महापुरुष जिन्होंने राष्ट्र सेवा के लिए अपने परिवार वह उज्जवल भविष्य का त्याग किया जिनके अंदर दुर्लभ संगठन कौशल था जिन्होंने कहा स्वदेशी कपड़े स्वदेशी वस्तुएं स्वदेशी टोपी जो सर पर रहती थी उस टोपी के नीचे के मस्तिष्क में स्वदेशी विचार होना आवश्यक है। संघ को रावलपिंडी से मद्रास,कराची से कोलकाता तक फैलाने का श्रेय आज सरसंघ चालक जी को है। डॉक्टर हेडगेवार जी ने संघ की शाखा को जुड़ने का एक बड़ा माध्यम माना और और परिवार को जोड़ने की बात कही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जातिवाद को नहीं मानता यहां किसी के नाम के आगे जाति नहीं बल्कि जी का प्रयोग होता है। जिस धुंधली पड़ी एकता के कारण हम परतंत्र हुए थे उस दर्पण को साफ करने का कार्य किया सरसंघ चालक जी ने। डॉक्टर साहब ने कहा आप सभी संघ की शाखा में आओ अपना व्यक्तित्व निखार हो और अपनी इच्छा से अपना जीवन राष्ट्र निर्माण में लगा दो। बच्चों को लेकर शाखा शुरू करने वाले डॉक्टर साहब के व्यक्तित्व के अंदर धैर्य और दूरदर्शिता थी, अहंकार तो था ही नहीं और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति कोई जल्दबाजी नहीं थी। डॉक्टर साहब का कहना था हिंदू जब तक अंधविश्वासी, पुरानी रूढ़िवादी सोच धार्मिक आडंबर नहीं छोड़ेगा तब तक हिंदू जातिवाद छुआछूत शहरी वनवासी और क्षेत्रवाद में बंटा रहेगा।जब तक हिंदू संगठित नहीं होगा वह अपना स्थान कहीं नहीं ले सकता।उनका मानना था राष्ट्र कोई जमीन का टुकड़ा नहीं बल्कि एक विचार, एक सभ्यता एक परंपरा है जो पुरातन काल से रहते चली आ रही हैं, उन्हीं लोगों की संस्कृति से राष्ट्र का निर्माण होता है कोई कहीं रहे लेकिन वह संस्कृति को आत्मसात करें तो ही राष्ट्रवादी होगा।राष्ट्र के प्रति अटूट प्रेम और हिंदू समाज को संगठित करने के लिए संघ की शाखा से स्वयंसेवक का निर्माण करना वह स्वयं सेवक समाज में कहीं रहेगा दीपक की तरह उजाला करते हुए राष्ट्र को हमेशा मजबूत रखेगा।आज विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा चर्चा में रहता है जहां जब पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जैसे लोग पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जैसे लोग अगर संघ मुख्यालय पहुंचते थे तो पूरे विश्व में चर्चा होती थी। संघ का काम सेवा के माध्यम से समाज को संगठित करना और जहाँ जरूरत हो राष्ट्र को वहाँ अपने अटूट विश्वास को प्रदर्शित करना जैसा कि 1962 के युद्ध में स्वयं सेवकों की भूमिका,बांग्लादेश के बंटवारे में… सरकार किसी की हो लेकिन वीर सैनिकों के लिए 1971 में हजारों स्वयंसेवकों ने अपने खून दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा सामाजिक संगठन तैयार करने के पीछे हिंद और हिंदू को सुरक्षित रखना था। डॉक्टर साहब के विचारों को आत्मसात करके राष्ट्र सेवा का संकल्प लेकर स्वयंसेवक जब निकलता है तो उसके द्वारा हिंदू समाज और हिंदुस्तान के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देता है।डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी ने
संघ यानि हिन्दुओं की संगठित शक्ति ‘हिन्दू राष्ट्र’ को संघ का आधारभूत सिद्धांत बनाया।
शाखा मतलब एक जगह पर सब कार्यकर्ता एकत्रित होंगे और खेल खेलकर ,देशभक्ति के गीत गाकर, चर्चा करके अपना शारीरिक और बौद्धिक विकास करेंगे।इसमें सबसे विशेष यह था की शाखा की गतिवधियां इस प्रकार से नियोजित की गईं जिसमें हर आयु के लोग सम्मलित हो सकें।
डॉ साहब ने अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों को कभी महत्व नहीं दिया, समाज और संगठन के लिए समर्पित हो गए।
उनका व्यक्तिगत समर्पण देख कर संघ से जुड़ने वाले युवाओं को प्रेरणा मिली और एक बड़ी संख्या में युवाओं ने अपना पूरा जीवन राष्ट्र और संघ के नाम करने का सोचा
कार्यकर्ताओ की संख्या बढ़ी और कार्य भी, इसका एक सबसे बड़ा कारण रहा कि संघ समाज पोषित संगठन बना न कि सरकार पोषित। जिसका सबसे बड़ा उदहारण हमें केरल में दिखता है जहां आज तक संघ के राजनैतिक पक्ष भाजपा की सरकार नहीं बनी है लेकिन कार्यकर्ता और कार्य में केरल कभी पीछे नहीं रहा।
उनकी मृत्यु 21 जून, 1940 को नागपुर में हुई! वो आज भी लाखों करोड़ों संघ स्वयंसेवक के लिए ‘डॉक्टर जी और डॉक्टर साह हैं।