जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष चर्चा) कुम्भ राशि एवं लग्न सम्पूर्ण विवरण

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष चर्चा) कुम्भ राशि एवं लग्न सम्पूर्ण विवरण



नामाक्षर (गु, गे, गो, स, सी, सू, से, सो, द) यदि आपके पास अपने जन्म की तारीख वार समय मास आदि का विवरण नही है तो उपरोक्त नामाक्षर से अपनी राशि चयन कर सकते है।

कुम्भ लग्ने नरो जातः स्थिरः चित्तो तिसौहृद:।
परदाररतो नित्यं मृदुकायो महासुखी।।
प्रच्छन्न पापो घटतुल्यदेहो विघातदक्षो ध्वसहोल्पवित्तो।
उपहृतबन्धु: क्ष्यवृद्दियुक्तो घटोद्भव-स्यातप्रिय गन्ध पुष्प:।

अर्थात कुंभ लग्न में उत्पन्न जातक स्थिर बुद्धि मैत्री संबंध बनाने में कुशल, विशेषकर स्त्रियों से संबंध करने में प्रवीण, कामुक कोमल एवं सुंदर शरीर तथा सुखी होता है। ऐसा जातक कभी गुप्त रूप से कार्य करने में कुशल, अधिकाधिक धन प्राप्ति का इच्छुक, अत्यंत परिश्रमी, दूसरों को चोट आघात पहुंचाने में दक्ष होता है। उनका शरीर भी घड़े के आकार का होता है। आत्मीय भाई-बंधुओं के सुख में कमी, आर्थिक क्षेत्र में अस्थिरता अर्थात उतार-चढ़ाव अधिक रहते हैं।

कुंभ राशि राशि चक्र की 11वी राशि है। मेष संपत से इसका विस्तार क्षेत्र 300 अंश से 330 अंश देशांतर तक माना जाता है। इस राशि का स्वामी ग्रह शनि है। कुंभ राशि का प्रतीक कंधे पर कलश धारण किए हुए पुरुष है। यह स्थिर संज्ञक, वायु तत्त्व प्रधान, पुरुष राशि मानी जाती है। इस राशि के अंतर्गत धनिष्ठा के अंतिम दो चरण शतभिषा के चारों चरण तथा पूर्वाभाद्रपद के प्रथम तीन चरण आते हैं। ऊपर लिखे नक्षत्र चरण एवं नक्षत्र अक्षरों के आधार पर ही बच्चे का नाम रखने की परंपरा है। जन्म राशि अथवा लग्न राशि के अतिरिक्त जातक के व्यक्तित्व पर प्रसिद्ध नाम राशि तथा जन्म नक्षत्र का भी विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि प्रत्येक नक्षत्र का स्वामी ग्रह अलग अलग होता है। जन्म नक्षत्र के संबंध में इतना अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि किसी जातक के जन्म समय चंद्रमा जिस नक्षत्र चरण में होगा उसी के आधार पर मनुष्य को ग्रह दशा का प्रारंभ होगा तथा गोचर वर्ष भी जब कोई ग्रह नक्षत्र पर से संचार करता है। वह अपने गुणों स्वभाव अनुसार शुभ अशुभ फल प्रदान करता है।

कुंभ लग्न राशि के अंतर्गत आने वाले नक्षत्रों में धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी मंगल, शतभिषा का राहु तथा पूर्वाभाद्रपद का स्वामी ग्रह गुरु होता है। काल पुरुष में कुंभ राशि का संबंध दोनों पिंडलियों तथा जोड़ों नसों, श्वास एवं रक्त संचालन की प्रक्रिया से भी होता है।

शनि की यह मूल त्रिकोण राशि है। इसमें कोई ग्रह ना तो उच्च का होता है और ना ही नीच का होता है नैसर्गिक ग्रह मैत्री चक्र अनुसार कुंभ राशि शुक्र ग्रह के लिए मित्र राशि तथा चंद्र, मंगल, बुध और गुरु के लिए सम राशि तथा सूर्य के लिए शत्रु राशि मानी जाती है। यह राशि लग्न में बनी होती है। निरयन सूर्य प्रतिवर्ष कुंभ राशि पर लगभग 13 फरवरी से 13 मार्च के मध्य संचार करता है। जबकि सायन पाश्चात्य मतानुसार सूर्य प्रतिवर्ष प्राय: 20 जनवरी से 18 फरवरी के मध्य संचारित होता है। पाश्चात्य मतानुसार राशियों का अध्ययन पद्धति के अनुसार ही किया जाता है। चैत्र मास में यह राशि दग्ध (शून्य) अर्थात शक्तिहीन मानी जाती है।

कुंभ राशि के अन्य पर्यायवाची नाम

घट, तोपधर, पयोधर कुट, चित्तामय, कुंभधर, घटधर, कलश, घट रूप इत्यादि। उर्दू में दिलों तथा अंग्रेजी भाषा में लोग इसको एक्वेरियस (Aquarius) नाम से बुलाते हैं।

