जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ऐसे है यमलोक के यमराज

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ऐसे है यमलोक के यमराज



विधाता लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। मृत्य का समय ही नहीं, स्थान भी निश्चित है। दस दिशाओं में से एक दक्षिण दिशा में यमराजजी बैठे हैं। यमराजजी कौन है जानिए इस संबंध में उनके जीवन का संपूर्ण रहस्य।

सूर्यदेव के पुत्र यमराज के दादा का नाम ऋषि कश्यप और दादी का नाम अदिति था। सूर्यदेव की दो पत्नियां थीं। एक संज्ञा और दूसरी छाया। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से वैवस्वत मनु, यम, यमी, अश्विनीकुमारद्वय और रेवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि और सावर्णि मनु हुए।

वैवस्वत मनु इस मन्वन्तर के अधिपति हैं। यमराज जीवों के शुभाशुभ कर्मों का फल देते हैं। यमी यमुना नदी की संवरक्षक हैं। अश्विनीकुमारद्वय देवताओं के वैद्य हैं। रेवन्त अपने पिता की सेवा में रहते हैं। शनि को ग्रहों में प्रतिष्ठित कर दिया हैं। तपती का विवाह सोमवंशी राजा संवरण से कर दिया। विष्टि भद्रा नामके नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई और सावर्णि मनु आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे।

यमराज की पत्नी का नाम दे‌वी धुमोरना है। कतिला यमराज व धुमोरना का पुत्र है। यमराज के मुंशी चित्रगुप्त हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही ‘अग्रसन्धानी’ में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है।

यम को वेदों में पितरों का अधिपति माना गया है। उपनिषद में नचिकेता की एक कहानी में यमराज का उल्लेख है। यम के लिए पितृपति, कृतांत, शमन, काल, दंडधर, श्राद्धदेव, धर्म, जीवितेश, महिषध्वज, महिषवाहन, शीर्णपाद, हरि और कर्मकर विशेषणों का प्रयोग होता है। पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है।

पितरों के अधिपति यमराज की नगरी को ‘यमपुरी’ और राजमहल को ‘कालीत्री’ कहते हैं। यमराज के सिंहासन का नाम ‘विचार-भू’ है। महाण्ड और कालपुरुष इनके शरीर रक्षक और यमदूत इनके अनुचर हैं। वैध्यत यमराज का द्वारपाल है। चार आंखें तथा चौड़े नथुने वाले दो प्रचण्ड कुत्ते यम द्वार के संरक्षक हैं।

पुराणों अनुसार यमलोक को मृत्युलोक के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन दूरी पर माना गया है। एक योजन में करीब 4 किमी होते हैं। एक लाख योजन में फैली यमपुरी या यमलोक का उल्लेख गरूड़ पुराण और कठोपनिषद में मिलता है। यमराज के लोक को यमलोक, संयमनीपुरी के अलावा पितृलोक भी कहते हैं। पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है।

स्मृति एवं ग्रंथों के अनुसार अब तक 14 यम हो गए हैं- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दध्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त।

‘धर्मशास्त्र संग्रह’ के अनुसार 14 यमों को उनके नाम से 3-3 अंजलि जल तर्पण में देते हैं। ‘स्कन्दपुराण’ में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को घी जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है।

अंत में जानिए यमराज की मृत्यु👉 शिवभक्त श्वेतमुनि की मृत्यु का समय आया तो यमराज ने मृत्युपाश को भेजा। लेकिन मुनि के यहां भैरव बाबा पहरा दे रहे थे। बाबा ने मृत्युपाश पर प्रहार करके उसे मूर्छित कर दिया। यह देख कर यमराज कुपित हो गए और उन्होंने भैरव बाबा को प्रत्युपाश में बांध लिया।

यह देखकर श्वेतमुनि ने अपने ईष्टदेव शिव को पुकारा। शिव ने कार्तिकेय को भेजा। कार्तिकेय ने यमराज से युद्ध कर उन्हें मृत्यु दंड दिया। जब सूर्यदेव को संपूर्ण घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने शिवजी से विनती की। तब शिवजी ने यमराज को फिर से जीवित कर दिया।

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