जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से कैसी कैसी रामायण…

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से कैसी कैसी रामायण…



वैदिक साहित्य में रामकथा के अनेक पात्रों का वर्णन मिलता है। उदाहरण के लिए इक्ष्वाकु (अथर्ववेद : 19-39-9) दशरथ (ऋग्वेद : 1-126-4), कैकेय (शतपथ ब्राह्मण : 10-6-1-2) तथा जनक (शतपथ ब्राह्मण) आदि।

संभव है तत्कालीन भारत में इस नाम के अन्य पात्र भी रहे हों। उनके साथ जुडे़ गुण उन्हें रामकथा से संबंधित करते प्रतीत होते हैं, परंतु यह उल्लेखनीय है कि राम जन्म की घटना वैदिक साहित्य के बहुत बाद की है। यह भी संभव है कि कालांतर में इन नामों से संबंधित अंश वैदिक साहित्य में जोड़ दिए गए हों।

वैदिक साहित्य के बाद जो रामकथाएं लिखी गईं, उनमें वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। यह इसी कल्प की कथा है। वाल्मीकि के वर्णन से ऐसा महसूस होता है मानो राम से संबंधित घटनाचक्र को उन्होंने अपने जीवन काल में स्वयं देखा या सुना था, इसलिए वह सत्य के काफी निकट जान पड़ता है।

मूल रामकथा के रूप में वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त जो अन्य रामायण लोकप्रिय हैं, उनमें अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, अद्भुत रामायण तथा तुलसीदास कृत रामचरितमानस आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। रामकथा पर लिखे गए ग्रंथों की इस अधिकता के कारण ही गोस्वामी तुलसीदास ने कहा था- ‘रामायन सतकोटि अपारा।’

वाल्मीकि रामायण के उपरांत रामकथा में दूसरा प्राचीन ग्रंथ है ‘अध्यात्म रामायण।’ इसमें राम का ईश्वरत्व उभरता दृष्टिगत होता है। इस रामायण को राम कथा के उत्तर खंड के रूप में भी स्वीकारा जाता है।

‘आनंद रामायण’ में भक्ति की प्रधानता है। इसमें राम की विभिन्न लीलाओं तथा उपासना संबंधी अनुष्ठानों की विशेष चर्चा है।

‘अद्भुत रामायण’ अपने नाम के अनुरूप कथा प्रसंगों और वर्णन शैली में अद्भुत है। इसमें सीता की महत्ता विशेष रूप से प्रस्तुत की गई है। उन्हें ‘आदिशक्ति’ और ‘आदिमाया’ बतलाया गया है, जिसकी प्रस्तुति स्वयं राम भी सहस्त्रनाम स्तोत्र द्वारा करते हैं।

लोकप्रियता की दृष्टि से तुलसी कृत ‘रामचरितमानस’ सबसे आगे है। लोकभाषा में होने के कारण इसने रामकथा को जनसाधारण में अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया। रामलीलाओं के मंचन की दृष्टि से राधेश्याम कृत रामायण का भी विशेष स्थान है।

हिंदी क्षेत्रों की अपेक्षाकृत कम पढ़ी-लिखी जनता के बीच इस रामायण को काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई। रामायण अन्य प्रादेशिक भाषाओं में भी लिखी गई, जिसका आधार विभिन्न संस्कृत ग्रंथ रहे हैं।

नौवीं शताब्दी में कवि कंबन ने तमिल भाषा में ‘कंब रामायण’ की रचना की। रंगनाथ रामायण, कवयित्री मोल्डा रचित मोल्डा रामायण और ‘भास्कर’ तेलुगू भाषा में लिखी गई रामायण हैं।

प्रादेशिक भाषाओं में रामकथा पर आधारित सबसे पुरानी रामायण उड़िया में लिखी गई रूइपादकातेणपदी रामायण है, जो नौवीं शताब्दी में लिखी गई।

आर्य संस्कृति और उसके साथ रामकथा का जो प्रचार-प्रसार हुआ, वह आज भी यथावत देखने को मिलता है।

मुस्लिम इंडोनेशिया में तो रामायण को राष्ट्रीय पवित्र पुस्तक का गौरव प्राप्त है। वहां अदालतों में प्राय: रामायण पर ही हाथ रखकर शपथ ली जाती है। वहां इस ग्रंथ का नाम है काकविन रामायण।

थाइलैंड में रामकथा को रामकियेन या रामकीतिर् कहा जाता है। कंबोडिया में रामकथा के ग्रंथ का नाम रामकेर है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक उद्धृत हैं। लाओस, वियतनाम, सुमात्रा तथा बाली आदि दक्षिण पूर्व अनेक एशियाई देशों में भी रामकथा का प्रभाव दिखता है।

मुगल काल में रामायण का फारसी अनुवाद (मसीही रामायण) भी प्रकाशित हुआ था, जो रामकथा की लोकप्रियता का एक प्रमाण है।

1623 ईसवी में फारसी के प्रसिद्ध कवि शेख साद मसीह ने भी ‘दास्ताने राम व सीता’ शीर्षक से रामकथा लिखी थी।

उर्दू में रामकथा पर एक ग्रंथ रघुवंशी उर्दू रामायण भी है, जिसके लेखक हैं श्री बाबू सिंह बालियान। इसमें सभी प्रकार की उपलब्ध रामकथाओं तथा उनके लेखकों का विवरण दिया गया है।

इस ग्रंथ में राम के विश्व रूप को अभिव्यक्त करते हुए कहा गया है कि राम ने ईसा मसीह, पैगंबर मोहम्मद, गुरु नानक तथा गौतम बुद्ध के समान किसी प्रकार का कोई नया मत, संप्रदाय या धर्म नहीं चलाया। इसलिए वे सभी धर्मों के अपने हैं।

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