कुंभ राशि द्वादश राशियों में सर्वाधिक मानवीय गुणों से भरपूर तथा अपने उद्देश्य के प्रति ईमानदार और प्रतिबद्ध राशि है। यह स्थिर राशि, पुरुष संज्ञक, वायु तत्वप्रधान, दिवस बली, कृष्ण वरणा, तमोगुणी, विषम, त्रिदोष एवं उष्ण प्रकृति, शीर्ष उदयी, उष्ण एवं स्निग्ध प्रकृति, पश्चिम दिशा की स्वामिनी होती है। इस राशि के जातक धर्म प्रिय, अनुसंधानात्मक एवं नए नए विषयों के संबंध में जानने की विशेष प्रवृत्ति होती है। इस राशि का स्वामी ग्रह शनि प्रिय वार भी शनि तथा प्रिय रत्न नीलम है। इस राशि का प्रथम नवमांश तुला से प्रारंभ होता है तथा अंतिम नवमांश मिथुन का है।

संबंधित वस्तुएं👉 भूमि-जल, भूमि से उत्पन्न होने वाले शंख, जवाहरात, नीलम, पुष्प, सीपी, कोयला, लोहा, लोहापुर्जे, पेट्रोल व पेट्रोलियम पदार्थ, खनिज पदार्थ, बिजली से संबंधित कल पुर्जे, तिल, तैल, उड़द, पत्थर, ऊनी वस्त्र, रबड़, चमड़ा उद्योग, केमिकल, बिल्डिंग मैटेरियल इत्यादि। इसके अतिरिक्त समाज एवं राष्ट्रीय विकास में उन्नति के कार्यक्रमों, वायुयान से विदेशी यात्राओं का भी विचार कुंभ राशि से किया जाता है।

व्यवसाय विवाहादि विचार

उपयुक्त व्यवसाय

कुंभ लग्न के जातकों पर शनि व गुरु दोनों बृहद ग्रहों का प्रभाव होने से सूक्ष्म एवं दूरदर्शी एवं व्यापक दृष्टिकोण रखते हुए ऐसे जातक व्यवसाय के संबंध में भी दूरगामी योजनाएं बनाने में कुशल होते हैं। कुंभ जातकों के लिए निम्नलिखित व्यवसाय विशेष उपयुक्त एवं लाभप्रद पाए गए हैं।

प्राध्यापन, प्रोफेसर, न्यायालय (वकील, जज) आदि गुप्तचर सेवा, वैज्ञानिक, पुरातत्व, राजनीति, नेता, दार्शनिक, अभिनेता, इंजीनियर, जौहरी, पत्थर, लोहा, लकड़ी, तांबा, रबड़ आदि धातुओं से संबंधित व्यवसाय। भूमि का क्रय-विक्रय, सेना, पुलिस, लेखन, प्रकाशन, प्रिंटिंग-प्रेस, पेट्रोलियम पदार्थ, ठेकेदारी, खेल, बिल्डिंग मेटेरियल, कोयला, भट्टे, कृषि संबंधी कार्य, चिकित्सा एवं दवाई विक्रेता, कंप्यूटर, व्यापारी, वास्तु कला, ज्योतिषी, फोटोग्राफी, संगीत-गायन, बिजली, किराना व्यापारी, ड्राइविंग, डेयरी फार्म, शिक्षा संस्थान, रिसर्च एवं अनुसंधान के कार्य, उच्च पद प्राप्त पदाधिकारी, वाहन चालक एवं विक्रेता, दंत चिकित्सक, बेकरी, मिठाई विक्रेता, शेयर मार्केट से संबंधित कार्य, धर्माचार्य, समाजसेवक, सुधारक, सेल्समैन, डिजाइनिंग, वस्त्र उद्योग इत्यादि लघु विस्तृत उद्योग, कमीशन एजेंट, आढ़ती, मशीनरी, स्पेयर पार्ट्स, सीमेंट, उद्योग, तेल, तिल आदि पंसारी व मनिहारी के कार्य, मदिरा से संबंधित कार्य क्षेत्रों में लाभान्वित होने की संभावनाएं होती हैं।

भाग्योन्नति कारक वर्ष👉 28, 33, 36, 38, 42 एवं 48 होते है।

स्वास्थ्य एवं रोग

कुंभ लग्न के जातक की जन्म कुंडली में यदि शनि, गुरु, मंगल ग्रह शुभ हो नवमांश कुंडली में भी यह ग्रह बली हो एवं लग्न पर स्वग्रही या मित्र ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक का स्वास्थ्य उत्तम अथवा ठीक रहता है। तथा जातक आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी होता है। इस संबंध में यदि कुंडली में शनि, गुरु, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु आदि ग्रह निर्बल एवं अशुभ स्थिति में हो तो जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। उसे वायु एवं कफ़ संबंधित रोग, स्नायु दुर्बलता, रक्तचाप, ह्रदय की कमजोरी, वात रोग (सन्निपात, लकवा) आदि, अधिक श्रम से मानसिक थकान, शीत प्रकोप, दांत, गले, टॉन्सिल, घुटनों एवं जोड़ों के दर्द, पिंडलियों में सूजन, रक्त की कमी या रक्त विकार, दाद, खाज, खुजली आदि चर्म रोग, नेत्र पीड़ा, गठिया, वातशूल, पथरी आदि रोगों का भय रहता है। यदि कुंडली में चंद्र, सूर्य, अशुभ हो तो जातक को उन्माद, अनिद्रा, नेत्र विकार, मस्तिष्क के विकार, मंदाग्नि, मेरुदंड में पीड़ा, शिर पीड़ा, कोष्ठबद्धता, उदर विकार आदि रोगों की संभावना होती है। कभी-कभी निराशा के कारण शराब, तंबाकू आदि व्यसनों का भी शिकार हो जाते हैं। शुक्र अशुभ हो तो पित्ताशय व मधुमेह आदि रोगों का भय होता है।

उपयोगी परामर्श👉 जातक को मदिरा आदि अत्यधिक मादक वस्तुओं का अथवा अत्यधिक ठंडी या गर्म वस्तुओं के सेवन से परहेज रखना चाहिए। संतुलित भोजन ग्रहण करना चाहिए। आशावादी, दृष्टिकोण के साथ नियमित व्यायाम एवं प्राणायाम अच्छे स्वास्थ्य एवं दीर्घायु जीवन के लिए लाभदायक होगा।

प्रेम सम्बन्ध एवं वैवाहिक सुख

कुंभ लग्न के जातक कल्पनाशील एवं रहस्यमय प्रकृति के होते हुए भी प्रेम संबंधों का सूत्रपात प्राय: मैत्री भाव से करते हैं। उनका प्रेम ह्रदय की सूक्ष्म एवं गहन अनुभूतियों से प्रेरित होता है। इनके प्रेम में प्रदर्शन एवं दिखावटी पर नहीं होता फिर भी अपनी पत्नी को हरसंभव सुख सुविधाएं प्रदान कराने में प्रयत्नशील रहते हैं। कुंभ लग्न के जातक अपनी प्रेमिका अथवा जीवन साथी का चयन बौद्धिक योग्यता को ध्यान में रखते हुए करते हैं। यद्यपि उन्हें विपरीत योनि के प्रति विशेष सौंदर्यानुभूति एवं आकर्षण होता है। परंतु वह ऐसा जीवनसाथी पसंद करते हैं जो इन्हें बाहरी प्रेम आकर्षण के साथ साथ बौद्ध क्षेत्र में भी साथ दे। कुंभ जातक प्रेम के संबंध में सुनिश्चित धारणाएं रखते हैं। कुंडली में यदि सप्तमेश सूर्य तथा शुक्र मित्र क्षेत्र एवं शुभ स्थिति में हो तो जातक अपने अनुकूल जीवनसाथी पाने में सफल रहते हैं। तथा उनका दांपत्य जीवन प्रायः सुखी होता है। यदि सप्तमेश सूर्य बली हो अथवा सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों का योग दृष्टि आदि का संबंध हो तथा शुक्र व गुरु की स्थिति भी ठीक ना हो तो जातक के वैवाहिक सुख में कमी रहती है। यदि कुंभ लग्न के जातक की कुंडली का पत्नी के साथ नक्षत्र एवं गुण मिलान ठीक से ना हुआ हो तो पति-पत्नी दोनों अपने पूर्वाग्रह विचारों से मुक्त नहीं हो पाते तथा दोनों में स्वाभिमानी प्रकृति एवं अहमभाव में टकराव के कारण दोनों का दांपत्य जीवन सुखी नहीं रह पाता। सप्तम भाव में सूर्य मंगल के योग से तथा कुछ अन्य अशुभ योगों के कारण जातक में विवाह के बाद संबंध विच्छेद अथवा अविवाहित रहने की प्रवृत्ति भी पाई गई है।

उपयुक्त जीवन साथी 👉 कुंभ लग्न के जातक को वृषभ, मिथुन, सिंह, तुला, धनु एवं मीन लग्न की जातिका के साथ मैत्री संबंध व्यवसाय अथवा वैवाहिक संबंध शुभ एवं लाभदायक हो सकते हैं।

सावधानी👉 कुंभ राशि वायु तत्व प्रधान एवं स्थिर राशि होने के कारण कुंभ लग्न के जातक कई बार पूर्वाग्रही विचारों से ग्रस्त होकर आवेश एवं अति भावुकतावश दूसरों को स्पष्ट एवं कटु वचन भी कह देते हैं। जिससे कई बार लाभ की अपेक्षा हानि हो जाती है। इन्हें अति आलोचनात्मक प्रवृत्ति से भी बचना चाहिए अपने सामर्थ्य से अधिक परिश्रम करने की अपेक्षा संयोजित एवं योजनाबद्ध तरीके से पुरुषार्थ करना आपके लिए लाभदायक रहेगा।

कुम्भ लग्न गुण-स्वभाव

शारीरिक गठन एवं व्यक्तित्व👉 कुंभ लग्न कुंडली में यदि लग्नेश शनि शुभ हो तो जातक लंबे एवं ऊंचे कद का, सुगठित एवं संतुलित शरीर, पुष्ट कंधे, कुछ बादामी आकृति लिए सुंदर एवं आकर्षक नेत्र, मासल एवं गोरा बदन, अंडाकार सुंदर तेजस्वी चेहरा, लग्न पर गुरु का भी प्रभाव हो तो भूरे बाल, हंसमुख मोहक मुस्कान लिए चेहरा, बाहें लंबी तथा आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी होगा। पिंडलियों या घुटनों पर तिल या चोट आदि का निशान होने की संभावना है। अधिक सूक्ष्म फलादेश के लिए जातक की चालित एवं नवांश कुंडली ग्रह दशा ग्रह गोचर आदि को भी ध्यान में रखना चाहिए।

चारित्रिक एवं स्वभावगत विशेषताएं

कुंभ लग्न में शनि स्वक्षेत्रीय या उच्च अवस्था में हो तो जातक अत्यंत बुद्धिमान एवं तीव्र स्मरण शक्ति, दीर्घायु, परिश्रमी, पराक्रमी, उच्चाभिलाषी, स्वतंत्र एवं स्वाभिमानी प्रकृति का होता है। कुंडली में शुक्र-गुरु भी शुभ भाव में स्थित हो तो जातक भरोसेवान, ईमानदार, स्वाबलंबी, अर्थात निजी पराक्रम एवं उद्यम से जीवन में लाभ उन्नति प्राप्त करने वाला। न्याय प्रिय, गंभीर, तर्क-वितर्क करने में कुशल, धैर्यवान, व्यवहार कुशल, दृढ़निश्चयी, विद्वान, बाकपटू, संगीत, गायन, अभिनय, कला आदि साहित्य में कुशल एवं विख्यात होता है। ऐसा जातक जिस कार्य को करने का संकल्प कर ले उसे पूरे मनोयोग एवं निश्चय से करेगा। कुंभ जातक में मानवीय गुणों की बहुलता होती है। वह विचारशील परंतु हंसमुख, चतुर एवं अपने उद्देश्य के प्रति सतर्क एवं सावधान, धन, भूमि, जायदाद, वाहन आदि संपदाओं से संपन्न। लोगों के मनोभावों को समझने में कुशल। संवेदनशील, उदार, दयालु एवं परोपकारी स्वभाव अपने परिवार, सगे-संबंधियों, एवं मित्रों के प्रति हर प्रकार से सहायक होता है।

स्थिर एवं वायु तत्व प्रधान राशि होने से कुंभ लग्न जातक मिलनसार, स्पष्टवादी एवं निस्वार्थ भाव से सेवा करने में उद्धत रहते है। नएनए मित्र बनाने एवं उनसे स्थाई संबंध बनाने में कुशल होते है। कृतज्ञ स्वभाव होने से किसी मित्र या संबंधी द्वारा किए गए उपकार को नहीं भूलते तथा ना ही किसी के कपट पूर्ण व्यवहार को भी जीवन भर भुला पाते है तथा फिर प्रतिशोध लेने से भी नहीं हिचकीचाते है। कुंभ जातक में अनुसंधानात्मक एवं प्रबंधात्मक योग्यता भी विशेष होती है। वह दूसरों को उपदेश देने की अपेक्षा स्वयं कार्य करके दिखाते हैं।

यदि कुंभ जातक की कुंडली में द्वितीय, तृतीय भाव किसी पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो जातक का प्रारंभिक जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण एवं कठिनाइयों से भरा होता है। आर्थिक एवं व्यवसाय क्षेत्र में विशेष परेशानियां होती हैं। भाई-बंधुओं के सुख एवं सहयोग में भी कमी रहती है। कुंभ लग्न के जातक मनुष्यों के उत्तम गुणों से संपन्न और अपने उद्देश्य के प्रति ईमानदार तथा प्रतिबद्ध होते हैं। कुंभ लग्न के जातक में सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकास की अनेक संभावनाएं छिपी होती हैं। यदि कुंडली में शनि, गुरु, बुध, शुक्र आदि ग्रह शुभ एवं योगकारक हो तो जातक इन ग्रहों की दशाओं में अभिनय, कला, साहित्य तथा व्यवसाय आदि के क्षेत्र में अभूतपूर्व लाभ उन्नति एवं सफलता प्राप्त करता है। देश-विदेशों में दीर्घ यात्राएं करने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस संबंध में अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन की कुंडली विशेष देखने लायक है।

कुंभ लग्न के जातकों में रहस्यात्मक, रचनात्मक एवं अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति होने से ज्ञान प्राप्ति के लिए हमेशा जिज्ञासु एवं प्रयत्नशील रहते हैं। सामान्य भौतिक ज्ञान के अतिरिक्त आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति विशेष जिज्ञासा रहती है। योग, दर्शन, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, संगीत-गायन, अभिनय, साहित्य, कला आदि के क्षेत्र में भी विशेष रुचि रहती है। सामान्यतः 33 वर्ष की आयु के बाद विशेष भाग्योन्नति होती है। भाग्य स्थान पर यदि सूर्य, मंगल, गुरु, बुध आदि ग्रहों की दृष्टि हो तथा भाग्येश शुक्र पंचम में राहु युक्त हो तो जातक का भाग्य उदय स्वदेश की अपेक्षा विदेश में होता है।

शिक्षा एवं कैरियर

कुंभ लग्न कुंडली में यदि बुध स्वग्रही या स्व उच्च होकर पंचम भाव, अष्टम या नवम भाव में शनि या शुक्र के साथ योग या दृष्टि संबंध करता हो तो जातक उच्च कोटि की विद्या ग्रहण करता है। इसके अतिरिक्त यदि पंचम में शुक्र तथा चतुर्थ में वृष राशि पर बुध अर्थात शुक्र-बुध में स्थान परिवर्तन योग हो तो भी जातक को उच्च विद्या की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त गुरु, मंगल के योग से जातक चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष सफल होता है। गुरु, शनि, मंगल व बुध के योग, दशा एवं दृष्टि आदि के संबंध से जातक क्रय-विक्रय, रबड़, केमिकल के निजी व्यवसाय द्वारा विशेष लाभान्वित होता है। शुक्र व बुध के कारण कंप्यूटर के क्षेत्र में बैंकिंग कंपनी संस्थान, कॉमर्स, अभिनय, संगीत, कला, वकालत, अध्यापन आदि के क्षेत्र में सफल होता है। जातक चाहे व्यवसाय के किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो उसे धर्म, योग, दर्शन, ज्योतिष, मंत्र आदि विषयों के संबंध में अवश्य रुचि रहती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्राय: सूक्ष्म दृष्टि एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हैं। किसी भी महत्वपूर्ण विषय या समस्या पर तत्काल निर्णय नहीं करते बल्कि गंभीर चिंतन एवं समस्या को भलीभांति सोच समझ कर ही अंतिम निर्णय पर पहुंचते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों एवं कठिन समस्याओं का समाधान गुप्त युक्तियों एवं धैर्य पूर्वक करते हैं। इनके संबंध बड़े-बड़े उच्च प्रतिष्ठित एवं श्रेष्ठ लोगों के साथ रहते हैं।

आर्थिक परिस्थितियां
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कुंभ लग्न की कुंडली में यदि गुरु, शुक्र, शनि एवं मंगल ग्रह शुभ भावस्थ हो तो जातक की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। विशेषकर 35 वर्ष की आयु के बाद अथवा उपरोक्त ग्रहों की दशा-अंतर्दशा काल में अच्छे फल प्राप्त होते हैं। यदि कुंडली में शनि गुरु 3, 5, 6, 7, 8 या 10 वे भाव में हो तो जातक अच्छी नौकरी में रहकर समुचित धन लाभ एवं भाग्य में उन्नति के अवसर प्राप्त करता है। जन्म कुंडली में 1, 4, 9, एवं 11 वे भाव में शनि व गुरु होने की स्थिति में जातक स्वतंत्र व्यवसाय द्वारा धनसंपदा, भूमि, मकान, वाहन आदि सुख के साधन अर्जित करता है। परंतु विशेष वांछित धन लाभ 38 वर्ष की आयु के बाद ही मिल पाते हैं। तृतीय भाव में राहु, बुध, चंद्र, मंगल आदि अशुभ ग्रह हों अथवा गुरु, मंगल आदि भी अशुभ भावस्थ हो तो जातक को पारिवारिक एवं आर्थिक परेशानियां बनी रहती हैं तथा जीवन का पहला भाग आर्थिक दृष्टिकोण से संघर्ष पूर्ण एवं कठिनाइयों से युक्त रहता है। आर्थिक तंगी एवं व्यवसाय में उतार-चढ़ाव बहुत आते हैं। यदि द्वितीय भाव में गुरु स्वग्रही हो अथवा गुरु की शुभ स्वग्रही दृष्टि हो शनि भी शुभ भावस्थ हो तो जातक को पारिवारिक एवं धन संपदा आदि विशेष सुखों की प्राप्ति होती है।

कुम्भ लग्न की जातिकाये

नामाक्षर 👉 (गु, गे, गो, स, सी, सू, से, सो, द) यदि आपके पास अपने जन्म की तारीख वार समय मास आदि का विवरण नही है तो उपरोक्त नामाक्षर से अपनी राशि चयन कर सकते है।

शारीरिक संरचना एवं स्वभावगत विशेषतायें
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कुंभ लग्न में उत्पन्न जातिका का ऊंचा अथवा मध्यम कद, संतुलित एवं सुगठित शरीर रचना, अंडाकार मुखाकृति, गोल एवं तेजस्वी वर्ण, सम्मोहक चुंबकीय मुस्कान लिए आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी होगी। बादामी आकार जैसी आकर्षक एवं सुंदर आंखें होंगी। जातिका तीव्र बुद्धिमती, अच्छी स्मरण शक्ति, परिश्रमी, दयालु एवं परोपकारी स्वभाव, संवेदनशील, अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार, व्यवहार कुशल, हंसमुख, मिलनसार, नए-नए मित्र बनाने में कुशल, परंतु इनके अंतरंग मित्रों की संख्या सीमित होती है।

कुम्भे च लग्ने वनिता सुजाता स्त्री जन्मदक्षा कुलाग्रजा।
नित्य गुरुणां सुविरुद्ध चेष्टा व्ययशीला पुष्यपरा कृतघ्ना।।

अर्थात कुंभ लग्न की जातिका अच्छे कुल में उत्पन्न, गुणी, अपने कुल में श्रेष्ठ, अपने गुणों द्वारा परिवार एवं समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाली, स्वतंत्र प्रिया, स्वाभिमाननी, उदार एवं धर्म परायण, शुभ कार्यों पर खर्च करने वाली तथा दूसरों का उपकार मानने वाली होगी, ऐसी जातिका दूसरों पर अधिकार पूर्ण वाणी का प्रयोग करने वाली, तर्क वितर्क करने में कुशल तथा किसी के साथ मैत्री स्थापित करने में कुशल होगी, किसी महत्वपूर्ण विषय पर निर्णय लेने से पूर्व यह उस विषय के संबंध में पर्याप्त गंभीरतापूर्वक विचार करती है। कई बार निर्णय करने में विलंब भी हो जाता है। कुंडली में यदि शनि, शुक्र एवं गुरु, शुक्र शुभस्थ हो तो जातिका वाक्पटु, विद्वान, वार्तालाप करने में कुशल, संगीत, गायन, अभिनय, नृत्य आदि कला में विशेष रूचि रखने वाली। जिस कार्य को करने का निश्चय करें उसे पूरे मनोयोग एवं ह्रदय से करेगी। आतिथ्य सत्कार एवं सेवा करने की भावना भी कुम्भ जातिका में विशेष रूप से प्रबल होती है। धर्म कार्य एवं घर परिवार में माता-पिता तथा बहिन, भाइयों की सेवा अपने उत्तरदायित्व की भावना से करेगी। स्वभाव से धैर्यवान, गंभीर, मितव्ययी एवं स्वनियंत्रित एवं उदार प्रवृति की होगी। प्रत्येक प्रकार के सामाजिक वातावरण में स्वयं को ढालने में सक्षम होगी।

शिक्षा एवं कैरियर

कुंडली में गुरु, शुक्र, बुध एवं शनि आदि ग्रह शुभ हो तो जातिका उच्च विद्या प्राप्त करने में सफल होती है। तथा उच्च विद्या का समुचित लाभ भी जातिका को प्राप्त होता है। जातिका को सरकारी या अर्ध सरकारी क्षेत्रों में अच्छी सर्विस एवं प्राध्यापक आदि के क्षेत्र में उच्च सर्विस प्राप्ति के अवसर प्राप्त होते हैं। कुंडली में सूर्य और मंगल भी प्रबल हो तो जातिका सरकारी या अर्ध सरकारी शिक्षा संस्थानों में उच्च प्रतिष्ठित पद प्राप्त करने में सफल होती है। कुंभ लग्न जातिका को गुरु व शनि ग्रहों के प्रभाव स्वरूप उच्च शैक्षणिक विद्या के अतिरिक्त धर्म, अध्यात्म, योग, दर्शन, ज्योतिष, यंत्र-तंत्र आदि विद्याओं के प्रति भी विशेष रुचि रहती है। किसी भी विषय के गुण-अवगुण परखने के बाद ही संबंध या कार्य करती है। कुंभ जातिका केवल उपदेश ही नहीं देती बल्कि कार्य को स्वयं क्रियान्वित करके दिखाती है। अध्ययन की प्रकृति के अतिरिक्त खेलकूद, सैर, सपाटा अर्थात देश-विदेश की यात्राएं करने की भी आकांक्षाएं रखती है।

उपयुक्त व्यवसाय

कुम्भ जातिका की कुंडली में बुध, शुक्र, गुरु व शनी आदि शुभस्थ हो तो जातिका उच्च व्यवसायिक विद्या प्राप्त करके विज्ञान, प्रशासन, अध्यापन, कंप्यूटर, पत्रकारिता, भौतिक शास्त्र, मनोविज्ञान, कॉमर्स, फैशन डिजाइनिंग, ब्यूटी पार्लर, अभिनय, नृत्य, माडलिंग, बैंकिंग, वकालत, चिकित्सा, विदेश आदि के क्षेत्रों में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकती है। इसके अतिरिक्त गत लेखों में दिए गए पुरुष व्यवसाय संबंधी विवरण का भी अवलोकन कर सकते हैं।

प्रेम एवं वैवाहिक जीवन

कुंभ जातिकाये प्राय: प्रेम एवं विवाह संबंधों में ह्रदय की सूक्ष्म एवं गहन संवेदनाएं से प्रेरित होती है। फिर भी वह अपने भावी जीवनसाथी में बाहरी सुंदर व्यक्तित्व के साथ-साथ शैक्षणिक, बौद्धिक योग्यता एवं सामाजिक स्तर को भी अवश्य प्राथमिकता देती है। विवाह संबंधों में माता पिता की सहमति के अतिरिक्त स्वतंत्र निर्णय को भी अधिमान्यता देती है। विवाह के पश्चात वह अपने पति एवं परिवार के प्रति पूर्ण निष्ठावान एवं समर्पित होती है। तथा गृहस्थ के प्रति अपने उत्तर दायित्व को पूरी ईमानदारी से निभाने के प्रयत्न करती है। आर्थिक क्षेत्र में भी सहायक होती है। कुंडली के ग्रह नक्षत्र का मिलान अच्छी प्रकार से करके विवाह किया गया हो तो कुंभ जातिका का भावी दांपत्य जीवन सुखी एवं खुशहाल रहता है। यदि कुंडलियों का मिलान भली-भांति ना हुआ तथा सप्तम भाव पर राहु, सूर्य, मंगल, केतु, चंद्र आदि ग्रहों का अशुभ योग, दृष्टि हो तो जातिका को वैवाहिक सुख में कमी रहती है।

भाग्योन्नति कारक वर्ष👉 कुम्भ जातिका को 23, 25, 28, 32, 36, 38, 42 एवं 48 वां वर्ष भाग्योन्नति कारक रहता है।

स्वास्थ्य और रोग

सामान्यत: बाहरी तौर पर कुंभ जातिका का स्वास्थ्य अच्छा दिखाई देता है। परंतु जन्म कुंडली में यदि शनि, सूर्य, मंगल, चंद्र, राहु आदि ग्रह अशुभ भाव (सप्तम, अष्टम) स्थान आदि में पड़े हो अथवा लग्न -लग्नेश को प्रभावित करते हो। अथवा शनी (लग्नेश) निर्बल हो तो जातिका का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। उसे जुकाम, खांसी, वायु जनित रोग, स्नायु दुर्बलता, दंत विकार, गले , टांसिल, घुटनों एवं जोड़ों के दर्द, पिंडलियों में सूजन, रक्त विकार अथवा रक्त की कमी, नेत्र विकार, मासिक धर्म की खराबी, मंदाग्नि, सिर पीड़ा, उदर विकार, अनिद्रा आदि रोगों का भय रहता है।

कुम्भ लग्न जातक/जातिकाओ का प्रेम-वैवाहिक सुख संक्षिप्त दशा-अन्तर्दशा फल एवं अन्य उपाय

कुंभ लग्न के जातक कल्पनाशील एवं रहस्यमय प्रकृति के होते हुए भी प्रेम संबंधों का सूत्रपात प्रायः मैत्री भाव से करते हैं। इनका प्रेम हृदय की सूक्ष्म एवं गहन अनुभूतियों से प्रेरित होता है। प्रेम में प्रदर्शन व दिखावटी पर नहीं होता फिर भी अपनी पत्नी/पति को हरसंभव सुख सुविधाएं प्रदान करने कराने में प्रयत्नशील रहते हैं। कुंभ लग्न के जातक अपनी प्रेमिका या प्रेमी अथवा जीवन साथी का चयन बौद्धिक योग्यता को ध्यान में रखते हुए करते हैं। यद्यपि उन्हें विपरीत योनि के प्रति विशेष सौंदर्य अनुभूति एवं आकर्षण होता है। परंतु वह ऐसा जीवनसाथी पसंद करते हैं जो इन्हें बाहरी प्रेम आकर्षण के साथ साथ बौद्ध क्षेत्र में भी साथ दे। कुंभ जातक प्रेम के संबंध में सुनिश्चित धारणा रखते हैं। कुंडली में यदि सप्तम में सूर्य तथा शुक्र मित्र क्षेत्र एवं शुभ स्थिति में पड़े हुए हो तो जातक अपने अनुकूल जीवनसाथी पाने में सफल रहता है तथा उसका दांपत्य जीवन प्रायः सुखी होता है।

यदि सप्तम में सूर्य बली हो अथवा सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों का योग्य दृष्टि आदि का संबंध हो तथा गुरु और शुक्र की स्थिति भी ठीक ना हो तो जातक जातिका के वैवाहिक सुख में कमी रहती है। यदि कुंभ लग्न के जातक की कुंडली का पत्नी के साथ नक्षत्र एवं गुण मिलान ठीक से ना हुआ हो तो पति-पत्नी दोनों अपने पूर्वाग्रह विचारों से मुक्त नहीं हो पाते तथा दोनों में स्वाभिमानी प्रकृति एवं अहम भाव में टकराव के कारण दोनों का दांपत्य जीवन सुखी नहीं रह पाता। सप्तम भाव में सूर्य मंगल के योग में तथा कुछ अन्य अशुभ योगों के कारण कुम्भ जातक/जातिका में विवाह के बाद संबंध विच्छेद अथवा अविवाहित रहने की प्रवृत्ति भी पाई गई है।

उपयुक्त जीवन साथी
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कुंभ लग्न की जातिका को वृष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु एवं मीन लग्न के जातक के साथ विवाह अथवा व्यवसायिक संबंध अच्छे एवं लाभदायक हो सकते हैं। फिर भी जन्मपत्रीओं का पारस्परिक मिलान कराने के पश्चात ही महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।

सावधानी👉 कुंभ राशि वायु तत्व प्रधान एवं स्थिर राशि होने के कारण कुंभ लग्न के जातक कई बार पूर्वाग्रही विचारों से ग्रस्त होकर आवेश एवं अति भावुकतावश दूसरों को स्पष्ट एवं कटु वचन भी कह देते हैं। जिससे कई बार लाभ की अपेक्षा हानि हो जाती है। अति आलोचनात्मक प्रवृत्ति से भी बचें अपने सामर्थ्य से अधिक परिश्रम करने की अपेक्षा संयोजित एवं योजनाबद्ध तरीके से पुरुषार्थ करना आपके लिए लाभदायक होगा।

कुम्भ लग्न में ग्रहों की दशा-अंतर्दशाओं का संक्षिप्त फल
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कुंभ लग्न के जातक/जातिका की जन्मपत्री में यदि शनि, गुरु, शुक्र एवं बुध ग्रह शुभ भागवत हो तथा इनमें से किसी ग्रह की महादशा एवं अंतर्दशा चल रही हो तो जातक अथवा जातिका को अपनी दशा या अंतर्दशा के मध्य मनोवांछित कार्यों में सिद्धि, धन लाभ, उन्नति, विद्या में सफलता, पदोन्नति अथवा व्यवसाय में लाभ, स्त्री या पुरुष का विवाह आदि का सुख, भूमि, जायदाद, मकान, वाहन एवं संतान आदि सुखों की प्राप्ति अथवा घर परिवार में मांगलिक कार्यों का आयोजन होता है।

जन्म कुंडली में यदि सूर्य, चंद्र, बुध, शनि, गुरु, शुक्र, राहु, केतु आदि ग्रह नीच राशि में स्थित हो, शत्रु राशिगत अथवा किसी अशुभ या क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट होकर अशुभ भावो 6, 8 या 12 वें में पड़े हो तो विघ्नों एवं अड़चनों के बाद कार्यों में सफलता, धन हानि, आय के साधनों में रुकावटें, पारिवारिक कलह, भाई बंधुओं के साथ वैमनस्य तथा बनते कामों में अड़चनें पैदा होती हैं।

मंगल, राहु, चंद्र, गुरु, बुध ग्रह कुंभ लग्न कुंडली में शुभ होने पर भी अपनी दशा अंतर्दशा में शुभाशुभ दोनों अर्थात मिश्रित प्रभाव करते हैं। राहु-केतु अपनी दशा अंतर्दशा में भाव राशि की स्थिति तथा उस पर ग्रह योगों के योग दृष्टि आदि के अनुसार शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं।

कुम्भ लग्न संबंधित कुछ उपयोगी उपाय

शुभवार👉 कुंभ लग्न राशि वाले जातक/ जातिका के लिए बुधवार, शुक्रवार एवं शनिवार शुभ एवं भाग्य कारक दिन होते हैं। बुध, मंगल तथा गुरुवार मिश्रित शुभाशुभ फल प्रदायक होते हैं। जबकि रविवार तथा सोमवार प्रायः साधारण अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं।

शुभरंग👉 नीला, काला, संतरी, आसमानी, भूरा रंग शुभ होंगे। पीला, हरा मिश्रित प्रभाव रखेंगे। जबकि सफेद व लाल रंग अशुभ रहेगा।

शुभ रत्न👉 नीलम सवा पांच रत्ती से सवा सात रत्ती का सोने या पंचधातु की अंगूठी में जड़वा कर मध्यमा अंगुली में शनिवार को किसी शुभ मुहूर्त में गंगा जल में धोकर मंत्र पूर्वक धारण करना चाहिए।

विशेष👉 धारण करने से पहले अन्य दशा ज्ञान हेतु किसी जानकार से परामर्श अवश्य लें।

शनि मंत्र👉 ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः का 23 हजार संख्या में जाप करके विधि पूर्वक अभिमंत्रित करके धारण किया जावे तो और भी अधिक प्रभावी रहेगा। यदि नग धारण करना महंगा प्रतीत हो तो नाव की कील से लोहे का छल्ला बनवाकर शनिवार को नग की भांति ही विधि पूर्वक धारण करना लाभदायक होगा। यदि कुंडली में शनि ग्रह अशुभ हो तो शनिवार का व्रत रखना, विधि पूर्वक निर्मित शनि का यंत्र रखना, लोहे की कटोरी में सरसों का तेल डालकर छाया पात्र करना, औषधि स्नान तथा अंध विद्यालय या कुष्ठ आश्रम में असहाय लोगों को भोजन, मिठाई, फल, वस्त्र, धन, अनाज आदि के द्वारा सेवा एवं सहायता करना शुभ होता है। इसके अतिरिक्त शनि स्तोत्र का पाठ करना भी कल्याणकारी रहता है। ध्यान रहे शनिदेव के दान आदि के उपाय सायंकालीन किए जाने शुभ फलदायक माने जाते हैं।

भाग्यशाली अनुकूल वर्ष👉 20, 23, 25, 28, 33, 36, 38, 42, 48, 52, 56 वां वर्ष।

भाग्यशाली अंक👉 2, 3 व 9 अंक भाग्योन्नतिकारक रहते है।

अगले लेख में मीन लग्न संबंधित फलो की विस्तृत व्याख्या की जाएगी।

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